चुनावी रणनीति का पूरा दारोमदार अब सूबे के दिग्गजों पर नहीं छोड़ेगा कांग्रेस हाईकमान, होने जा रहा ये बड़ा परिवर्तन
हिन्दी पट्टी के तीन राज्यों की चुनावी रणनीति की बागडोर स्थानीय क्षत्रपों पर छोड़ने का बड़ा खामियाजा भुगतने के बाद कांग्रेस अब इसको लेकर सतर्क होती दिख रही है। लोकसभा चुनाव के बाद अगले साल होने वाले हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव के चुनावी प्रबंधन की रणनीति का संचालन पेशेवर विशेषज्ञों के जरिए करने का पार्टी का ताजा उठाया गया कदम इसका साफ संकेत है।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। हिन्दी पट्टी के तीन राज्यों की चुनावी रणनीति की बागडोर स्थानीय क्षत्रपों पर छोड़ने का बड़ा खामियाजा भुगतने के बाद कांग्रेस अब इसको लेकर सतर्क होती दिख रही है। लोकसभा चुनाव के बाद अगले साल होने वाले हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव के चुनावी प्रबंधन की रणनीति का संचालन पेशेवर विशेषज्ञों के जरिए करने का पार्टी का ताजा उठाया गया कदम इसका साफ संकेत है।
इन दोनों सूबों के चुनाव प्रबंधन की कमान चुनावी विशेषज्ञ सुनील कानूगोलू को सौंपने के फैसले से यह भी साफ है कि चाहे राज्यों में पार्टी के क्षत्रप जितने भी दमदार हों मगर पार्टी हाईकमान चुनावी रणनीति की बागडोर पूरी तरह से उन्हें सौंपने से परहेज करेगा।
इन तीन नेताओं के भरोसे बैठी रही कांग्रेस
कांग्रेस नेतृत्व को मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे तीन बड़े राज्यों में हुई आश्चर्यजनक पराजय ने सियासी रूप से डांवाडोल कर दिया है। मध्यप्रदेश में कमलनाथ पर कांग्रेस का पूरा दारोमदार था तो राजस्थान में अशोक गहलोत ने नेतृत्व को जीत का संपूर्ण भरोसा दे रखा था। वहीं, छत्तीसगढ में भूपेश बघेल पार्टी की चुनावी नैया डूबो देंगे इसका हाईकमान को तनिक भी भान नहीं था।
हाईकमान का हस्तक्षेप तो दूर सलाह तक दरकिनार किया
इन तीनों क्षत्रपों ने चुनावी रणनीति का संचालन पूरी तरह अपने हिसाब से किया और हाईकमान का हस्तक्षेप तो दूर सलाह तक दरकिनार कर दिया। मध्यप्रदेश में चुनाव के दौरान बढ़ रही चुनौतियों और उम्मीदवारों को लेकर सुनील कानूगोलू की रिपोर्टों तक को खारिज कर हाईकमान को चुनावी हस्तक्षेप नहीं करने दिया।
कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में उठा हार का मुद्दा
पिछले हफ्ते कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में तीनों राज्यों की हार को लेकर हुई चर्चा के दौरान यह मुद्दा उठा भी था। इन राज्यों के ताजा निराशाजनक प्रदर्शन के साथ ही कांग्रेस के पास तेलंगाना में अहम जीत की कामयाबी भी एक बड़ी वजह है जो राज्यों के चुनाव में केंद्रीय और राज्य नेतृत्व के बीच बेहतर सामंजस्य का उदाहरण बनकर उभरी है।
रेवंत रेड्डी को आगे रखते हुए सुनील कानूगोलू में विश्वास
तेलंगाना में चुनाव से तीन-चार महीने पहले तक कांग्रेस को भारत राष्ट्र समिति और भाजपा के बाद तीसरे पायदान पर आंका जा रहा था। लेकिन पार्टी नेतृत्व ने सूबे के पुराने दिग्गजों के तमाम एतराजों के बावजूद रेवंत रेड्डी को आगे रखते हुए सुनील कानूगोलू और उनकी टीम के चुनावी रणनीति के अनुसार उम्मीदवारों के चयन से लेकर चुनाव अभियान का संचालन किया।
हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव में जोखिम नहीं लेना चाहती पार्टी
हिन्दी पट्टी के अन्य तीन राज्यों के मुकाबले तेलंगाना में हाईकमान और रेवंत रेड्डी के बीच बेहतर समन्वय का ही नतीजा रहा कि कांग्रेस को पहली बार यहां की सत्ता में आने का मौका मिला है। इसीलिए हरियाणा और महाराष्ट्र के अगले चुनाव में पार्टी जोखिम नहीं लेना चाहती।
भूपेंद्र सिंह हुड्डा का राज्य पार्टी संगठन पर पूरा वर्चस्व
वैसे हरियाणा में कांग्रेस के लिए चुनौती यह है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा का राज्य के पार्टी संगठन पर पूरा वर्चस्व है और स्वाभाविक रूप से विधानसभा चुनाव की रणनीति का संचालन अपने हिसाब से चाहेंगे। लेकिन चुनाव से करीब दस महीने पहले ही कानूगोलू को हरियाणा के चुनावी रणनीति के संचालन की जिम्मेदारी सौंप कर पार्टी नेतृत्व ने अपने हस्तक्षेप की गुंजाइश का रास्ता खोल दिया है।
महाराष्ट्र की बदली राजनीतिक परिस्थितियों में महाविकास अघाड़ी गठबंधन में कांग्रेस अपनी बड़ी भूमिका देख रही और ऐसे में चुनावी रणनीति का नियंत्रण हाईकमान के हाथों में ही रहे यह सुनिश्चित किया गया है।
ये भी पढ़ें: Shivanand Patil: कर्नाटक के मंत्री के बिगड़े बोल, बोले- किसान चाहते हैं बार-बार सूखा पड़े ताकि कर्ज माफ हो

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।