मेट्रो स्टेशनों पर ट्रैफिक जाम करते हैं ई-रिक्शा और ऑटो, रिसर्च के हवाले से जानें बर्बादी का हाल
दिल्ली मेट्रो स्टेशनों के आस-पास के एक-तिहाई स्थानों से अधिक पर रिक्शा ई-रिक्शा ऑटो जैसे वाहनों ने अतिक्रमण कर रखा है जो आपको घर तक छोड़ते हैं। ...और पढ़ें

नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। दिल्ली मेट्रो स्टेशनों के आस-पास के एक-तिहाई स्थानों से अधिक पर रिक्शा, ई-रिक्शा, ऑटो जैसे वाहनों ने अतिक्रमण कर रखा है, जो आपको घर तक छोड़ते हैं। इनकी वजह से मेट्रो स्टेशनों के आसपास से गुजरने वाले अन्य वाहनों की गति लगभग छह किमी प्रति घंटा रह जाती है। यह बात इस वर्ष मार्च में लॉकडाउन से पहले केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान द्वारा किए गए अध्ययन में सामने आई है। दिल्ली के अधिकांश व्यस्त मेट्रो स्टेशन पिछले कुछ वर्षों में ट्रैफिक चोकपॉइंट्स बन गए हैं। ई-रिक्शा की बढ़ती संख्या के कारण स्थिति और खराब हो गई है, जो यात्रियों के लिए लास्ट माइल कनेक्टिविटी हैं। केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान द्वारा किए गए अध्ययन में जिन मेट्रो स्टेशनों को आधार बनाया गया है, वहां पर औसतन 6000 से 45000 लोग किसी न किसी माध्यम से पहुंचते हैं। इस रिपोर्ट को केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान की वैज्ञानिक मुक्ति आडवाणी और टीम ने मिलकर तैयार किया है।
अध्ययन में सामने आया है कि पार्किंग आधारित अगर नीतियां बनाई जाएं, तो 593 लीटर पेट्रोल, 103 लीटर डीजल और 643 किग्रा सीएनजी की बचत हो सकती है। वहीं, बस स्टॉप लोकेशन आधारित रणनीति बनाकर रोजाना 165 लीटर पेट्रोल, 36 लीटर डीजल और 265 किग्रा सीएनजी की बचत की जा सकती है। इससे 1.3 टन प्रतिदिन कॉर्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन कम होगा।
यह सर्वे पश्चिम, दक्षिण और पूर्वी दिल्ली स्थित पांच व्यस्त मेट्रो स्टेशनों- करोल बाग, कैलाश कॉलोनी, लक्ष्मी नगर, लाजपत नगर और इंद्रलोक के पास किए गए। अध्ययन के लिए शाम सात से 10 बजे के बीच इन स्टेशनों के पास के यातायात की स्थिति के डेटा संकलित किए गए। यह शोध सीएसआईआर और केंद्रीय सड़क शोध संस्थान (सीआरआरआई) के वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा किया गया। अध्ययन का खर्च पेट्रोलियम संरक्षण अनुसंधान संघ (पीसीआरए) ने वहन किया। शोध में यह भी पता चला है कि 39 प्रतिशत मेट्रो यात्री पैदल ही स्टेशनों तक पहुंचते हैं, बाकी लोग परिवहन के अन्य साधनों का उपयोग करते हैं, जो बेहद धीमी गति से चलते हैं।
केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान के अध्ययन में 39 प्रतिशत यात्रियों ने बताया कि वे पैदल ही स्टेशन तक पहुंचते हैं, जबकि 35 प्रतिशत ने कहा कि वे साइकिल रिक्शा या ई-रिक्शा से स्टेशन तक आते हैं। वहीं, 14 प्रतिशत यात्री निजी कार या कैब का उपयोग करते हैं, जबकि 10 प्रतिशत बसों के माध्यम से स्टेशन आते हैं। अध्ययन में यह बात भी सामने आई है कि फ्लाईओवर और सड़क चौड़ीकरण जैसे विकल्पों के जरिए समस्या का समाधान तो होता है, लेकिन यातायात के व्यवहार के कारण कुछ समय बाद स्थिति फिर पहले जैसी हो जाती है। शोध में यह भी पता चला है कि निजी वाहनों पर रोक या किसी अन्य तरह का प्रतिबंध लगाने से मेट्रो की सवारियों को घर तक पहुंचने से संबंधित परेशानी बढ़ सकती है। इसके साथ ही भीड़भाड़ की नई समस्या भी पैदा हो सकती है।
पीसीआरए के कार्यकारी निदेशक डॉ. एन.के. सिंह ने कहा कि इस समस्या से निपटने के लिए सभी का सहयोग वांछित है। चाहे यातायात पुलिस हो, मेट्रो की फीडर बसें हों, ई-रिक्शाचालक हों, अथवा मेट्रो में सफर करने वाली जनता हो। सभी को नियम-कानून का पालन करते हुए इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हमारी वजह से किसी और को अनावश्यक परेशानी न हो। तेल अथवा ईंधन की बर्बादी, प्रदूषण का निवारण करने पर किया जाने वाला वृहद खर्च असल में देश के संसाधनों की बर्बादी है। इसको बचाने में हम सबको अपनी जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभानी होगी।
अध्ययन में की गई हैं ये सिफारिशें-
-वैकल्पिक सिग्नल फेसिंग, साइकिल का उपयोग करने अथवा पैदल चलने से इस समस्या का समाधान निकाला जा सकता है।
-स्ट्रीट पार्किंग, पैदल चलने वालों के लिए फुटपाथ आदि बनने से न केवल मेट्रो स्टेशनों के पास से गुजरते हुए वाहनों की गति बढ़ेगी, बल्कि गाड़ियों की भीड़ के कारण होने वाले वाहन उत्सर्जन को कम करने में भी मदद मिलेगी और साथ ही ईंधन की भी बचत होगी।
-स्ट्रीट पार्किंग के साथ साइकिल रिक्शा और ई-रिक्शा के लिए अलग पार्किंग लेन, यातायात और सड़क उपयोगकर्ताओं के लिए उपयुक्त वैकल्पिक बस स्टॉप स्थल और विशेष बस स्टॉप्स को अलग-अलग किया जाए।
- टैक्सी, निजी वाहनों, ऑटो के लिए मेट्रो स्टेशनों के नीचे अलग-अलग पिक-अप और ड्रॉप ऑफ जोन मुहैया कराए जाएं, ताकि सड़क उपयोगकर्ताओं, मेट्रो यात्री आदि के लिए संभावित उपयोगी स्थानों की संभावनाओं को तलाशा जा सके।

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