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    'न्यायिक सक्रियता नहीं बननी चाहिए न्यायिक आतंकवाद', CJI गवई का बड़ा बयान

    Updated: Mon, 17 Nov 2025 11:30 PM (IST)

    मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा कि न्यायिक सक्रियता को न्यायिक दुस्साहस या आतंकवाद में नहीं बदलना चाहिए। उन्होंने यह बात जस्टिस एफआई रेबेलो की पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में कही। सीजेआई ने कहा कि विधायिका या कार्यपालिका के विफल रहने पर अदालतों को हस्तक्षेप करना चाहिए, लेकिन न्यायिक सक्रियता की एक सीमा होनी चाहिए। उन्होंने न्यायपालिका के समक्ष चुनौतियों का भी उल्लेख किया।

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    इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस एफआई रेबेलो की पुस्तक का हुआ विमोचन (फाइल फोटो)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देश के प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई ने सोमवार को कहा कि न्यायिक सक्रियता को 'न्यायिक दुस्साहस या न्यायिक आतंकवाद' में नहीं बदलना चाहिए। सीजेआई ने यह बात यहां एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में कही।

    सीजेआई गवई ने कहा कि देश में न्यायिक सक्रियता बनी रहनी चाहिए। जहां कहीं भी विधायिका या कार्यपालिका नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने में विफल रहती है तो वहां देश की संवैधानिक अदालतों चाहें वे हाई कोर्ट हों या सुप्रीम कोर्ट, को हस्तक्षेप करना पड़ता है। उन्होंने कहा, 'लेकिन न्यायिक सक्रियता को न्यायिक दुस्साहस या न्यायिक आतंकवाद में नहीं बदलना चाहिए।'

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    पूर्व चीफ जस्टिस एफआई रेबेलो की पुस्तक का किया विमोचन

    प्रधान न्यायाधीश ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस एफआई रेबेलो की पुस्तक 'अवर राइट्स: एसे ऑन लॉ, जस्टिस एंड कांस्टिट्यूशन' के विमोचन कार्यक्रम को संबोधित किया। सीजेआई ने कहा, 'एक सीमा के अंदर जजों को न्यायिक सक्रियता का सहारा लेना चाहिए। मुझे लगता है कि उन्होंने (जस्टिस रेबेलो) ने बहुत स्पष्ट रूप से समझाया है।'

    उन्होंने बताया कि जस्टिस रेबेलो ने कई मुद्दों पर लिखा है। जस्टिस रेबेलो ने आज न्यायपालिका के समक्ष समकालीन चुनौतियों का जिक्र करने में संकोच नहीं किया। सीजेआई ने कहा कि पिछले 75 वर्षों में विधायिका, संसद, कार्यपालिका और न्यायपालिका ने सदैव व्यावहारिक तरीके से काम किया है।

    (न्यूज एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)