नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। जलवायु परिवर्तन के कारण पूरे भारत में वसंत ऋतु धीरे-धीरे गायब हो रही है। क्लाइमेट सेंट्रल के एक नए अध्ययन में कहा गया है कि उत्तर भारत के कई हिस्सों में सर्दी से गर्मी जैसी स्थिति में अचानक बदलाव का अनुभव हो रहा है क्योंकि हाल के दशकों में फरवरी में तापमान में तेजी से वृद्धि हुई है। क्लाइमेट सेंट्रल ने आंकड़ों और विशेषज्ञों के हवाले से जानकारी दी है कि जलवायु में आते बदलावों के चलते भारतीय ऋतुओं में बदलाव आ रहा है। यह प्रभाव सर्दी के मौसम पर विशेष रूप से दिख रहा है। देश में कहीं सर्दी के दौरान तापमान बढ़ रहा है, तो कहीं कम हो रहा है। भारत के 33 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिए औसत मासिक तापमान की भी गणना की गई है।राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश सहित नौ राज्यों में जनवरी और फरवरी की तापमान वृद्धि दर के बीच 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक का अंतर देखा गया।

क्लाइमेट सेंट्रल के उपाध्यक्ष एंड्रयू पर्सिंग ने कहा कि जनवरी के दौरान मध्य और उत्तरी भारतीय राज्यों में ठंडक और उसके बाद फरवरी में बहुत तेज़ गर्मी से सर्दियों से वसंत जैसी स्थितियों में तेजी से उछाल आने की संभावना पैदा होती है। कोयला और तेल जलाकर, मनुष्यों ने धरती को गर्म कर दिया है, जिससे भारत भर में सभी मौसमों में गर्म स्थिति पैदा हो गई है।

अध्ययन में कहा गया है कि इस गर्मी का मुख्य कारण कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस जलाने से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का बढ़ता स्तर है। इस विश्लेषण का उद्देश्य सर्दियों (दिसंबर-फरवरी) पर ध्यान केंद्रित करते हुए भारत को इन वैश्विक रुझानों के प्रति जागरूक करना है।

गर्म होती सर्दियां

रिपोर्ट के मुताबिक अध्ययन में शामिल देश के प्रत्येक क्षेत्र में सर्दी के दौरान तापमान में वृद्धि दर्ज की गई है। 1970 के बाद से मणिपुर के तापमान में सबसे अधिक 2.3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज की गई है, जबकि दूसरी ओर देश की राजधानी दिल्ली के तापमान में सबसे कम यानी 0.2 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई है। देश के दक्षिणी भाग में दिसंबर और जनवरी में तेज़ गर्मी होती है। सिक्किम (2.4°) और मणिपुर (2.1°) में क्रमशः दिसंबर और जनवरी में तापमान में सबसे बड़ा बदलाव हुआ। देश के उत्तरी भाग में दिसंबर और जनवरी के दौरान हल्की गर्मी और यहां तक कि ठंडक भी थी। तापमान वृद्धि दर में सबसे बड़ा उछाल राजस्थान में हुआ, जहां फरवरी में तापमान जनवरी की तुलना में 2.6 डिग्री सेल्सियस अधिक था।

वैश्विक स्तर पर गर्म हो रही फरवरी

इस महीने की शुरुआत में, कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) ने कहा कि दुनिया में फरवरी रिकॉर्ड पर सबसे गर्म रही, औसत तापमान 1850-1900 के फरवरी के औसत से 1.77 डिग्री सेल्सियस अधिक था।

समाधान

जलवायु वैज्ञानिकों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए देशों को वैश्विक औसत तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक काल से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की आवश्यकता है। सीएसई की महानिदेशक सुनीत नारायणन कहती है कि देश ने 2023 में अब तक जो देखा है वह गर्म होती दुनिया में नया 'असामान्य' है। हम यहां जो देख रहे हैं वह जलवायु परिवर्तन का वॉटरमार्क है। ऐसी घटनाओं में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। एक चरम घटना जिसे हम हर 100 साल में एक बार देखते थे, अब हर पांच साल या उससे भी कम समय में घटित होने लगी है। यह हमारे सबसे गरीबों की कमर तोड़ रहा है, जो सबसे अधिक प्रभावित हैं।

इस बार सर्दियां हुई अधिक गर्म

यदि इस साल सर्दियों में तापमान से जुड़े आंकड़ों को देखें तो जहां जनवरी का महीना औसत से थोड़ा अधिक गर्म रहा, जबकि फरवरी 2023 में तापमान सामान्य से कहीं ज्यादा दर्ज किया गया। बता दें कि जहां फरवरी का औसत तापमान सामान्य (1981-2010 के औसत तापमान) से 1.36 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया वहीं दिन के समय का औसत तापमान 1.86 डिग्री रिकॉर्ड किया गया।

