धराली का गुनहगार कौन है? एक्सपर्ट्स ने बताई आपदा की असली वजह; जानिए कितना हुआ नुकसान
उत्तराखंड के धराली में आई आपदा महज एक ट्रेलर है। हम विकास की दौड़ में प्रकृति का दोहन कर रहे हैं जिसका नतीजा अनियमित मौसम और आपदाओं के रूप में सामने आ रहा है। 2020 में दुनिया में 50 ऐसी आपदाएं आईं जिनसे 1 अरब डॉलर से अधिक का नुकसान हुआ। 2050 तक यह आंकड़ा ₹38 लाख करोड़ प्रति वर्ष...

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। विकास की दौड़ में हमने पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र की चिंता किए बिना प्राकृतिक संसाधनों का जमकर दोहन किया है। इसका नतीजा जलवायु परिवर्तन के दिनों दिन बढ़ते खतरे के तौर पर हमारे सामने है। मौसम का चक्र अनियमित हो गया है।
बरसात के मौसम में बारिश न होना या कम बारिश होना और बिना मौसम के अत्यधिक बारिश या ओलावृष्टि अब आम है। यही नहीं हमने नदियों के क्षेत्र में भी अतिक्रमण करते हुए आलीशान होटल और आवास बना लिए हैं। समय-समय पर इसके खतरनाक नतीजे सामने आते रहे हैं।
तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था के तौर पर हमें विकास को गति देना होगा, लेकिन पर्यावरण के साथ संतुलन बना कर। इसके बावजूद समाज और सरकारें प्रकृति का संदेश समझने को तैयार नहीं हैं। उत्तराखंड के धराली में आई आपदा इसका एक और उदाहरण है। इस तरह की आपदाओं के लिए हम कितने जिम्मेदार हैं और इनको रोकने के लिए जरूरी उपायों की पड़ताल ही आज का मुद्दा है..
- 50 जलवायु से जुड़ी आपदाएं आईं दुनिया में 2020, नुकसान 1 अरब डॉलर से अधिक।
- 29 औसतन सालाना रही है जलवायु से जुड़ी आपदाओं की संख्या 1990 के बाद से, हर एक में नुकसान 1 अरब डॉलर से अधिक।
- 63 अरब डॉलर रही नुकसान की कीमत 2020 में आए तूफान और ओलों की घटनाओं के कारण।
- 35 अरब डॉलर का नुकसान हुआ अब तक की एक सबसे महंगी आपदा के दौरान, 2020 की गर्मियों में चीन में आई बाढ़।
- 268 अरब डॉलर का आर्थिक नुकसान विश्व में, जलवायु से जुड़ी आपदाओं के कारण।
बढ़ती जाएगी नुकसान की कीमत
- 38 लाख करोड़ डॉलर प्रति वर्ष तक पहुंच सकता है जलवायु परिवर्तन से होने वाला वित्तीय नुकसान 2050 तक।
- 6 लाख करोड़ डॉलर आएगी कीमत जलवायु परिवर्तन को 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित तक सीमित रखने के लिए जरूरी उपायों को लागू करने पर।
- 17 प्रतिशत वैश्विक जीडीपी का होगा नुकसान, कृषि, बुनियादी ढांचा, उत्पादकता और स्वास्थ्य देखभाल सहित दूसरे सेक्टर होंगे प्रभावित।
जलवायु परितर्वन
जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण ग्रीनहाउस प्रभाव है। पृथ्वी के वायुमंडल में कुछ गैसें ग्रीनहाउस में कांच की तरह काम करती हैं, जो सूर्य की ऊष्मा को रोककर उसे अंतरिक्ष में वापस रिसने और ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनने से रोकती हैं। इनमें से कई ग्रीनहाउस गैसें प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होती हैं, लेकिन मानवीय गतिविधियों के कारण वायुमंडल में इनमें से कुछ की सांद्रता बढ़ रही है।
बढ़ते उत्सर्जन के कारण
- कोयला, तेल और गैस को जलाने से कार्बन डाइआक्साइड और नाइट्रस आक्साइड उत्पन्न होते हैं।
- वनों की कटाई (वन विनाश)। पेड़ वातावरण से सीओ2 अवशोषित करके जलवायु को नियंत्रित करने में मदद करते हैं । जब उन्हें काट दिया जाता है, तो वह लाभकारी प्रभाव समाप्त हो जाता है और पेड़ों में जमा कार्बन वातावरण में छोड़ दिया जाता है, जिससे ग्रीनहाउस प्रभाव बढ़ जाता है।
- पशुपालन। गाय और भेड़ें अपना भोजन पचाते समय बड़ी मात्रा में मीथेन उत्सर्जित करती हैं।
- नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों से नाइट्रस आक्साइड उत्सर्जन होता है।
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