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    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का अहम फैसला, लापता सरकारी कर्मचारी की पत्नी को सेवा लाभ का दावा करने की दी अनुमति

    Updated: Mon, 27 Oct 2025 11:27 PM (IST)

    छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि लापता सरकारी कर्मचारी की पत्नी सेवा लाभ की हकदार है, भले ही कर्मचारी की मृत्यु का प्रमाण न हो। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि वह लापता कर्मचारी की पत्नी को सभी सेवा लाभ प्रदान करे। यह फैसला लापता कर्मचारियों के परिवारों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करता है।

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    छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट। (फाइल)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि सात से लापता सरकारी कर्मचारी की पत्नी अपने पति की नौकरी से बर्खास्तागी को चुनौती दे सकती है और और उसके सेवा लाभों पर दावा कर सकती है।

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    न्यायमूर्ति संजय के. अग्रवाल और न्यायमूर्ति राधाकिशन अग्रवाल की खंडपीठ ने बीएसपी को उस महिला के लिए सेवा लाभों को शीघ्रता से अंतिम रूप देने का निर्देश दिया, जिसका पति जनवरी 2010 से लापता था। पीठ ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण, बिलासपुर पीठ के उस आदेश के खिलाफ सेल की चुनौती को खारिज कर दिया, जिसमें कर्मचारी को सेवा से हटाने के आदेश को रद्द कर दिया गया था।

    2010 से लापता है सरकारी कर्मचारी

    यह कर्मचारी, बीएसपी की राजहरा खदान में एक वरिष्ठ तकनीशियन था, जो 14 जनवरी, 2010 को लापता हो गया था। उसकी पत्नी ने उसके लापता होने के संबंध में एक एफआईआर दर्ज कराई थी। उसके लापता होने की आधिकारिक सूचना मिलने के बावजूद, बीएसपी ने 11 दिसंबर, 2010 को अनुपस्थित कर्मचारी के खिलाफ चार्ज शीट जारी की। इसके बाद अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने 17 सितंबर, 2011 के एक पक्षीय आदेश के माध्यम से उसे सेवा से हटा दिया।

    कैट ने निष्कासन आदेश किया रद

    कैट ने महिला के आवेदन को स्वीकार कर लिया, निष्कासन आदेश को रद कर दिया और बीएसपी को सभी परिणामी लाभ प्रदान करने का निर्देश दिया। सेल ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी, मुख्यतः यह तर्क देते हुए कि महिला के पास अपने पति की मृत्यु को मानते हुए सिविल न्यायालय की घोषणा के बिना याचिका दायर करने का अधिकार नहीं है।

    हाईकोर्ट ने कैट के आदेश के बरकरार रखा

    हाईकोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया। पीठ ने कहा कि चूंकि कर्मचारी की सात साल से अधिक समय तक कोई सुनवाई नहीं हुई, इसलिए भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 108 के तहत मृत्यु की धारणा लागू होती है। कोर्ट ने कहा कि विशिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 के तहत सिविल कोर्ट की घोषणा अनावश्यक थी, क्योंकि सात साल की अनुपस्थिति का तथ्य निर्विवाद था।

    कोर्ट ने लाभों के भुगतान पर कैट के निर्देश को भी बरकरार रखा। पीठ ने 28 अप्रैल, 2022 के भारत संघ के कार्यालय ज्ञापन का हवाला दिया, जो सरकारी और संबंधित सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के कर्मचारियों पर लागू होता है। ज्ञापन यह सुनिश्चित करता है कि लापता कर्मचारियों के परिवारों को संबंधित नियमों के तहत वेतन बकाया, पारिवारिक पेंशन, सेवानिवृत्ति ग्रेच्युटी और अवकाश नकदीकरण जैसे लाभों का भुगतान किया जाए।

    पत्नी को सेवा लाभ का दावा करने की अनुमति

    हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि बीएसपी ने कर्मचारी की गुमशुदगी की जानकारी होने के बावजूद उसकी सेवा समाप्त करके कानूनी भूल की। पीठ ने रिट याचिका खारिज कर दी और याचिकाकर्ताओं, सेल/बीएसपी को निर्देश दिया कि वे महिला को सेवा लाभों को शीघ्रता से अंतिम रूप दें और उनका भुगतान करें।

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