बढ़ रही है चरम मौसम की घटनाएं

भारत में 1 जनवरी से 30 सितंबर, 2023 तक 273 दिनों में से 235 दिन, 86 प्रतिशत से कुछ अधिक दिन - चरम मौसम की घटनाओं का अनुभव हुआ।

सीएसई की रिपोर्ट के अनुसार इन बीते नौ माह में मध्य प्रदेश ने सबसे ज्यादा चरम मौसमी घटनाओं का सामना किया है। जो करीब-करीब औसतन हर दूसरे दिन दर्ज की गई। हालांकि, इन आपदाओं में बिहार में सबसे ज्यादा लोगों की जान गई है। आंकड़ों के अनुसार जून से सितम्बर के बीच जहां बिहार में 642 लोगों की मौत हो गई, वहीं हिमाचल प्रदेश में इन आपदाओं की भेंट चढ़ने वालों का आंकड़ा 365 और उत्तर प्रदेश में 341 दर्ज किया गया। पंजाब में सबसे अधिक पशुधन की मौत हुई।

इसी तरह विश्लेषण के मुताबिक हिमाचल प्रदेश में सबसे ज्यादा 15,407 घर क्षतिग्रस्त हुए हैं। वहीं दूसरी तरफ पंजाब में सबसे ज्यादा 63,649 मवेशियों की मौत इन चरम मौसमी आपदाओं में हुई है।

केरल में चरम मौसम वाले दिनों की अधिकतम संख्या 67 और मौतें 60 दर्ज की गईं। तेलंगाना में सबसे अधिक प्रभावित फसल क्षेत्र दर्ज किया गया। 11,000 से अधिक घर नष्ट होने के साथ, कर्नाटक को इस मामले में सबसे अधिक नुकसान हुआ।

आपदा की दृष्टि से, बिजली और तूफान सबसे अधिक बार आए। 273 में से 176 दिनों में इस कारण से 711 लोगों की जान गई। इनमें से सबसे ज्यादा मौतें बिहार में हुईं लेकिन सबसे ज्यादा कहर भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन ने बरपाया, जिसके कारण 1,900 से अधिक लोगों की जान चली गई।

फरवरी में बढ़ती गर्मी से घटेगी गेहूं की पैदावार

कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मॉडलों पर किए गए अध्ययन के मुताबिक मौसम में बदलाव के चलते 2050 तक गेहूं की पैदावार में 23 फीसदी तक कमी आ सकती है। वहीं 2080 तक यह 25 फीसदी तक घट सकती है। इसकी सबसे बड़ी वजह फरवरी में तापमान सामान्य से अधिक रहना है। चौधरी चरन सिंह कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों डॉक्टर चंद्रशेखर कहते हैं कि पिछले कुछ सालों में फरवरी में गर्मी बढ़ जा रही है जो गेहूं की फसल को नुकसान पहुंचाता है। इस साल फरवरी में दिन के तापमान में 3 डिग्री और रात में 5 डिग्री तक की बढ़ोतरी देखी गई है। फरवरी का महीना गेहूं की फसल के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है। जनवरी और फरवरी में ही गेहूं की फसल में बालियां आती हैं और उनमें दाने भरते हैं। गर्म हवाओं के चलते ये दाने सूख जाते हैं जिससे फसल की उत्पादकता पर असर पड़ता है। मध्य प्रदेश के जबलपुर स्थित जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर एग्रो मेट्रोलॉजी डॉ.मनीष भान कहते हैं कि एक दशक पहले तक मार्च में तापमान बढ़ना शुरू होता था। इससे गेहूं की फसल को पकने में मदद मिलती थी। लेकिन पिछले कुछ सालों में फरवरी में ही तापमान तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में गेहूं में दाने बनने की प्रक्रिया पर असर पड़ता है। दाने छोटे रह जाते हैं और उपज घट जाती है। इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट के इंफ्रो कॉप मॉडल और फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के डिसीजन सपोर्ट सिस्टम फॉर एग्रो टेक्नोलॉजी ट्रांसफर, दोनों बताते हैं कि 2025 तक औसत तापमान डेढ़ डिग्री तक बढ़ सकता है। इससे 120 दिन वाली गेहूं की फसल 100 दिन में ही तैयार हो जाएगी। इससे दानों को मोटा होने का समय ही नहीं मिलेगा। गर्मी बढ़ने से पौधे में फूल जल्दी आ जाएंगे। इससे दाने छोटे हो जाएंगे और फसलें 120 दिन वाली फसल 100 दिन में ही तैयार हो जाएगी।

