चित्रकूट का ऐतिहासिक गधा मेला: सनी देओल की सबसे ऊंची बोली, लॉरेंस को नहीं मिले खरीदार; कई राज्यों से पहुंचे व्यापारी
चित्रकूट में मंदाकिनी नदी के तट पर गधा मेला लगा, जहाँ गधों के नाम फिल्मी सितारों पर रखे गए हैं। सनी देओल नाम का गधा 1.05 लाख में बिका। मेले में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार से व्यापारी पहुंचे। इतिहासकारों के अनुसार, मेले की शुरुआत 1670 में औरंगजेब के शासनकाल में हुई थी। यह राजस्थान के पुष्कर मेले के बाद दूसरा सबसे बड़ा पशु मेला है।

चित्रकूट गधा मेला सनी देओल ने मारी बाज़ी लॉरेंस रहे बेरंग (फोटो सोर्स- जेएनएन)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सतना जिले की धार्मिक नगरी चित्रकूट में मंदाकिनी नदी के तट पर बुधवार को भी ऐतिहासिक गधा मेला आकर्षण का केंद्र रहा। यहां हर गधे का नाम फिल्मी सितारों और मशहूर हस्तियों के नाम पर है।
एक दिन पहले शाह रुख नाम का गधा 1.05 लाख में बिका था। बुधवार को सनी देओल नाम का गधा भी 1.05 लाख रुपये में बिका। गधा सलमान खान 90 हजार रुपये में बिका तो लारेंस बिश्नोई नाम के खच्चर को कोई खरीदार नहीं मिला। गुरुवार को गधा मेले का आखिरी दिन रहेगा। मेले में कई राज्यों के व्यापारी आए हैं।
फिल्मी नामों की धूम
चित्रकूट के इस ऐतिहासिक गधा मेले में दिनभर रौनक और चहल-पहल रही। फिल्मी नाम, ऊंची बोलियों के कारण ग्रामीण भी उत्सुकतावश मेले में शामिल होने के लिए पहुंचे। मेले में अल्लू अर्जुन पुष्पा, कैटरीना, माधुरी, चंपकलाल नाम के गधे भी बिकने के लिए आए हैं। मेले में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार से व्यापारी पहुंचे हैं। खरीदे गए गधे और खच्चर निर्माण कार्य, ईंट-भट्टों और परिवहन के काम में उपयोग होते हैं।
एंट्री और खूंटा शुल्क वसूला, सुविधाएं कुछ नहीं
नगर परिषद चित्रकूट ने मेले की औपचारिक व्यवस्था की है। व्यापारियों का कहना है कि यहां पानी और छाया जैसी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई गईं। मेले में आने वाले प्रत्येक व्यापारी से 600 रुपये प्रति जानवर एंट्री शुल्क और 30 रुपये प्रति खूंटा वसूला जा रहा है, जबकि बदले में किसी प्रकार की सुविधा नहीं दी जा रही। सुरक्षा व्यवस्था के नाम पर होमगार्ड तक नहीं तैनात है। व्यापारियों ने चेताया कि अगर प्रशासन ने जल्द ध्यान नहीं दिया, तो यह सदियों पुरानी परंपरा खतरे में पड़ जाएगी।
साढ़े 300 साल पुराना है इतिहास
इतिहासकारों का कहना है कि इस मेले की शुरुआत सन 1670 के आसपास मुगल बादशाह औरंगजेब के शासनकाल में हुई थी। चित्रकूट पर आक्रमण के दौरान उसकी सेना के घोड़े बीमार पड़ गए थे। तब उसने सामान ढुलाई के लिए गधों की खरीद के आदेश दिए और तभी से इस अनोखे मेले की परंपरा शुरू हुई।
औरंगजेब के शासनकाल में मुगल सेना के लिए चित्रकूट से गधे और खच्चर खरीदे जाते थे। इस परंपरा को करीब 355 साल बाद आज भी यहां के व्यापारी संजोए हुए हैं। यह मेला राजस्थान के पुष्कर मेले के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा पशु मेला है।
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