नए जमाने में नए तरीके से अपराधियों पर कसेगी नकेल, जानें आपराधिक प्रक्रिया पहचान विधेयक 2022 की बारीकियां
आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) विधेयक 2022 के संसद से पास होने के बाद अपराधियों पर नकेल कसने में आसानी होगी। सरकार का कहना है कि इसकी मदद से दोषसिद्धि की दर भी बढ़ेगी। जानें इस कानून की बारीकियां ...

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। संसद से आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) विधेयक, 2022 पारित हो गया है। यह 102 साल पुराने कैदियों की पहचान अधिनियम, 1920 की जगह लेगा। एक सदी पहले जब पिछला कानून बना था, तब से अब तक तकनीक बहुत बदल चुकी है। तकनीक के इसी बदलाव को अपनाते हुए अपराधियों को पकड़ने की व्यवस्था को पुख्ता करने के लिए नया विधेयक लाया गया है। इसके प्रभावी होने से अपराधियों की पहचान आसान होगी।
जुटाया जा सकेगा ज्यादा डाटा
पुराने कानून में केवल फिंगरप्रिंट, फुटप्रिंट और फोटो लेने का अधिकार था। इसके लिए भी मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी होती थी। नए विधेयक से पुलिस अपराधियों की फोटो के अलावा उनकी अंगुलियों की छाप (फिंगरप्रिंट), पैरों-तलवों की छाप (फुटप्रिंट), हथेलियों की छाप, आंखों के आइरिस व रेटिना का बायोमीट्रिक डाटा तथा खून, वीर्य, बाल व लार आदि तमाम प्रकार के जैविक (बायोलाजिकल) नमूने ले सकेगी। हस्ताक्षर, लिखावट या अन्य तरह का डाटा भी लिया जा सकेगा। पूरे डाटा का डिजिटलीकरण करके उसे केंद्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के डाटाबेस में जमा किया जाएगा। डाटा 75 साल तक सुरक्षित रखा जाएगा।
इन लोगों का लिया जाएगा डाटा
नए विधेयक के तहत पुलिस किसी भी दंडनीय अपराध के लिए दोषी ठहराए या गिरफ्तार किए गए व्यक्ति का डाटा ले सकेगी। महिलाओं या बच्चों के खिलाफ अपराध में शामिल लोगों का बायोलाजिकल डाटा अनिवार्य रूप से लिया जाएगा। विपक्ष की चिंता दूर करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने स्पष्ट किया कि किसी राजनीतिक मामले में गिरफ्तार व्यक्ति इसके दायरे से बाहर होगा। हालांकि किसी आपराधिक मामले में गिरफ्तार हुए राजनीतिक व्यक्ति को कोई छूट नहीं मिलेगी।
कई कारणों से छूट जाते हैं अपराधी
हमारे देश में बहुत से जघन्य मामलों में दोषसिद्धि यानी अपराध साबित होने व अपराधी को सजा मिलने की दर 50 प्रतिशत से भी कम है। अलग-अलग अपराध में अलग-अलग कारणों से अपराधी छूट जाते हैं।
- महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध में कई बार ऐसा देखने में आता है कि पीडि़त महिला ही बाद में बयान से मुकर जाती है। इसका कारण कहीं न कहीं परिवार का दबाव होता है। कई बार आरोपित ही पीडि़ता के परिवार से समझौता कर लेता है और पीडि़ता को मजबूरन बयान बदलना पड़ता है।
- गवाहों का मुकर जाना भी ऐसी ही एक समस्या है। गंभीर मामलों में गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं होने के कारण भयवश कई गवाह बयान बदल देते हैं। लालच और अन्य दबाव भी इसका कारण बनते हैं।
- पहचान में देरी या अपराधी की पहचान स्थापित नहीं हो पाना भी दोषसिद्धि की कम दर का बड़ा कारण है। बहुत बार ऐसे मामले भी सामने आते हैं, जब दिनदहाड़े हुए अपराध में भी आरोपित की पहचान स्थापित नहीं हो पाने के कारण उसे सजा नहीं दी जा पाती है।
नहीं मिल पाता न्याय
राज्यसभा में विधेयक पेश करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि अन्य देशों के कानूनों की तुलना में हमारा कानून बच्चा है। कानून में सख्ती नहीं होने के कारण ही हमारे यहां दोषसिद्धि की दर बहुत कम है। यह सच है कि निर्दोष साबित होने वाले बहुत से लोग निर्दोष ही होते हैं, लेकिन इस बात में भी संदेह नहीं कि बहुत से मामलों में सुबूतों की कमी के कारण अदालतें संबंधित आरोपित को रिहा करने के लिए विवश होती हैं। जांच एजेंसियां जानती हैं कि नाम और पता बदलकर रह रहा व्यक्ति पुराना अपराधी है, लेकिन उसकी पहचान स्थापित करना संभव नहीं हो पाता है।
डराते हैं आंकड़े
एनसीआरबी की रिपोर्ट के आधार पर 2020 में विभिन्न गंभीर अपराधों में दोषसिद्धि पर एक नजर :
हत्या-
- 20,067 लोगों पर चल रहे मामलों का निस्तारण किया गया
- 9,254 लोग ही इनमें दोषी सिद्ध हुए
- 46 प्रतिशत रही दोषसिद्धि की दर
दुष्कर्म :
- 11,977 मामलों का निस्तारण किया गया
- 4,473 लोग दोषी ठहराए गए
- 37 प्रतिशत रही दोषसिद्धि की दर
अपहरण :
- 14,093 मामलों का निस्तारण किया गया
- 4,485 लोग दोषी ठहराए गए
- 32 प्रतिशत रही दोषसिद्धि की दर
किसी के शरीर पर प्रभाव डालने वाले सभी अपराध:
- 3,66,768 लोगों पर चल रहे मामलों का निस्तारण किया गया
- 1,35,371 लोगों को दोषी ठहराया गया
- 37 प्रतिशत रही दोषसिद्धि की दर
(इसमें हत्या, हत्या का प्रयास, दुष्कर्म, दुष्कर्म का प्रयास, छेड़खानी, अपहरण समेत ऐसे सभी अपराध शामिल हैं, जिनसे किसी के शरीर पर प्रभाव पड़ता है।)
आगे की राह
नए विधेयक से दोषसिद्धि की दर बढ़ाने में मदद मिलेगी। जुटाए गए वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर अपराध एवं अपराधी की पहचान सुनिश्चित होने के बाद किसी पीडि़ता के बयान बदलने की स्थिति में भी दोषी को सजा देने की राह खुल सकती है। गवाह के मुकरने के मामले में भी यह संभव होगा। पहचान न साबित कर पाने की जांच एजेंसियों की विवशता भी खत्म होगी। बायोमीट्रिक के माध्यम से सरलता से पहचान स्थापित की जा सकेगी। सबसे अहम बात, पहले से किसी अपराध में सजा काट चुका या जमानत पर चल रहा अपराधी यदि फिर किसी अपराध में संलिप्त होगा, तो संचित किए गए डाटा के आधार पर आसानी से उसे पकड़ा जा सकेगा।
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