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    Farmers Protest Update : गतिरोध टूटा, किसानों के दो मांगों पर बनी सहमति, बाकी मुद्दों पर चार जनवरी को मंथन

    किसान संगठनों के साथ बुधवार को हुई सरकार की बातचीत बहुत सफल रही। कुल चार मुद्दों पर अड़े किसान संगठनों के दो प्रमुख मसलों पर आम सहमति बनी है। सरकार इन मांगों को मान लिया है। बाकी दो मांगों पर चर्चा के लिए चार जनवरी को फिर बैठक होगी...

    By Krishna Bihari SinghEdited By: Updated: Thu, 31 Dec 2020 09:30 AM (IST)
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    कृषि सुधारों पर आंदोलनकारी किसान संगठनों के साथ बुधवार को हुई वार्ता बहुत हद तक सफल रही।

    सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। कृषि सुधारों पर आंदोलनकारी किसान संगठनों के साथ बुधवार को हुई वार्ता बहुत हद तक सफल रही। कुल चार मुद्दों पर अड़े किसान संगठनों के दो प्रमुख मसलों पर आम सहमति बनी है। सरकार इन मांगों को मान लेने के लिए राजी हो गई है। बाकी दो मांगों पर चर्चा के लिए चार जनवरी को फिर बैठक बुलाई गई है जिसमें उनका भी हल निकाल लिए जाने की उम्मीद जताई गई है। नए कृषि कानूनों पर उठाए जाने वाले एतराज के लिए विशेषज्ञों की समिति बनाने पर रजामंदी हो सकती है।

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    शंकाओं का जरूर होगा समाधान 

    कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर को पूरा यकीन है कि किसानों की शंकाओं का समाधान जरूर होगा। वार्ता खत्‍म होने के बाद बाहर आए कृषि मंत्री तोमर ने जोर देकर कहा कि किसानों की दो प्रमुख मांगों पर रजामंदी हो गई है। इनमें पहली पर्यावरण संबंधी अध्यादेश को लेकर है, जिसमें किसान और पराली का जिक्र किया गया है। किसानों की मांग थी कि उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई वाले प्रावधान बाहर किए जाएं। 

    सिंचाई के मुद्दे पर सरकार सहमत 

    तोमर ने कहा कि सरकार इससे वाकिफ है। इसी तरह किसानों की दूसरी चिंता बिजली बिल संशोधन विधेयक को लेकर थी। फिलहाल यह विधेयक संसद में पेश नहीं किया गया है। किसान नेताओं को आशंका है कि यह कानून आया तो उनका बहुत नुकसान होगा। किसानों की मांग है कि सिंचाई के लिए जो सब्सिडी राज्य जैसे देते हैं वैसे ही चलती रहे। सरकार उनकी इस मांग पर रजामंद हो गई है।

    ढाई दशक से ज्‍यादा चली थी प्रक्रिया 

    बैठक के दौरान सरकार की ओर से कहा गया कि किसान नेताओं से नए कृषि कानूनों के बारे में बताया कि इन्हें बनाने की प्रक्रिया ढाई दशक से भी अधिक चली है। इसलिए इन्हें हटाने जैसी प्रक्रिया को अपनाने में समय लगेगा। इसके लिए विशेषज्ञ समिति का गठन किया जा सकता है, जो कानून की अच्छाइयों और खामियों के बारे में अपनी रिपोर्ट तैयार करें। यह एक संवैधानिक प्रक्रिया है, जिसे पूरा करना जरूरी है। 

    MSP पर लिखित भरोसा देने को तैयार 

    एमएसपी पर सरकार लिखित आश्वासन देने को तैयार है। किसानों को एमएसपी से कम का भाव न मिले, इसके लिए भावांतर योजना को प्रभावी तरीके से लागू किए जाने का बंदोबस्त किया जा सकता है। इससे स्पष्ट है कि समस्या का समाधान हो जाएगा। किसान संगठनों के साथ सरकार की छठवें दौर की वार्ता की सफलता को लेकर बड़ी बड़ी आशंकाएं जताई जा रही थीं। 

    गहराने लगी थी आशंकाएं 

    दरअसल, संयुक्त किसान मोर्चा ने मंगलवार की शाम को सरकार के पास अपने एजेंडा वाला एक पत्र भेजकर सनसनी फैला दी। उनका कहना था कि वे इन मुद्दों पर चर्चा केंद्रित करेंगे। नए कानूनों को रद करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की लीगल गारंटी पर सरकार को राजी होना ही होगा। उनके पत्र की इस तरह की अडि़यल भाषा को लेकर आशंकाएं बढ़ गई थीं। इसके बावजूद सरकार को पूरा भरोसा था कि वे इस बार किसान नेताओं को समझाने में कामयाब हो जाएंगे। उन्हें वास्तविक तथ्यों से अवगत कराया जाएगा।

    मंत्रियों ने किसानों के साथ लंगर का आनंद लिया

    विज्ञान भवन में दोपहर बाद ढाई बजे शुरू हुई वार्ता कई घंटे चली। इस दौरान लंच और दो बार चाय ब्रेक हुआ। किसान नेताओं ने पहले की वार्ताओं की तरह इस बार भी अपना लंच खुद मंगाया था। लंच ब्रेक में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर, पीय़ूष गोयल और सोम प्रकाश उनका लंगर खाने पहुंच गए। इस दौरान एक दूसर से अनौपचारिक बातचीत भी हुई। वार्ता में गतिरोध तोड़ने में यह अनौपचारिक बातचीत काफी कारगर साबित हुई। चाय ब्रेक के दौरान हंसी मजाक में ही किसान संगठनों की राजनीतिक हैसियत भी बता दी गई।