'बाल तस्करी और जबरन वेश्यावृत्ति बेहद चिंताजनक', सुप्रीम कोर्ट ने कहा पीड़ितों के बयानों को दें महत्व
जस्टिस मनोज मिश्रा और जोयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि अदालतों को तस्करी की शिकार नाबालिग के साक्ष्यों को उसकी सामाजिक-आर्थिक और कभी कभी सांस्कृतिक सं ...और पढ़ें

'बाल तस्करी और जबरन वेश्यावृत्ति बेहद चिंताजनक'- सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
पीटीआई,नई दिल्ली। देश में बाल तस्करी और जबरन वेश्यावृत्ति की बेहद चिंताजनक स्थिति का संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि यौन तस्करी के पीड़ितों, विशेषकर नाबालिग के बयान को उचित महत्व दिया जाना चाहिए और विश्वसनीय माना जाना चाहिए।
जस्टिस मनोज मिश्रा और जोयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि अदालतों को तस्करी की शिकार नाबालिग के साक्ष्यों को उसकी सामाजिक-आर्थिक और कभी कभी सांस्कृतिक संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए समझना चाहिए। खासकर तब जब वह किसी हाशिये पर स्थित या सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से पिछड़े समुदाय से संबंधित हो।
संगठित अपराध नेटवर्क की जटिल संरचना विभिन्न स्तरों पर काम करती है- कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने बाल तस्करी के एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा- संगठित अपराध नेटवर्क की जटिल संरचना विभिन्न स्तरों पर काम करती है। इनमें नाबालिग पीड़तों की भर्ती, उसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाना और शोषण शामिल है।
इस तरह की संगठित आपराधिक गतिविधियां देखने में स्वतंत्र इकाइयों की तरह लगती हैं, जिनके गुप्त अंतर्संबंधों को छल और कपट के जरिये बड़ी चतुराई से छिपाया जाता है, ताकि भोले-भाले पीड़तों को गुमराह किया जा सके।
तस्कर के खतरनाक एजेंडे के खिलाफ कोई पीड़ित बयान नहीं देती
शीर्ष अदालत ने कहा कि इस स्थिति को देखते हुए तस्कर के खतरनाक एजेंडे के खिलाफ यदि कोई पीड़ित बयान नहीं देती है, तो उसे अविश्वसनीय या मानवीय आचरण के विरुद्ध मानकर खारिज नहीं किया जाना चाहिए।
कानून लागू करने वाली एजेंसियों और न्यायालय के समक्ष भी यौन शोषण के भयावह परिदृश्य का वर्णन करना एक असहनीय अनुभव है। यह एक अलग तरह का उत्पीड़न है।
पीड़ित नाबालिग को धमकियों, प्रतिशोध के भय रहता है
यह स्थिति तब और गंभीर हो जाती है, जब पीड़ित नाबालिग हो और उसे आपराधिक धमकियों, प्रतिशोध के भय, सामाजिक कलंक और पुनर्वास के संकट का सामना करना पड़ता है। इस पृष्ठभूमि में पीड़ित के साक्ष्यों का न्यायिक मूल्यांकन संवेदनशीलता के साथ किया जाना चाहिए।
विधान सेमिली स्वतंत्रता उपहार नहीं बल्कि देश की पहली जिम्मेदारी: सुप्रीम कोर्ट
पासपोर्ट नवीनीकरण के दौरान अधिकारी द्वारा भविष्य की यात्राओं या वीजा कार्यक्रम के संबंध में जानकारी मांगने को अनुचित ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि हमारी संवैधानिक व्यवस्था में स्वतंत्रता देश का उपहार नहीं, बल्कि यह उसकी पहली जिम्मेदारी है।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और एजी मसीह की पीठ ने कहा कि पासपोर्ट अधिकारी का काम केवल ये देखना है कि लंबित मामलों के बावजूद, क्या क्रिमिनल कोर्ट ने अपनी निगरानी में यात्रा की संभावनाओं को खुला रखा है या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने कोलब्लॉक आवंटन घोटाले में आरोपित महेश कुमार अग्रवाल की याचिका पर सुनवाई कररहाथा। आरोपित के खिलाफ यूएपीए के तहत रांची की एनआइए कोर्ट में केस चल रहा है।
आरोपित ने जमानत शर्तों के तहत अपना पासपोर्ट अदालत में जमा कर रखा है और उसका नवीनीकरण कराना चाहता था। पासपोर्ट 2023 में ही एक्सपायर हो चुका था। आरोपित को कलकत्ता हाई कोर्ट से पासपोर्ट नवीनीकरण की छूट नहीं दी गई थी।

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