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    सांप्रदायिक घटनाओं व सीमा विवाद के साथ बीता कर्नाटक का साल 2022, अब विधानसभा चुनाव की तैयारी

    By Edited By: Gaurav Tiwari
    Updated: Sat, 31 Dec 2022 12:43 PM (IST)

    कर्नाटक विधानसभा के चुनाव में बस 4 महीनों का ही वक्त बचा है। 2022 के साल में कर्नाटक कई विवादों से घिरा रहा है। हिजाब विवाद ने राज्य को हिंसक रूप में तब्दील कर दिया था जगह-जगह विरोध प्रर्दशन हुए थे। (फाइल फोटो)

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    2023 में कर्नाटक में होगें विधानसभा के चुनाव

    बेंगलुरु (पीटीआई)। कर्नाटक का साल 2022 महाराष्ट्र के साथ सीमा विवाद और बड़े स्तर पर सांप्रदायिक घटनाओं के साथ बीता। विधानसभा चुनावों के लिए अब सिर्फ चार महीने बचे हैं, ऐसे में इस साल के दौरान सांप्रदायिक हत्याओं के अलावा हिजाब, हलाल, अज़ान, लव जिहाद जैसे मुद्दे राज्य में हावी रहे।

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    बारिश ने किया परेशान

    वहीं, इस साल मूसलाधार बारिश के कारण बाढ़ ने कर्नाटक के कुछ जगहों में कहर बरपाया। बेंगलुरू को भी बारिश की मार झेलनी पड़ी, शहर के कई हिस्से जलमग्न हो गए, जिससे सामान्य जनजीवन और व्यवसाय अस्त-व्यस्त हो गया। इसके अलावा, तमिलनाडु के साथ अंतर-राज्यीय जल विवाद का मुद्दा भी 2022 में सुर्खियां बना, जब कर्नाटक ने कावेरी नदी पर मेकेदातु (बांध) परियोजना के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर जोर दिया। इसको लेकर दोनों राज्यों के बीच तल्खी देखी गई।

    पहले से चल रहा था हिजाब विवाद

    कर्नाटक में 2022 शुरू होते ही कोरोना वायरस ने भी जमकर अपना कहर बरपाया। इसके अलावा राज्य में हिजाब विवाद पहले से ही चल रहा था, यह धीरे-धीरे एक राष्ट्रीय मुद्दे में भी बदल गया। दरअसल, मुस्लिम छात्राओं को हिजाब पहनकर कॉलेजों में आने की अनुमति नहीं दी जा रही थी, सरकार ने भी कक्षाओं में हिजाब पर प्रतिबंध लगा दिया था। फिर लड़कियों ने यह कहते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया कि हिजाब पहनना भारत के संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है। इस मुद्दे ने राज्य के कई हिस्सों में हिजाब के समर्थन और विरोध दोनों में मजबूत आवाज के साथ तनाव को जन्म दिया था।

    सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा हिजाब का मामला

    इस बीच, कर्नाटक एचसी ने फैसला सुनाया कि हिजाब आवश्यक इस्लामी धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है और शैक्षणिक संस्थानों में इसे पहनने पर राज्य सरकार के प्रतिबंध को बरकरार रखा। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई थी। अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर एक फैसला सुनाया और कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ चीफ जस्टिस के समक्ष अपील करने का निर्देश दिया।

    सांप्रदायिक हत्याओं से दहला कर्नाटक

    सावरकर समर्थक विरोध प्रदर्शनों ने विशेष रूप से शिवमोग्गा और दक्षिण कन्नड़ जिलों में सांप्रदायिक हत्याओं ने शांति और सद्भाव को काफी हद तक बिगाड़ दिया। फरवरी में शिवमोग्गा के कई हिस्सों में तनाव फैल गया क्योंकि 26 वर्षीय बजरंग दल के कार्यकर्ता हर्षा की हत्या के बाद हिंसा भड़क उठी। बाद में, जिला भारतीय युवा मोर्चा समिति के सदस्य 32 वर्षीय प्रवीण नेत्तर को अज्ञात मोटरसाइकिल सवार हमलावरों ने 26 जुलाई की रात दक्षिण कन्नड़ जिले के सुलिया तालुक के बेल्लारे में मार डाला, जिससे आक्रोश और फैल गया। पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के साथ संदिग्ध संबंधों वाले दो लोगों को कर्नाटक पुलिस ने इस सिलसिले में गिरफ्तार किया था। वहीं, इस मामले को लेकर अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ लोगों की भी हत्या हुई।

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    आरक्षण का मुद्दा

    आरक्षण के मुद्दे और विभिन्न समुदायों द्वारा आंदोलन ने भी कोटा बढ़ाने की मांग को लेकर पूरे साल सरकार को दबाव में रखा। चुनावों को ध्यान में रखते हुए सीएम बोम्मई ने एससी के लिए आरक्षण 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 17 प्रतिशत और एसटी के लिए 3 प्रतिशत से 7 प्रतिशत तक बढ़ाकर अपनी सरकार की जिम्मेदारी पूरी की।

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