COP 27: पर्यावरण सुधार के लिए आर्थिक मदद देने को संपन्न देश तैयार नहीं, सहमति न बनने से सम्मेलन एक दिन बढ़ा
मिस्र में हुए पर्यावरण सम्मेलन में वायुमंडल में स्वच्छ करने के लिए विकासशील और गरीब देशों को मदद देने के लिए विकसित (संपन्न) देश तैयार नहीं हैं। पर्या ...और पढ़ें

नई दिल्ली, पीटीआइ। मिस्र में हुए पर्यावरण सम्मेलन में वायुमंडल में स्वच्छ करने के लिए विकासशील और गरीब देशों को मदद देने के लिए विकसित (संपन्न) देश तैयार नहीं हैं। पर्यावरण सुधार संबंधी घोषणा पर सहमति न बन पाने के कारण सम्मेलन को एक दिन के लिए बढ़ा दिया गया है। अब सम्मेलन शनिवार को संपन्न होगा। गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र की ओर से जो मसौदा आया था उसमें ज्यादातर वही बातें हैं, जो 2021 में ग्लास्गो के सम्मेलन में कही गई थीं।
शुक्रवार के मसौदे में कुछ नए बिंदु शामिल किए गए। इसमें पर्यावरण की वजह से नुकसान उठाने वाले गरीब देशों को आर्थिक सहायता देने और विस्थापन के शिकार लोगों की सहायता करने का निर्णय लिया गया है। लेकिन विकसित देशों, खासतौर से अमेरिका ने बाढ़, मध्यम गति के तूफान और ऐसी ही अन्य वजह से विस्थापित होने वालों की मदद से असहमति जता दी। कहा कि इससे वे दुनिया भर में सामान्य मौसमी बदलावों में मदद के लिए कानूनी रूप से जिम्मेदार हो जाएंगे।
भारत सहित कई विकासशील और गरीब देश लंबे समय से इस तरह के मामलों में मदद की मांग करते रहे हैं। मसौदे में तेल, गैस और कोयले का उपयोग चरणबद्ध तरीके से बंद करने के भारत के प्रस्ताव की अनदेखी कर दी गई है। विकासशील और गरीब देशों की पर्यावरण सुधार के लिए धन और तकनीक की मांग को भी विकसित देशों ने अनसुना कर दिया है। सम्मेलन में विकसित देशों ने हानिकारक गैसों का सर्वाधिक उत्सर्जन करने वाले 20 देशों की सूची बनाकर उनके लिए ईंधन उपयोग के नए नियम बनाने की चाल चली।
इस सूची में भारत और चीन भी शामिल हैं। ऐसा करके विकसित देशों ने बीते दशकों में पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले अपने कृत्यों पर पर्दा डाल दिया और भारत व चीन को जिम्मेदार बनाने की कोशिश की। लेकिन भारत और चीन के कड़े विरोध के कारण विकसित देशों की यह कोशिश परवान नहीं चढ़ सकी। संयुक्त राष्ट्र का मसौदा वायुमंडल का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस रखने के लिए हानिकारक गैसों के उत्सर्जन में कमी के लिए प्रभावी प्रयासों की जरूरत बताता है। गैसों का उत्सर्जन कम न होने पर दुष्परिणामों की चेतावनी देता है। विकासशील और गरीब देशों की पर्यावरण सुधार के लिए धन की मांग पर इस सम्मेलन में विकसित देशों ने कोई चर्चा भी नहीं की, जबकि यह मुद्दा सम्मेलन की कार्यसूची में शामिल था।
विकसित देशों ने 2009 में सिद्धांत रूप में आर्थिक और तकनीक सहायता देने का प्रस्ताव स्वीकार किया था, 2020 से यह दी भी जानी थी। 2015 में हुए पेरिस समझौते में भी प्रतिवर्ष 100 अरब डालर की यह सहायता देने का उल्लेख है। लेकिन विकसित देशों ने उसे देना शुरू नहीं किया। अब वे उस सहायता पर चर्चा भी नहीं करना चाहते। तेल और गैस का उपयोग चरणबद्ध तरीके बंद करने के प्रस्ताव पर भी विकसित देश चुप हैं। विशेषज्ञ इसे हैरान करने वाला रुख बता रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के ताजा मसौदे का अमेरिका, यूरोपीय संघ और कई विकासशील देश समर्थन कर रहे हैं।

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