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दक्षिण एशिया नीति को लेकर एक जैसा है बाइडन और ट्रंप का झुकाव, भारत की बढ़ेगी अहमियत

अमेरिका में नई सरकार आने के बाद भी भारत से संबंध और मजबूत होंगे। दक्षिण एशिया को लेकर डोनाल्‍ड ट्रंंप और बाइडन की नीति लगभग एक समान ही है। हालांकि पाकिस्‍तान से अमेरिकी संबंध कई बातों से तय होंगे।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 09 Nov 2020 09:06 AM (IST)Updated: Mon, 09 Nov 2020 09:06 AM (IST)
दक्षिण एशिया नीति को लेकर एक जैसा है बाइडन और ट्रंप का झुकाव, भारत की बढ़ेगी अहमियत
बाइडन और ट्रंप का झुकाव दक्षिण एशिया नीति को लेकर एक जैसा है।

प्रोफेसर उमा सिंह। ओबामा प्रशासन के दौरान बाइडन के उपराष्ट्रपति रहते संयुक्‍त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए समर्थन की घोषणा की थी। साथ ही उच्च स्तरीय प्रौद्योगिकी देने के लिए प्रमुख रक्षा भागीदार के रूप में नामित किया था। बाइडन ने 2001 में अमेरिकी सीनेट की विदेश संबंध समिति के अध्यक्ष के रूप में 2013 में भारत का दौरा किया। इसी समिति के रैंकिंग सदस्य के रूप में 2008 में अमेरिकी सीनेट के माध्यम से भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु सहयोग समझौते को देखने का काम किया।

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बाइडन और ट्रंप का झुकाव दक्षिण एशिया नीति को लेकर एक जैसा है। दोनों पाकिस्तान के साथ काम करने वाले अपरिभाषित संबंधों के पक्षधर हैं। साथ ही दोनों दक्षिण एशिया को अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता के चश्मे से देखते हैं। बीजिंग के साथ पाकिस्तान के करीबी संबंध बताते हैं कि इस्लामाबाद दक्षिण एशिया में अमेरिकी लक्ष्यों की मदद करने में अधिक बाधा के रूप में देखा जा सकता है। न केवल भारत और पाकिस्तान बल्कि अफगानिस्तान भी एक महत्वपूर्ण कारक होने जा रहा है। पाकिस्तान और अमेरिकी संबंधों को लेकर अमेरिकी नीति इस बात पर काफी निर्भर करेगी कि पाकिस्तान किस तरह भारत के खिलाफ चीनी मुखरता का लाभ उठाना चाहता हैऔर पाकिस्तान अपनी धरती से संचालित होने वाले भारत विरोधी आतंकवादी समूहों की गतिविधियों को रोकने के लिए कितना प्रयास करता है।

यदि हम अमेरिका की पाकिस्तान नीति को व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखते हैं, तो पाकिस्तान के साथ बाइडन के संबंध इस बात पर निर्भर होंगे कि अफगानिस्तान में चीजें किसतरह से आगे बढ़ती हैं। जब तक अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया जारी है और पाकिस्तान इसमें लगा हुआ है, तब तक बाइडन इस्लामाबाद के साथ पर्याप्त जुड़ाव सुनिश्चित करना चाहेंगे। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि अफगानिस्तान में अमेरिकी पदचिह्नों के धुंधले पड़ने के बाद पाकिस्तान के साथ अमेरिकी संबंधों का क्या होगा। नई दिल्ली के विरोध के कारण बाइडन के लिए न केवल पाकिस्तान के साथ संबंधों को गहरा करनाकठिन होगा बल्कि इसलिए भी कि इस्लामाबाद के अमेरिका के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी चीन के साथ गहरे संबंध हैं।

(लेखक पाकिस्तान मामलों की विशेषज्ञ हैं)


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