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Positive India: कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए IIT रोपड़ ने बनाया 'कंटेनमेंट बॉक्स'

आईआईटी के वैज्ञानिक लगातार नए उपकरण ईजाद करने में लगे हुए हैं ताकि कोरोना को हराया जा सके। अब उन्होंने ऐसा अविष्कार किया है जो स्वास्थ्यकर्मियों को सुरक्षा प्रदान करेगा।

By Vineet SharanEdited By: Published: Tue, 28 Apr 2020 08:50 AM (IST)Updated: Tue, 28 Apr 2020 08:58 AM (IST)
Positive India: कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए IIT रोपड़ ने बनाया 'कंटेनमेंट बॉक्स'
Positive India: कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए IIT रोपड़ ने बनाया 'कंटेनमेंट बॉक्स'

नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। कोरोना महामारी ने देश को जकड़ रखा है। पूरा देश इस बीमारी को मात देने में लगा हुआ है। इन सबके बीच इस बीमारी के तमाम पहलुओं पर शोध करते हुए आईआईटी के वैज्ञानिक लगातार नए उपकरण और चीजें ईजाद करने में लगे हुए हैं, ताकि कोरोना को हराया जा सके। कोरोना के इलाज के दौरान डॉक्टर और अन्य हेल्थ प्रोफेशनल्स को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। कई बार स्वास्थ्य कर्मियों के कोरोना से संक्रमित होने की खबरें भी सामने आ रही हैं।

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स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा

इसे देखते हुए आईआईटी के वैज्ञानिकों और दयानंद मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल- लुधियाना के डॉक्टरों ने मिलकर ऐसा अविष्कार किया है, जो स्वास्थ्यकर्मियों और डॉक्टरों को सुरक्षा का अतिरिक्त लेयर प्रदान करेगा, ताकि कोरोना के इन्फेक्शन से उनका बचाव हो सके।

आईआईटी रोपड़ के प्रोफेसर आशीष साहनी ने बताया कि इस बीमारी के दौरान रोगी की देखरेख करने वाले हेल्थ केयर प्रोफेशनल्स भी खतरे में होते हैं। हालांकि, वे तमाम चीजों से अपना बचाव कर रहे होते हैं, लेकिन कई बार रोगी के निकट संपर्क में आने, खांसने या छींकने के दौरान इन्फेक्शन की संभावना बढ़ जाती है। इसे ध्यान में रखते हुए हमने 'कंटेनमेंट बॉक्स' का निर्माण किया है।

यूं होता कंटेनमेंट बॉक्स इस्तेमाल

कंटेनमेंट बॉक्स को रोगी के मुंह पर रखना होता है। रोगी को लिटाने के दौरान, वेंटिलेटर का पाइप मुंह में डालने के दौरान और ऑपरेशन के दौरान इस बॉक्स को मुंह में रखा जा सकता है। दयानंद मेडिकल कॉलेज के डॉ विवेक गुप्ता ने बताया कि आदर्श तौर पर ऐसे रोगियों को निगेटिव प्रेशर रूम में रखना होता है, लेकिन रोगियों की संख्या जिस अनुपात में बढ़ रही है, ऐसे में यह संभव नहीं है। वहीं, सभी आइसोलेशन रूम और आईसीयू को निगेटिव प्रेशर वाले सप्लाई रूम में तब्दील करना महंगा काम है।

बॉक्स की क्षमता की हो चुकी जांच

डॉक्टर साहनी का कहना है कि मौजूदा समय में इस तरह के बॉक्स को मंगाना आसान नहीं है। ऐसे में इसके निर्माण के समय इस बात का विशेष तौर पर ध्यान रखा गया है। डॉ विवेक गुप्ता ने बताया कि इसमें लकड़ी, मोटी पीवीसी शीट, वेल्क्रो और अस्पताल में मिलने वाले दवा के ट्यूब का प्रयोग किया गया है। डॉ गुप्ता ने बताया कि ऐसे में छींकने, खांसने के दौरान पार्टिकल बाहर के वातावरण में नहीं आता है, बल्कि निगेटिव सेक्शन की वजह से वहीं ठहर जाता है। रोगी को ऑक्सीजन या वेंटिलेटर की जरूरत होने पर भी इस बॉक्स के माध्यम से उसे जोड़ा जा सकता है। साहनी ने बताया कि इस बॉक्स का डिजाइन इस तरह से तैयार किया गया है कि इसे अस्पताल में उपलब्ध गैस सप्लाई के वैक्यूम द्वारा कनेक्टेड निगेटिव प्रेशर चैंबर में भी कंवर्ट किया जा सकता है। ऐसे में एरोसॉल लेवल पार्टिकल फिल्टर से होकर गुजरते हैं। इसकी कंटेनमेंट क्षमता को दयानंद मेडिकल कॉलेज द्वारा जांचा गया है।

दो सौ रुपये में बनाया जा सकता है

दयानंद मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर विवेक गुप्ता और डॉ जी एस वांडर ने बताया कि हमारी कोशिश है कि अन्य अस्पताल भी इसका प्रयोग करें। यह एक सुरक्षित और कारगर तरीका है। रोगी को किसी तरह की असुविधा न हो, इसकी भी जांच की गई है। इस जांच में पाया गया कि रोगी के ऑक्सीजन के स्तर में किसी तरह की कमी नहीं आई और न ही उसे किसी तरह का डर महसूस हुआ। प्रोफेसर साहनी और डॉ विवेक गुप्ता का कहना है कि इस डिजाइन का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसे बनाना बड़ा आसान है और इसे कहीं ले जाना भी मुश्किल नहीं है। वहीं, इसको बनाना भी बेहद सस्ता है, इसे दो सौ रुपये में बनाया जा सकता है। इससे सप्लाई चेन पर होने वाली निर्भरता भी कम हो जाएगी। 


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