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    जैसे चाचा, वैसे भतीजे... रिटायर हुए CJI खन्ना; 6 महीने के कार्यकाल में दिए कई ऐतिहासिक फैसले

    Updated: Tue, 13 May 2025 07:57 PM (IST)

    भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना 65 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त हो गए। छह महीने के कार्यकाल में उन्होंने अनुच्छेद 370 चुनावी बांड योजना और ईवीएम-वीवीपीएटी मिलान जैसे कई ऐतिहासिक फैसलों में भूमिका निभाई। उनके कार्यकाल में पूजा स्थल अधिनियम और वक्फ कानून जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी सुनवाई हुई।

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    CJI Sanjiv Khanna Retires सीजेआई के तौर पर जस्टिस संजीव खन्ना का आज अंतिम दिन। (फोटो- जागरण)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना आज मंगलवार के दिन 65 वर्ष के होने के कारण सर्वोच्च न्यायिक पद से रिटायर हो रहे हैं। उन्होंने पिछले साल 11 नवंबर को 51वें सीजेआई के रूप में शपथ ली थी। जस्टिस खन्ना का कार्यकाल लगभग छह महीने का था। 

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    न्यायमूर्ति खन्ना के रिटायरमेंट के बाद अब न्यायमूर्ति गवई, जो वर्तमान में शीर्ष अदालत के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश हैं, 52वें सीजेआई के रूप में शपथ लेंगे। जस्टिस संजीव खन्ना रिटायर्ड जस्टिस एचआर खन्ना के भतीजे हैं। 

    कई ऐतिहासिक फैसले सुनाए

    सुप्रीम कोर्ट में अपने छह साल के लंबे कार्यकाल में जस्टिस खन्ना ने कई ऐतिहासिक फैसले सुनाए। वह अनुच्छेद 370, व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर करने, चुनावी बांड योजना, ईवीएम-वीवीपीएटी मिलान मामले आदि पर ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा थे। 

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    • सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत होने से पहले जस्टिस खन्ना ने जनवरी 2019 तक दिल्ली उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में कार्य किया।
    • मई 1960 में जन्मे जस्टिस खन्ना ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कैंपस लॉ सेंटर से कानून की डिग्री प्राप्त की। 
    • उन्होंने 1983 में दिल्ली बार काउंसिल में एक वकील के रूप में नामांकन कराया और मुख्य रूप से दिल्ली उच्च न्यायालय में टैक्स, मध्यस्थता, कमर्शियल लॉ, पर्यावरण कानून, चिकित्सा लापरवाही कानून और कंपनी कानून की प्रैक्टिस की। 

    जस्टिस संजीव खन्ना ने सीजेआई के रूप में कई प्रमुख निर्णय लिए, आइए उनके बारे में जाने....

    पूजा स्थल अधिनियम

    • सीजेआई खन्ना के नेतृत्व वाली विशेष पीठ ने 12 दिसंबर 2024 को पारित एक अंतरिम आदेश में आदेश दिया कि देश में पूजा स्थल अधिनियम के तहत कोई नया मुकदमा पंजीकृत नहीं किया जाएगा और लंबित मामलों में अगले आदेश तक कोई अंतिम या प्रभावी आदेश पारित नहीं किया जाएगा। 
    • सर्वोच्च न्यायालय विवादास्पद कानून के कुछ प्रावधानों की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक समूह की याचिका पर विचार कर रहा था।

    वक्फ कानून

    वक्फ (संशोधन) कानून 2025 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच पर सुनवाई के दौरान, जब सीजेआई खन्ना की अगुवाई वाली बेंच ने स्थगन आदेश पारित करने का संकेत दिया, तो केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया कि वह 'वक्फ द्वारा उपयोगकर्ता' से संबंधित प्रावधानों को अधिसूचित नहीं करेगी या वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल नहीं करेगी। 

    ईवीएम-वीवीपीएटी मिलान का फैसला

    जस्टिस खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने अहम फैसला सुनाते हुए कहा था कि हालांकि यह मतदाताओं के मौलिक अधिकार को स्वीकार करता है कि उनका वोट सही ढंग से दर्ज और गिना जाए, लेकिन इसे वीवीपीएटी पर्चियों की 100 प्रतिशत गिनती के अधिकार या वीवीपीएटी पर्चियों तक भौतिक पहुंच के अधिकार के बराबर नहीं माना जा सकता है, जिसे मतदाता को ड्रॉप बॉक्स में डालने की अनुमति होनी चाहिए।

    न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि मतदाताओं को वीवीपीएटी पर्चियों तक भौतिक पहुंच देना समस्याग्रस्त और अव्यावहारिक है और इससे दुरुपयोग, कदाचार और विवाद होंगे। 

    जजों की संपत्ति का खुलासा

    न्यायापालिका और जजों की ईमानदारी और पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए जस्टिस खन्ना की पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए जजों की संपत्ति का खुलासा करने का आदेश दिया। जजों के बीच भ्रष्टाचार को रोकने के लिए इसे अहम माना गया। इससे न्यायपालिका में जनता का विश्वास बढ़े इसलिए लाया गया।

    जस्टिस एचआर खन्ना के भतीजे हैं जस्टिस संजीव खन्ना

    चीफ जस्टिस संजीव खन्ना बहुचर्चित रिटायर जस्टिस एचआर खन्ना के भतीजें हैं। जस्टिस एचआर खन्ना ने आपातकाल के दौरान एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया था, जिसमें उन्होंने नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा की थी। उनका फैसला 'एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला' मामले में आया था, जिसे अक्सर 'हेबियस कॉर्पस' मामले के रूप में जाना जाता है।

    इस मामले में, जस्टिस खन्ना ने अपने अल्पमत निर्णय में कहा था कि आपातकाल के दौरान भी नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए और सरकार को नागरिकों को बिना किसी कारण के गिरफ्तार करने का अधिकार नहीं है।

    जस्टिस खन्ना के इस फैसले ने उनकी ईमानदारी और न्यायपालिका की स्वतंत्रता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाया।

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