सफलता का पैमाना परीक्षा नहीं, बल्कि कड़ी मेहनत और समर्पण: CJI गवई
भारत के प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा कि पेशेवर जीवन में सफलता परीक्षा परिणाम से नहीं बल्कि दृढ़ संकल्प से तय होती है। उन्होंने कानूनी सहायता को दूर-दराज के इलाकों तक पहुंचाने की बात कही। कनिष्ठ वकीलों की समस्याओं पर भी ध्यान दिलाया। सीजेआई ने कानूनी शिक्षा को मजबूत करने पर जोर दिया और छात्रों को अपने पेशे के प्रति समर्पित रहने के लिए प्रेरित किया।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई ने शनिवार को कहा कि पेशेवर जीवन में सफलता का स्तर परीक्षा परिणामों से नहीं, बल्कि दृढ़ संकल्प, कड़ी मेहनत, समर्पण और काम के प्रति प्रतिबद्धता से तय होता है।
उन्होंने इस बात को भी रेखांकित किया कि कानूनी सहायता का लाभ देश के सुदूर इलाकों तक पहुंचना चाहिए। कनिष्ठ वकीलों के सामने आने वाली समस्याओं के बारे में उन्होंने कहा कि कुछ कनिष्ठ वकीलों को वरिष्ठ वकीलों द्वारा दिया जाने वाला वजीफा बहुत कम है, जिससे उनका गुजारा मुश्किल हो जाता है।
पणजी के पास मीरामार में वीएम सालगांवकर कॉलेज आफ ला के स्वर्ण जयंती समारोह में सीजेआइ ने कहा, "कानूनी सहायता का लाभ सुदूर इलाकों तक पहुंचाने के प्रयास को हमने व्यापक बनाने की कोशिश की है क्योंकि जब तक नागरिकों को यह पता नहीं होगा कि उनके पास कानूनी निदान का अधिकार है, तब तक ये निदान या अधिकार उनके किसी काम के नहीं होंगे।"
सीजेआई ने छात्रों को किया संबोधित
उन्होंने कहा कि देश भर के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में बड़ी संख्या में कानून के छात्र नामांकित हैं, जिनमें से कई को बुनियादी ढांचे, संकाय की गुणवत्ता और पाठ्यक्रम डिजाइन में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इसलिए हितधारकों को पूरे देश में कानूनी शिक्षा को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
सीजेआई गवई ने कहा कि कानूनी शिक्षा प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन आया है। छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, "आप परीक्षा में अपने रैंक पर ध्यान न दें क्योंकि ये परिणाम यह तय नहीं करते कि आप किस स्तर की सफलता प्राप्त करेंगे। आपका दृढ़ संकल्प, कड़ी मेहनत, समर्पण और पेशे के प्रति प्रतिबद्धता ही मायने रखती है।"
सीजेआई ने कॉलेज के दिनों को किया याद
अपने कॉलेज के दिनों को याद करते हुए सीजेआइ ने कहा, "मैं एक मेधावी छात्र था, लेकिन अक्सर कक्षाएं छोड़ देता था। जब मैं मुंबई के गवर्नमेंट ला कालेज में पढ़ रहा था तो मैं कक्षाएं छोड़कर कालेज कंपाउंड की दीवार पर बैठा करता था। मेरे दोस्त कक्षा में मेरी उपस्थिति दर्ज कराते थे। (कानून की डिग्री के) आखिरी साल में मुझे अमरावती जाना पड़ा क्योंकि मेरे पिता (महाराष्ट्र) विधान परिषद के अध्यक्ष थे।"
बचपन के दिनों को किया याद
उन्होंने कहा, "हमारे पास मुंबई में घर नहीं था। जब मैं अमरावती में था तो मैं लगभग आधा दर्जन बार ही कॉलेज गया। मेरे एक दोस्त, जो बाद में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने, मेरी उपस्थिति दर्ज कराते थे। परीक्षा परिणामों में शीर्ष स्थान प्राप्त करने वाला मेरा सहपाठी आगे चलकर आपराधिक मामलों का वकील बना, जबकि दूसरा स्थान प्राप्त करने वाला छात्र उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बना..और तीसरा मैं था, जो अब भारत का प्रधान न्यायाधीश हूं।"
(समाचार एजेंसी PTI के इनुपट के साथ)
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