तीन दशकों में बदले तापमान ने बिगाड़ी गेहूं की पैदावार

केरल कृषि विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश के फैजाबाद और हरियाणा के हिसार स्थित कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने 1970 से 2019 के डेटा पर अध्ययन किया। इससे पता चलता है कि फरवरी में न्यूनतम औसत तापमान 5 से 8 डिग्री के बीच रहता है। लेकिन पिछले पांच सालों में फरवरी में कई दिनों में औसत तापमान इससे 5 डिग्री तक ज्यादा दर्ज किया गया। सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ड्राईलैंड एग्रीकल्चर के वैज्ञानिक डॉ. चंद्रशेखर के मुताबिक पूर्वी उत्तर प्रदेश में फरवरी में बढ़ते तापमान ने गेहूं की फसल को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया है। इस साल 14 फरवरी से 11 मार्च तक रात में तापमान सामान्य से अधिक दर्ज किया गया। 30 जनवरी को रात का तापमान सामान्य से 7.5 डिग्री अधिक था। जनवरी और फरवरी में गेहूं की बालियां बनती हैं। तब गेहूं मिल्किंग स्टेज में होता है। उस समय तापमान बढ़ने पर गेहूं के दाने सिकुड़ जाते हैं। दाना अगर बन चुका होता है तो गर्मी से वह पतला हो जाता है। रात में गर्मी ज्यादा होने से पौधे के लिए अपनी चोटों को ठीक कर पाना भी मुश्किल हो जाता है।

2023 रहा सबसे गर्म

डब्ल्यूएमओ स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट 2023 रिपोर्ट के अनुसार, साल भर लू, बाढ़, सूखा, जंगल की आग और तेजी से बढ़ते उष्णकटिबंधीय चक्रवातों ने तबाही मचाई, जिससे लाखों लोगों का रोजमर्रा का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया और कई अरब डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ। 1850-1900 औसत के सापेक्ष में 1850 से 2023 तक वैश्विक औसत तापमान अंतर डेटा सेट की तुलना करने पर पता चलता है कि दुनिया भर में गंभीर रूप से खाद्य असुरक्षित लोगों की संख्या दोगुनी से अधिक हो गई है, जो कि कोविड-19 महामारी से पहले 14.9 करोड़ लोगों से बढ़कर 2023 में 33.3 करोड़ लोगों (विश्व खाद्य कार्यक्रम द्वारा निगरानी किए गए 78 देशों में) तक पहुंच गई है। रिपोर्ट के अनुसार, मौसम और जलवायु की चरम सीमाएं मूल कारण नहीं हो सकती हैं, लेकिन वे गंभीर कारक हैं।

तापमान बढ़ने का कारण अलनीनो

तापमान बढ़ने का कारण बना अल नीनो पर्यावरणविदों ने पिछले साल की तुलना में इस साल फरवरी का महीना अधिक गर्म होने की प्रमुख वजह अल नीनो की समुद्री घटना को माना है। अल नीनो हमेशा सामान्य से कम मानसून, गर्म सर्दियों और कोहरे वाले दिनों से जुड़ा होता है। अभी तक सीजन में इसी तरह का मौसम देखने को मिला था। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्रा कहते हैं, "हालांकि कोई नियम पुस्तिका नहीं है, लेकिन अगर अल नीनो की स्थिति है, तो उष्ण कटिबंधीय (ट्रापिकल) क्षेत्र के पास गर्म हवा बढ़ जाती है और यह ठंडी हवा को उत्तर की ओर धकेलती है। इसलिए यह भारतीय क्षेत्र में पश्चिमी विक्षोभों का मार्ग सीमित कर देता है। अल नीनो जैसी घटनाओं के कारण, न्यूनतम तापमान सामान्य से अधिक रहा, जिससे देश में सर्दी का मौसम गर्म बन गया। मौसम को गर्म करने का एक अन्य पहलू महासागर के तापमान में लगातार वृद्धि होना है। भारतीय मौसम विभाग के एक शोध के अनुसार अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में समुद्री सतह का तापमान (एसएसटी) बढ़ रहा है। भूमि की सतह के तापमान और समुद्री सतह के तापमान के बीच मजबूत संबंध होता है जो गर्म समुद्री जल की महत्वपूर्ण भूमिका का संकेत करता है।