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    'न्यायालयों में तारीख पे तारीख वाली संस्कृति हो खत्म', CJI चंद्रचूड़ ने लंबित मामलों की बड़ी संख्या पर जताई चिंता

    न्यायालयों में लंबित मामलों की बड़ी संख्या पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने चिंता जताई है। गुजरात के कच्छ में जिला न्यायाधीशों के अखिल भारतीय सम्मेलन में मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या इस समय न्यायपालिका के लिए बड़ी चुनौती है। उन्होंने कहा कि आम आदमी की सोच को बदलने की जिम्मेदारी हमारी है।

    By Agency Edited By: Mohd Faisal Updated: Sun, 03 Mar 2024 12:05 AM (IST)
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    CJI चंद्रचूड़ ने लंबित मामलों की बड़ी संख्या पर जताई चिंता (फाइल फोटो)

    एएनआई, नई दिल्ली। न्यायालयों में लंबित मामलों की बड़ी संख्या पर चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि मुकदमों की सुनवाई में तारीख पे तारीख वाली संस्कृति खत्म होनी चाहिए।

    मुख्य न्यायाधीश ने न्यायाधीशों से कहा, 'न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या कम होनी चाहिए और सामान्य स्थिति कायम होनी चाहिए। इसके लिए न्यायाधीशों को महत्वपूर्ण भूमिका अदा करनी होगी।'

    'लंबित मामलों की संख्या न्यायपालिका के लिए बड़ी चुनौती'

    गुजरात के कच्छ में जिला न्यायाधीशों के अखिल भारतीय सम्मेलन में मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या इस समय न्यायपालिका के लिए बड़ी चुनौती है। क्योंकि न्याय प्रशासन से अपेक्षा होती है कि वह कानूनी विवादों का उचित समयसीमा में निस्तारण करे। उन्होंने कहा कि न्याय की अपेक्षा लेकर न्यायालय में आने वाले आम आदमी की सोच बन गई है कि मामलों को लंबित रखना न्यायपालिका की कार्यप्रणाली का हिस्सा है, लेकिन जब भी सुनवाई के लिए तारीख दी जाती है तो उसके हृदय को चोट लगती है।

    आम आदमी की सोच को बदलने की जिम्मेदारी हमारी- CJI

    मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि आम आदमी की सोच को बदलने की जिम्मेदारी हमारी है। हमें अपनी कार्यशैली में बदलाव करके लंबित मामलों को जल्द निपटाने की प्रवृत्ति विकसित करनी चाहिए। इससे न केवल आम आदमी का कल्याण होगा बल्कि न्यायपालिका के प्रति उसके विश्वास में बढ़ोतरी होगी। इससे न्यायपालिका की भूमिका भी प्रभावी और बेहतर होगी।

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    इंटरनेट मीडिया की टिप्पणियों का किया जिक्र

    मुख्य न्यायाधीश ने कहा, निर्णय लेते समय हमें इंटरनेट मीडिया पर होने वाली टिप्पणियों और विभिन्न तरह की अपीलों के प्रभाव में नहीं आना है। हमें किसी तरह के बाहरी दबाव और जनता के रुख से भी प्रभावित नहीं होना है। हमें संविधान की मूलभावना के अनुरूप कानूनी प्रविधानों के अनुसार ही अपना फैसला देना है। हम ऐसे समय में काम कर रहे हैं जब सामाजिक जीवन में तकनीक का हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा है। तमाम मामलों में न्यायाधीशों को निर्णय के बाद इंटरनेट मीडिया पर आलोचना झेलनी पड़ रही है। इसलिए हमें बहुत सोच-समझकर और किसी तरह के दबाव में आए बगैर मुकदमों का निस्तारण करना चाहिए।