हार्ट अटैक से मरने वालों की संख्या में बढ़ोतरी के पीछे कोरोना भी कारण, जानलेवा साबित होती निष्क्रिय जीवनशैली
हमारा जीवन आजकल अधिक ही भौतिकवादी हो गया है। शारीरिक सक्रियता लगभग खत्म हो गई है। सुबह कम से कम दो घंटे अपने शरीर को दें। इससे शरीर स्वस्थ एवं मन स्थिर रहेगा और काम करने के लिए ऊर्जा मिलेगी।

नई दिल्ली, डा. महेश परिमल। हाल में हार्ट अटैक से मरने वालों की संख्या में जो बढ़ोतरी हुई है, उसके पीछे कोरोना भी एक कारण है। कोराना काल के दूसरे दौर में कई मरीज हास्पिटल जाने से बचने लगे थे। इस कारण उन्हें जीवन रक्षक दवाएं नहीं मिल पाई थीं। जिन मरीजों ने कोरोना को पहचानने में देर की, ऐसे लोगों में खतरा बढ़ा। इनमें से ही कई ऐसे थे, जिन्हें हृदय की समस्या थी। उनमें से कई लोगों में खून का परिभ्रमण उचित तरीके से नहीं हो रहा है। कई लोगों के हृदय में दर्द होते रहता है। इसके बाद भी उस पर ध्यान न दिया जाना, कड़े परिश्रम के बाद भी आराम न करना हार्ट अटैक को आमंत्रण देना होता है।
...तो भविष्य में यही हमारा फिक्स डिपाजिट होगा
हमारा जीवन आजकल अधिक ही भौतिकवादी हो गया है। शारीरिक सक्रियता लगभग खत्म हो गई है। लोग पूरा दिन कुर्सी पर बैठकर काम करते रहते हैं। अपने शरीर को कुछ समय नहीं दे पाते हैं। हमें धन के पीछे इतना नहीं भागना चाहिए, अपने शरीर पर भी ध्यान देना जाना चाहिए। यदि हम काम के साथ-साथ स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें तो भविष्य में यही हमारा फिक्स डिपाजिट होगा, जो संक्रमण काल में काम आएगा। पड़ोस के एक मंदिर के पुजारी की यह शिकायत है कि आरती के समय गिनती के लोग ही आते हैं।
कब ब्रेन स्ट्रोक अपनी उपस्थिति दर्ज करा लेता...!
मन की शांति के लिए मंदिर ही ऐसा स्थान है, जहां कुछ पलों का सुकून मिलता है, पर भाग-दौड़ भरी जिंदगी में उसके लिए भी समय नहीं है। अब तो परिवार वाले भी यही शिकायत करते दिखते हैं कि उनके पास परिवार के लिए भी वक्त नहीं है। सारा दिन नौकरी या फिर बिजनेस में व्यस्त रहने वाले के पास सुकून के दो पल नहीं होते। ऐसे में कब ब्रेन स्ट्रोक अपनी उपस्थिति दर्ज करा लेता है, पता ही नहीं चलता।
तनाव जीवन का आवश्यक अंग बन गया है...!
डाक्टर बार-बार अपने मरीजों को यह सलाह देते हैं कि सुबह कम से कम दो घंटे अपने शरीर को दें। इससे मन स्थिर रहेगा और काम करने के लिए ऊर्जा मिलेगी, परंतु इसे मानता कौन है? अधिक धन कमाने के चक्कर में उनका शरीर उच्च रक्तचाप और डायबिटिज जैसी बीमारियों का घर बन जाता है। अब जीवन काफी कठिन हो गया है। तनाव जीवन का आवश्यक अंग बन गया है। प्रतिस्पर्धा के चलते शरीर पर ध्यान न देना विवशता है।
परिवार का होना थोड़ी राहत तो देता है, पर वह भी साइलेंट किलर के आगे लाचार है। एक-एक कर कई साथी हमसे विदा ले रहे हैं। हम उनके जाने की वजह को समझ नहीं पा रहे हैं। हम गाफिल हैं, खुद से, परिवार से और समाज से। आपके होने का अहसास आपके अपनों के पास है। जरा उनसे पूछें-उनकी नजरों में आपकी अहमियत क्या और कितनी है? अपनी आदतों के कारण मौत के आगोश में समाने वाले यह नहीं सोचते हैं कि उनके जाने से कितने लोग जिंदा रहकर भी मर गए।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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