'भाजपा यूसीसी को बना रही राजनीतिक हथियार', UCC को लेकर कांग्रेस ने BJP पर साधा निशाना
कांग्रेस ने उत्तराखंड में यूसीसी लागू किए जाने के बाद गुजरात सरकार द्वारा राज्य में यूसीसी की आवश्यकता का आकलन कर मसौदा विधेयक तैयार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज के अधीन एक समिति गठित किए जाने पर चिंता जाहिर की। जयराम रमेश ने कहा कि उन्होंने कहा कि उत्तराखंड यूसीसी अत्यधिक हस्तक्षेप वाला एक खराब कानून है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू किए जाने के बाद गुजरात की पहल पर सवाल उठाते हुए मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने कहा कि यह 21वें विधि आयोग की सिफारिशों के खिलाफ है, जिसका गठन मोदी सरकार ने किया था।
कांग्रेस के अनुसार समान नागरिक संहिता संविधान के अनुच्छेद 44 में की गई परिकल्पना के अनुरूप केवल व्यापक चर्चा के बाद ही वास्तविक आम सहमति बनाने के उद्देश्य से आ सकती है और इसे देश को 'स्थायी ध्रुवीकरण' की स्थिति में रखने के लिए राजनीतिक साधन नहीं बनाया जा सकता।
गुजरात सरकार ने बनाई कमेटी
कांग्रेस के संचार महासचिव जयराम रमेश ने उत्तराखंड में यूसीसी लागू किए जाने के बाद गुजरात सरकार द्वारा राज्य में यूसीसी की आवश्यकता का आकलन कर मसौदा विधेयक तैयार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज के अधीन एक समिति गठित किए जाने पर पार्टी का यह दृष्टिकोण जाहिर किया।
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड यूसीसी अत्यधिक हस्तक्षेप वाला एक खराब कानून है। यह कानूनी सुधार का कोई साधन नहीं है, क्योंकि इसमें पिछले दशक में पारिवारिक कानून के संबंध में व्यक्त की गई वास्तविक चिंताओं पर गौर नहीं किया गया है और भाजपा के विभाजनकारी एजेंडे के अभिन्न अंग के रूप में इसे जबरन थोपा गया है।
अनुच्छेद 44 के विरुद्ध बताया
- जयराम ने कहा कि उत्तराखंड यूसीसी अनुच्छेद 44 की उस मूल भावना के विरुद्ध है जिसमें भारत के संपूर्ण क्षेत्र में एक समान नागरिक संहिता की बात कही गई है। उन्होंने कहा कि 21वें विधि आयोग ने 182 पृष्ठों का 'पारिवारिक कानून में सुधार पर परामर्श पत्र' के पैरा 1.15 में कहा था कि भारतीय संस्कृति की विविधता को सराहा जा सकता है और सराहना किया जाना चाहिए।
- लेकिन इस प्रक्रिया में किसी विशिष्ट समूह या समाज के कमजोर वर्गों को वंचित नहीं किया जाना चाहिए। इस संघर्ष के समाधान का मतलब सभी मतभेदों को खत्म करना नहीं है। इसलिए इस आयोग ने समान नागरिक संहिता प्रदान करने के बजाय उन कानूनों से निपटा है जो भेदभावपूर्ण हैं, क्योंकि वर्तमान समय में समान नागरिक संहिता न तो आवश्यक है और न ही उसकी जरूरत।
समान नागरिक संहिता पर विवाद
जयराम के अनुसार 14 जून 2023 को एक प्रेस नोट में 22वें विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता के विषय की जांच करने के अपने इरादे को अधिसूचित करते हुए कहा कि यह कार्य विधि एवं न्याय मंत्रालय द्वारा भेजे गए संदर्भ पर किया जा रहा है।
22वें विधि आयोग के यूसीसी पर रिपोर्ट दिए बिना 31 अगस्त 2024 को इसे समाप्त कर तीन सितंबर 2024 को 23वें विधि आयोग की सरकार की ओर घोषणा गई, जिसकी संरचना अभी तक सार्वजनिक नहीं की गई है।
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