नई दिल्ली, पीटीआई। पूर्व मुख्य न्यायाधीश यू यू ललित ने शनिवार को कहा कि देश में शीर्ष अदालतों और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम सिस्टम एक 'आदर्श प्रणाली' है।
पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने यह टिप्पणी केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू द्वारा कॉलेजियम व्यवस्था पर उठाए गए सवाल की पृष्ठभूमि में की है।
एक कार्यक्रम में जस्टिस ललित ने जोर देकर कहा कि कॉलेजियम सिस्टम ऐसी संस्था को न्यायाधीशों की नियुक्ति का भार सौंपती है, जो जमीनी स्तर पर न्यायाधीशों के कामकाज की निगरानी करती है और सलाह के बाद शीर्ष अदालत द्वारा सिफारिश की जाती है।

इस दौरान उन्होंने जजों के नामों की सिफारिश की सख्त प्रक्रिया का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि एक जज के नाम की सिफारिश करते समय न सिर्फ उनके परफॉर्मेंस को बल्कि अन्य जजों की राय के साथ-साथ आईबी की रिपोर्ट को भी प्रक्रिया का हिस्सा माना जाता है।
'आदर्श प्रणाली है कॉलेजियम सिस्टम'
उन्होंने कॉलेजियम सिस्टम को एक 'आदर्श प्रणाली' बताते हुए कहा कि आपके पास ऐसे व्यक्ति हैं जिनकी पूरी प्रोफाइल उच्च न्यायालयों द्वारा देखा जाता है। उनका प्रोफाइल एक या दो व्यक्ति द्वारा नहीं, बल्कि एक संस्था के रूप में बार-बार देखा जाता है। इसी प्रकार उच्च न्यायालयों के समक्ष प्रैक्टिस करने वाले वकील के परफॉर्मेंस को जज रोजाना देखते हैं। ऐसे में उनकी प्रतिभाओं को परखने के लिए कौन बेहतर है ? वो जो यहां पर कार्यकारी के रूप में बैठा है या फिर वो जो जमीनी स्तर पर उनके परफॉर्मेंस को देख रहा है।
कॉलेजियम सिस्टम के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए जस्टिस ललित ने बताया कि हम जज के फैसलों को देखते हैं और देखते हैं कि लंबे समय तक उनका परफॉर्मेंस कैसा रहा। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के 5 जज इस पर विचार करते हैं कि व्यक्ति योग्य है या नहीं।
उन्होंने बताया कि इसके साथ ही कॉलेजियम कंसल्टी जजों की राय पर भी विचार करता है। इसके बाद उनकी प्रोफाइल भी देखी जाती है कि कहीं उनके खिलाफ कोई शिकायत तो दर्ज नहीं है या फिर उनके जीवन में कोई ब्लैक पार्ट तो नहीं रहा है। इसीलिए आईबी की रिपोर्ट पर भी ध्यान दिया जाता है। इसके बाद फैसला लिया जाता है।