Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    'छोटा तिब्बत' के नाम से मशहूर है छत्तीसगढ़ का मैनपाट, संस्कृति और परंपरा जीत लेती है दिल

    By Nitin AroraEdited By:
    Updated: Tue, 01 Oct 2019 03:10 PM (IST)

    मैनपाट आने के बाद तिब्बती शरणार्थियों की जीवन शैली हर किसी को आकर्षित करती है।

    'छोटा तिब्बत' के नाम से मशहूर है छत्तीसगढ़ का मैनपाट, संस्कृति और परंपरा जीत लेती है दिल

    अम्बिकापुर, असीम सेनगुप्ता। उत्तर छत्तीसगढ़ में मैनपाट की पहाड़ी पर बसा है छोटा तिब्बत। छोटा तिब्बत आने के बाद सैलानियों को बुद्ध की शरण में आने का भी अहसास होता है। ऊंचाई पर स्थित सपाट मैदान और चारों तरफ खुली वादियां। हवा के झोंकों के एहसास। बौद्ध भिच्छुओं के शांत सौम्य चेहरों के साथ कालीन बुनते तिब्बतियों को देखकर ऐसा महसूस होता है कि हम नाथूला दर्रे को पार कर तिब्बत के किसी गांव में पहुंच गए हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    छोटे-छोटे साफ-सुथरे मकान और चारों ओर हरियाली उसकी सुंदरता बढ़ाती है। यह पहचान है मैनपाट के तिब्बती और उनके कैंपों की। साल 1962 में तिब्बत पर चीनी कब्जे और वहां के धर्मगुरू दलाई लामा सहित लाखों तिब्बतियों के निर्वासन के बाद भारत सरकार ने उन्हें अपने यहां शरण दी थी। इसी दौरान तिब्बत के वातावण से मिलते-जुलते मैनपाट में एक तिब्बती कैंप बसाया गया था, जहां तीन पीढ़ियों से तिब्बती शरणार्थी रह रहे हैं।

    अब लोग मैनपाट को भी नई पहचान देने में महत्वपूर्ण योगदान देने में लगे हुए हैं। यही कारण है कि छत्तीसगढ़ के मैनपाट को 'छोटा तिब्बत' के नाम से भी जाना जाता है। यहां तिब्बतियों की बड़ी आबादी, उनकी सभ्यता संस्कृति, रहन-सहन और परंपरा विकसित हो चुकी है। इसके साथ ही यहां के स्थानीय बासिंदों पर भी दोनों परंपराओं का खासा असर देखने को मिलता है।

    मैनपाट आने के बाद तिब्बती शरणार्थियों की जीवन शैली हर किसी को आकर्षित करती है। यहां तिब्बतियों के सात कैंप हैं। इन सातों कैंपों में साठ के दशक में तिब्बतियों द्वारा छोटे-छोटे मकान बनाए गए थे। तिब्बतियों का मकान, घरों के सामने लहराते झंडे और मठ-मंदिर अनायास ही तिब्बत की याद दिला देते हैं। तिब्बतियों की शिक्षा के लिए उसी दौर में सेंट्रल स्कूल और सिविल अस्पताल की स्थापना भी यहां की गई थी। शिक्षा, स्वास्थ्य को लेकर तिब्बती समाज के लोगों को किसी प्रकार की परेशानी ना हो इसे देखते हुए आरंभ की गई सुविधाएं आज भी बरकरार हैं। तिब्बत से आने के बाद भी समाज के लोग अपनी मूल संस्कृति और सभ्यता से दूर नहीं हुए हैं।

    सभी कैंपों में बौद्ध मंदिर हैं, जहां सुबह से लेकर देर शाम तक समाज के बुजुर्ग पूजा-अर्चना में लगे रहते हैं। मैनपाट के कमलेश्वरपुर, रोपाखार क्षेत्र में स्थानीय लोगों के साथ मिलकर अपने पर्व मनाने वाले तिब्बतियों की पारंपरिक वेशभूषा और वाद्य यंत्र विशेष अवसरों पर ही नजर आते हैं। मैनपाट में अब तिब्बती युवाओं की संख्या पहले जैसी नहीं रही है। शुरुआती दौर में यहां आने वाले तिब्बती ही शेष रह गए हैं, लेकिन उनके द्वारा मैनपाट को नई पहचान दिलाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी गई है। बुजुर्ग तिब्बती अभी भी मैनपाट को ही अपनी कर्मभूमि मानकर यहीं जमे हुए हैं।

    व्यवसाय से जुड़ा

    तिब्बती शरणार्थियों के संपर्क में आकर ही यहां के मूल निवासियों ने व्यापार की दिशा में कदम बढ़ाया था। तिब्बती शरणार्थियों द्वारा सबसे पहले गर्म कपड़ों का कारोबार शुरू किया गया। यह परंपरागत व्यवसाय आज भी जिंदा है। इस व्यवसाय से मैनपाट के मूल निवासी भी जुड़े।