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अमेरिका का सबसे बड़ा व्‍यापारिक साझेदार है भारत, चीन को लग सकती है दोहरी आर्थिक चपत

भारत और अमेरिका के बीच बीते कुछ वर्षों में संबंधों में जैसे-जैसे तेजी आई है वैसे-वैसे ही दोनों देशों के बीच व्‍यापारिक संबंध भी मजबूत हुए हैं। इन्‍हीं मजबूत होते संबंधों की बदौलत आज भारत अमेरिका का सबसे बड़ा व्‍यापारिक साझेदार बन चुका है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 09 Nov 2020 08:35 AM (IST)Updated: Mon, 09 Nov 2020 08:35 AM (IST)
भारत अमेरिका का सबसे बड़ा व्‍यापारिक साझेदार है।

नई दिल्‍ली (जेएनएन)। भारत और अमेरिका के बीच मजबूत होते संबंधों के चलते दोनों देशों के बीच व्यापार भी बढ़ रहा है। अमेरिका ने चीन को पीछे छोड़ दिया है। अब वह भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार बन गया है। आर्थिक मामलों के जानकारों के अनुसार भारत के घरेलू मैन्‍युफेक्‍चरिंग को प्रोत्साहन देने वाले कदमों के चीन से उसके व्यापार में और कमी आ सकती है। इस मोर्चे पर चीन को दोहरी आर्थिक चपत भी लग सकती है। ट्रेड वार के चलते अमेरिकी चीनी निर्यात को प्रभावित कर रहा है तो कोरोना के जन्मदाता देश का ठप्पा लगने के बाद दुनिया के कई देश उसके सामानों को तिलांजलि देने लगे हैं।

चीन छूटा पीछे

2018-19 में अमेरिका और भारत के मध्य द्विपक्षीय व्यापार 87.95 अरब अमेरिकी डॉलर (6340 अरब रुपये) तक पहुंच गया है। चीन के साथ भारत का व्यापार 87.07 अरब अमेरिकी डॉलर (6277 अरब रुपये) रहा। इसी तरह 2019-20 अप्रैल से दिसंबर के मध्य अमेरिका और भारत के मध्य द्विपक्षीय व्यापार 68 अरब डॉलर (4902 अरब रुपये) रहा। इसी अवधि में चीन के साथ द्विपक्षीय व्यापार 65 अरब डॉलर (4653 अरब रुपये) रहा।

अभी होगी बढ़ोतरी

विशेषज्ञों के अनुसार दोनों देशों के मध्य द्विपक्षीय व्यापार में वृद्धि के संभावनाएं बरकरार हैं। अमेरिका के साथ एफटीए भारत के लिए बेहद फायदेमंद है। अमेरिका घरेलू वस्तुओं और सेवाओं का सबसे बड़ा बाजार है। भारत का निर्यात और यहां तक की आयात भी अमेरिका के साथ बढ़ रहा है, जबकि चीन के साथ दोनों कम हो रहे हैं।

अमेरिका का लाभ, चीन से नुकसान

अमेरिका उन कुछ देशों में शामिल है, जिनसे भारत का व्यापार सरप्लस में है। दूसरी ओर देखें तो चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा बहुत ज्यादा है। अमेरिका को होने वाले निर्यात में बढ़ोतरी हुई है। अप्रैल से दिसंबर 2019 के मध्य दवा निर्यात में 25 फीसद के साथ 4.8 अरब डॉलर (346 अरब रुपये) बढ़ोतरी हुई। वहीं जेम्स एंड ज्वैलरी के आयात में 11 फीसद की गिरावट आई। यह राशि 512 अरब रुपये थी। चीन से इलेक्ट्रॉनिक मशीनरी और टीवी पाट्र्स आयात में 4 फीसद की गिरावट से 1111 अरब रुपये की बचत हुई।

सैन्य जरूरतों की बदलती प्राथमिकता

विदेश नीति के जानकारों का एक धड़ा मानता रहा है कि भारत अपनी सैन्य जरूरतों के अनुसार अपनी विदेश नीति में बदलाव करता रहा है। ये बात जितनी सही है उतनी ही सच्चाई इसमें भी है कि भारत नए दोस्त देशों के साथ रिश्तों में भले ही रोमांच और गर्मजोशी दिखाता रहा हो लेकिन गुरबत के दिनों के मित्र देशों के साथ रिश्तों में स्थायित्व और ताजापन बरकरार रखता है। आज भी सैन्य साजोसामान की आधा से ज्यादा जरूरतें रूस से ही पूरी हो रही हैं। लेकिन उसकी हिस्सेदारी घट रही है। अमेरिका, इजरायल और फ्रांस उसकी जगह लेते दिख रहे हैं।


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