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    '10 से 5 की नौकरी नहीं है जज बनना', चीफ जस्टिस बीआर गवई बोले- कई पीढ़ियों के समर्पण से बनी प्रतिष्ठा

    Updated: Sat, 05 Jul 2025 11:30 PM (IST)

    चीफ जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि कानून और संविधान की व्याख्या समाज की जरूरतों के अनुसार होनी चाहिए। उन्होंने न्यायाधीशों से न्यायपालिका की प्रतिष्ठा बनाए रखने का आग्रह किया। जस्टिस गवई ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि कानून की व्याख्या वर्तमान पीढ़ी की समस्याओं के अनुसार होनी चाहिए।

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    न्यायाधीशों से न्यायपालिका की प्रतिष्ठा की रक्षा करने का अनुरोध किया (फोटो: पीटीआई)

    पीटीआई, मुंबई। देश के चीफ जस्टिस बीआर गवई ने शनिवार को कहा कि कानून या संविधान की व्याख्या व्यावहारिक होनी चाहिए और वह समाज की जरूरतों के अनुसार होनी चाहिए। जस्टिस गवई ने यहां बांबे हाई कोर्ट द्वारा उनके सम्मान में आयोजित एक समारोह में कहा कि हाल में उन्हें कुछ सहकर्मियों के अशिष्ट व्यवहार के बारे में शिकायतें मिली थीं और उन्होंने न्यायाधीशों से न्यायपालिका की प्रतिष्ठा की रक्षा करने का अनुरोध किया।

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    सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले का हवाला देते हुए जस्टिस गवई ने कहा कि किसी भी कानून या संविधान की व्याख्या वर्तमान पीढ़ी के सामने आने वाली समस्याओं के संदर्भ में की जानी चाहिए। उन्होंने कहा- 'व्याख्या व्यावहारिक होनी चाहिए। यह समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप होनी चाहिए।'

    सीजेआई ने की अहम टिप्पणी

    उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने विवेक और कानून के अनुसार काम करें, लेकिन मामले का फैसला हो जाने के बाद उन्हें कभी विचलित नहीं होना चाहिए। न्यायाधीशों की नियुक्ति के बारे में बात करते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि किसी भी कीमत पर न्यायपालिका की स्वतंत्रता से समझौता नहीं किया जाना चाहिए।

    न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्टों में नियुक्तियां करते समय कोलेजियम यह सुनिश्चित करता है कि योग्यता के साथ-साथ विविधता और समावेशिता भी बनी रहे। प्रधान न्यायाधीश ने यह भी कहा कि हाल में उन्हें कुछ सहकर्मियों के अशिष्ट व्यवहार के बारे में बहुत सारी शिकायतें मिल रही हैं। उन्होंने कहा- 'न्यायाधीश बनना 10 से पांच बजे की नौकरी नहीं है, यह समाज की सेवा करने का मौका है। यह राष्ट्र की सेवा करने का मौका है।'

    सीजेआई ने कहा- 'कृपया ऐसा कुछ न करें, जिससे इस प्रतिष्ठित संस्थान की प्रतिष्ठा पर आंच आए। इसकी प्रतिष्ठा कई पीढ़ियों के वकीलों और न्यायाधीशों की निष्ठा और समर्पण से बनी है।'

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