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    विपक्षी एकता में बिखराव के लिए राजद से ज्यादा कांग्रेस जिम्मेवार, नीतीश को हाशिये पर डालने की थी साजिश

    Updated: Sun, 28 Jan 2024 09:54 PM (IST)

    कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे चाहे जो आरोप लगाएंमगर सच्चाई यह भी है कि आइएनडीआइए के बिहार में बिखराव के लिए राजद से ज्यादा कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व जिम्मेवार है जिसने प्रत्येक कदम पर जदयू समेत तमाम क्षेत्रीय दलों की अनदेखी की।शहर बदल-बदल कर कांग्रेस ने अपने नेतृत्व में संयुक्त विपक्ष की पांच बैठकें कीं मगर नतीजा सिफर रहा। न सीट बंटी और न ही साझा घोषणा पत्र पर काम बढ़ा।

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    कांग्रेस ने नीतीश कुमार को खलनायक के रूप में किया परिभाषित (फाइल फोटो)

    अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। बिहार में एनडीए की नई सरकार बन चुकी है। बदले हालात में कांग्रेस ने नीतीश कुमार को खलनायक के रूप में परिभाषित किया है, लेकिन इसके लिए तहखाने के अंदर की राजनीति भी कम जिम्मेवार नहीं है, जिसे पढ़ना अपेक्षित और समसामयिक होगा। इसलिए कि विपक्षी एकता की पहल नीतीश कुमार ने ही की थी और अंत का प्रारंभ भी उन्होंने ही किया है।

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    कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे चाहे जो आरोप लगाएं, मगर सच्चाई यह भी है कि आइएनडीआइए के बिहार में बिखराव के लिए राजद से ज्यादा कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व जिम्मेवार है, जिसने प्रत्येक कदम पर जदयू समेत तमाम क्षेत्रीय दलों की अनदेखी की।

    आखिर यूं ही कोई बेवफा नहीं होता

    शहर बदल-बदल कर कांग्रेस ने अपने नेतृत्व में संयुक्त विपक्ष की पांच बैठकें कीं, मगर नतीजा सिफर रहा। न सीट बंटी और न ही साझा घोषणा पत्र पर काम बढ़ा। नीतीश कुमार की एक बात नहीं मानी गई। विपक्षी गठबंधन को उन्होंने आइएनडीआइए के बदले भारत नाम सुझाया। उसे भी खारिज कर दिया गया। बिहार की तरह राष्ट्रीय स्तर पर जातिवाद गणना कराने का जिक्र तक करना भी जरूरी नहीं समझा गया।

    दरअसल, विपक्षी एकता के प्रथम प्रयास के साथ-साथ बिखराव का प्लाट भी तैयार होता गया। जदयू का आरोप है कि कांग्रेस की नीयत में प्रारंभ से ही खोट थी। तभी पटना में 13 जून 2023 की संयुक्त विपक्ष की पहली बैठक में राहुल गांधी एवं खरगे ने जाने से आनाकानी की तो इसे 23 जून करना पड़ा।

    कांग्रेस पर आइएनडीआइए को हड़पने का लगा इल्जाम

    जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने खरगे के आरोपों का उन्हीं की शैली में जवाब देते हुए कांग्रेस पर आइएनडीआइए को हड़पने का इल्जाम लगाया है। इस क्रम में नीतीश कुमार के प्रयासों का जिक्र जरूरी हो जाता है। बिहार में भाजपा का साथ छोड़कर नीतीश ने 10 अगस्त 2022 को राजद एवं कांग्रेस समेत सात दलों की सरकार बनाई थी और उसी दिन संकेत दिया था कि कांग्रेस को साथ लेकर विरोधी दलों का मोर्चा बनाएंगे।

    कांग्रेस को अलग करके तीसरे मोर्चे की तैयारी में जुटे क्षेत्रीय दलों से नीतीश ने देवीलाल की जयंती पर हरियाणा के फतेहाबाद में 25 सितंबर को हाथ जोड़कर आग्रह किया था कि कांग्रेस के बिना विपक्षी एकता की संभव नहीं। उसी दिन उन्होंने लालू के साथ दिल्ली में सोनिया गांधी से मुलाकात की और विपक्षी एकता का सूत्रपात किया। इसके बाद उन्होंने घूम-घूम कर क्षेत्रीय दलों को एक करने का प्रयास प्रारंभ कर दिया।

    केसीआर के तीसरे मोर्चे के प्रयासों पर पानी फेर दिया

    केसीआर के तीसरे मोर्चे के प्रयासों पर पानी फेर दिया, परंतु कांग्रेस ने नीतीश को इस लायक भी नहीं समझा कि उन्हें संयोजक बना दे या कोई जिम्मेवारी सौंप दे। राहुल का वह बयान भी नीतीश को चुभता रहा, जिसे उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा के प्रथम चरण में क्षेत्रीय दलों के बारे में दिया था। राहुल ने कहा था कि क्षेत्रीय दलों के पास कोई विचारधारा नहीं है।

    एक दौर ऐसा भी आया जब नीतीश ने स्वयं को बिहार तक सीमित कर लिया और आग्रह करते रहे कि सीट बंटवारे में कांग्रेस विलंब न करे। किंतु कोई सुनवाई नहीं। कांग्रेस अपनी ही धुन में गाती रही। 17-18 जुलाई को बेंगलुरू में दूसरी और 31 अगस्त को मुंबई में तीसरी बैठक के बाद पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बहाने कांग्रेस ने साढ़े तीन महीने गोता लगा दिया। इस बीच क्षेत्रीय दल परेशान होते रहे।

    मुंबई बैठक में तय हुई थी चुनाव की रणनीति  

    मुंबई बैठक में तय हुआ था कि पीएम प्रत्याशी घोषित किए बिना ही चुनाव में प्रस्थान करेंगे, लेकिन दिल्ली में 19 दिसंबर को चौथी बैठक में ममता बनर्जी एवं अरविंद केजरीवाल के जरिए पीएम चेहरा के लिए खरगे का नाम आगे करने को केसी त्यागी कांग्रेस की चाल के रूप में देखते हैं। उनका कहना है कि यह नीतीश को हाशिये पर डालने की साजिश थी। लगभग इसी दौरान राजद के कतिपय नेताओं-मंत्रियों के धर्म आधारित बयानों एवं इंटरनेट ज्ञान के बावजूद लालू प्रसाद एवं तेजस्वी यादव की चुप्पी ने भी नीतीश कुमार को अहसास करा दिया कि ज्यादा देर हुई तो लोकसभा चुनाव में उन्हें नुकसान हो सकता है।

    अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा समारोह पर कांग्रेस के स्टैंड ने नीतीश के रहे-सहे धैर्य को भी तोड़ दिया। भाजपा ने जब हरी झंडी दिखाई तो उन्होंने गठबंधन बदलने में देर नहीं की।

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