संवैधानिक रास्ता, संसद का संयुक्त अधिवेशन
भूमि अधिग्रहण बिल को लेकर सरकार की सारी चिंता राज्यसभा को लेकर है। राज्यसभा में एनडीए अल्पमत में है। यानी उसके पास लोकसभा की तरह यहां बहुमत नहीं है। इसलिए इस सदन में बिल का पास होना असंभव है। ऐसी स्थिति में सरकार के पास इस मसले पर संसद का
भूमि अधिग्रहण बिल को लेकर सरकार की सारी चिंता राज्यसभा को लेकर है। राज्यसभा में एनडीए अल्पमत में है। यानी उसके पास लोकसभा की तरह यहां बहुमत नहीं है। इसलिए इस सदन में बिल का पास होना असंभव है। ऐसी स्थिति में सरकार के पास इस मसले पर संसद का संयुक्त अधिवेशन बुलाने का विकल्प है।
अगर ऐसा हुआ तो यह भी देश के लोकतांत्रिक इतिहास में चौथी बार होगा जब किसी मसले पर संयुक्त अधिवेशन को बुलाया जाएगा। अभी तक केवल तीन बार संसद का संयुक्त अधिवेशन बुलाया गया है।
दहेज निरोधक कानून : सबसे पहली बार जवाहर लाल नेहरू के समय में संसद का संयुक्त अधिवेशन बुलाया गया था। 1961 में दहेज निरोधक कानून को लेकर संसद का संयुक्त अधिवेशन बुलाया गया था। उस वक्त दोनों सदनों में कांग्रेस बहुमत में थी, लेकिन नेहरू ऐक्ट के कुछ विवादित मुद्दों पर दोनों सदनों में एकसाथ चर्चा कराने के पक्ष में थे।
बैंकिंग सर्विस कमिशन रिपील बिल : दूसरी बार संयुक्त अधिवेशन इंदिरा गांधी सरकार ने बुलाया था ताकि बैंकिंग सर्विस कमिशन रिपील बिल 1978 को पास कराया जा सके।
पोटा ऐक्ट : तीसरी बार केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने विवादित पोटा ऐक्ट को लेकर 2002 में संयुक्त अधिवेशन बुलाया था।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।