बाइडन प्रशासन में चीन के खिलाफ बयानबाजी में आएगी कमी, फिर भी चाल नहीं चल पाएगा ड्रैगन
आने वाले समय में भारत और अमेरिका संबंध और अधिक मजबूत होंगे। हालांकि चीन को लेकर अमेरिका की तरफ से होने वाली बयानबाजी पर जरूर रोक लग सकती है। इसके बाद भी चीन की चाल बाइडन प्रशासन में चल नहीं सकेगी।
प्रो बीआर दीपक। अमेरिका में बदलते निजाम के बीच हर किसी के जेहन में यही सवाल तैर रहा है कि नए राष्ट्रपति बाइडन ट्रंप की तरह चीन के खिलाफ भारत का खुलकर समर्थन करेंगे। पहली बात तो यह है कि अमेरिका में दोनों दल इस बात का पुरजोर समर्थन करते हैं कि भारत के साथ उनके देश के आर्थिक व सामरिक संबंध मजबूत होने चाहिए। अमेरिका एशिया में चीन के उदय का अर्थ और भारत के महत्व को अच्छी तरह समझता है। इसलिए, बाइडन एशिया में अमेरिका की जड़ों को पुनर्जीवित करने अथवा क्वाड यानी क्वाड्रिलेट्रल सिक्योरिटी डायलॉग में नई ऊर्जा भरने का काम करेंगे। दोनों ही स्थितियों में भारत की भूमिका अहम होगी।
दूसरा, भारत के साथ जिन मुद्दों पर अब तक अमेरिका द्वारा आपसी सहयोग की शुरुआत की गई थी, उन्हें जारी रखने के साथ-साथ और मजबूती दी जा सकती है। डिफेंस टेक्नोलॉजी एंड ट्रेड इनिशिएटिव (डीटीटीआइ), भारत-अमेरिका टू प्लस टू वार्ता तथा चार आधारभूत समझौतों को अमेरिकी अर्थव्यवस्था व रणनीतिक संबंधों के मद्देनजर जारी रखा जाएगा। तीसरा, चीन को लेकर बयानबाजी के संबंध में अमेरिकी रुख थोड़ा नरम हो सकता है। ट्रंप प्रशासन के खर्च में कटौती, लोक लुभावनवाद व राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों का त्याग करते हुए अमेरिका वैश्विक मामलों पर बल देगा और उन्हें अपनी प्राथमिकताओं के केंद्र में रखेगा। अमेरिका के साथ संबंधों को प्रगाढ़ करने की चीन की चाल (मेजर पावर रिलेशन) भी आकार नहीं लेने जा रही है। जी-2 समझौते का चीन का सपना फिलहाल साकार नहीं होने जा रहा है।
चौथा, भारत को चौकस रहने की जरूरत है। ट्रंप प्रशासन ने भारत के आंतरिक सांप्रदायिक संघर्ष व मानवाधिकार के मामलों को पूरी रह नजरअंदाज कर दिया था। लेकिन, हमें याद रखना होगा कि शुरुआत से ही अमेरिकी डेमोक्रेट राष्ट्रपति मानवाधिकार, आजादी व लोकतंत्र जैसे मूल्यों के प्रति गंभीर रहे हैं। अमेरिका लोकतांत्रिक देश के रूप में भारत का समर्थन करता रहेगा तथा समान मूल्यों व साझा हितों पर बातचीत जारी रहेगी। हालांकि, बाइडन का सांप्रदायिकता व कश्मीर पर नजरिया अलग हो सकता है।
(लेखक सेंटर फॉर चाइनीज एंड साउथ ईस्ट एशियन स्टडीज, जेएनयू के चेयर पर्सन हैं)
ये भी पढ़ें:-
अमेरिका का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है भारत, चीन को लग सकती है दोहरी आर्थिक चपत
बाइडन प्रशासन में चीन के खिलाफ बयानबाजी में आएगी कमी, फिर भी चाल नहीं चल पाएगा ड्रैगन
दक्षिण एशिया नीति को लेकर एक जैसा है बाइडन और ट्रंप का झुकाव, भारत का बढ़ेगी अहमियत
पाकिस्तान में सेना और पुलिस आमने-सामने आने से गृहयुद्ध जैसे हालात, बलूचिस्तान में हाल-बेहाल