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    100 रुपये की रिश्वत मामले में 40 साल लगाए कोर्ट के चक्कर, अब HC ने पलट दिया पूरा फैसला

    Updated: Sat, 20 Sep 2025 10:06 AM (IST)

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 39 साल पुराने रिश्वतखोरी के मामले में एक व्यक्ति को राहत दी है। जगेश्वर प्रसाद अवस्थी पर बकाया बिल बनाने के लिए 100 रुपये की रिश्वत मांगने का आरोप था। निचली अदालत ने उन्हें दोषी ठहराया था लेकिन हाईकोर्ट ने सबूतों के अभाव में सजा को रद कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष रिश्वत मांगने का ठोस सबूत पेश करने में विफल रहा।

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    40 साल बाद मिला इंसाफ हाईकोर्ट ने रिश्वतखोरी के मामले में सजा रद की।

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। छत्तीगढ़ हाईकोर्ट के एक फैसले ने यह सिद्ध किया है कि न्याय मिलने में देर हो सकती है, लेकिन सत्य को छिपाया नहीं जा सकता है। दरअसल, 39 साल पुराने एक मामले में एक व्यक्ति को कोर्ट ने राहत दे दी है।

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    पूरा मामला 100 रुपये के रिश्वत से जुड़ा है। जहां निचले अदालत से सजा पाए व्यक्ति को हाईकोर्ट ने राहत दे दी। कोर्ट ने निचली अदालत से मिली सजा को भी समाप्त कर दिया और कहा कि रिश्वत मांगने का कोई ठोस सबूत नहीं मिला है, इस कारण व्यक्ति को बरी किया जा रहा है।

    जानिए क्या है पूरा मामला

    पूरा मामला साल 1986 का है। उस दौरान 100 रुपये भी काफी बड़ी रकम मानी जाती थी। आरोप था कि जगेश्वर प्रसाद अवस्थी ने एक कर्मचारी अशोक कुमार वर्मा का बकाया बिल बनाने के लिए 100 रुपये की रिश्वत मांगी थी। जिसके बाद अशोक कुमार ने इसकी शिकायत की।

    बाद में लोकायुक्त ने एक ट्रेप बिछाया और फिनॉल्फिलीन पाउडर लगे नोटों के साथ उन्हें रंगे हाथ पकड़ा था। साल 2004 में इस मामले में निचली अदालत ने उन्हें एक साल जेल की सजा सुनाई।

    हाईकोर्ट ने पलट दिया फैसला

    अशोक कुमार ने इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की। अपील पर सुनवाई करते हुए जस्टिस बी.डी. गुरु की बेंच ने कहा कि, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1947 के तहत दर्ज मामला, अधिनियम 1988 लागू होने के बाद भी विचारणीय है। लेकिन अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि अपीलकर्ता ने वास्तव में अवैध परितोषण की मांग और स्वीकृति दी थी। उपलब्ध मौखिक, दस्तावेजी या परिस्थितिजन्य साक्ष्य से रिश्वतखोरी का अपराध सिद्ध नहीं होता।

    कोर्ट ने पाया कि अभियोजन अपने साक्ष्य भार को सिद्ध करने में असफल रहा, इसलिए निचली अदालत का दोषसिद्धि आदेश अस्थिर है। इस आधार पर हाई कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए दोषसिद्धि और सजा दोनों को रद्द कर दिया।

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