सूर्य उपासना का पर्व छठ अब बनेगा वैश्विक धरोहर, जल्द यूनेस्को की सूची में हो सकता है शामिल
छठ महापर्व जो बिहार समेत पूर्वांचल की मिट्टी में रचा है अब अंतरराष्ट्रीय पहचान की ओर बढ़ रहा है। सूर्य उपासना और प्रकृति के प्रति आस्था का यह पर्व भारत के बाहर भी मनाया जाता है। इसे यूनेस्को की सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल कराने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। संस्कृति मंत्रालय ने इस पहल में कई देशों के राजनयिकों से सहयोग मांगा है।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। बिहार समेत पूर्वांचल की मिट्टी में रचा-बसा छठ महापर्व अब अंतरराष्ट्रीय पहचान की ओर बढ़ रहा है। सूर्य उपासना और प्रकृति के प्रति आस्था का यह अद्भुत पर्व न केवल बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में बल्कि पश्चिम बंगाल समेत पूरे देश और विदेशों में बसे भारतीय प्रवासी समुदायों के बीच भी बड़ी श्रद्धा, पवित्रता और उल्लास से मनाया जाता है। अब इसे यूनेस्को की सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।
भारत के अभी तक 15 सांस्कृतिक तत्व यूनेस्को की अमूर्त धरोहर सूची में दर्ज हैं। अगले चक्र (2026-27) में छठ महापर्व के नामांकन की यह पहल निश्चित ही भारत की सांस्कृतिक कूटनीति का एक और महत्वपूर्ण पड़ाव साबित होगी। संस्कृति मंत्रालय ने मंगलवार को नई दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में एक अहम बैठक की, जिसमें संयुक्त अरब अमीरात, सूरीनाम और नीदरलैंड के वरिष्ठ राजनयिकों ने भाग लिया।
बैठक की अध्यक्षता संस्कृति सचिव विवेक अग्रवाल ने की। इसमें संस्कृति मंत्रालय, विदेश मंत्रालय, संगीत नाटक अकादमी के अधिकारी मौजूद थे। सभी प्रतिनिधियों ने छठ महापर्व को यूनेस्को की सूची में दर्ज कराने की भारत की पहल का स्वागत किया और पूरा सहयोग देने का भरोसा भी जताया। शाम को संस्कृति सचिव ने मारीशस, फिजी, सूरीनाम, यूएई और नीदरलैंड में भारतीय राजदूतों एवं उच्चायुक्तों से भी वर्चुअल विमर्श किया। इन देशों ने प्रवासी भारतीयों से जुड़ी जानकारियां और दस्तावेज जुटाने में हर संभव मदद देने का आश्वासन दिया।
पूर्वांचल के राज्यों में छठ महापर्व सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित पर्व है, जो प्रकृति, जल, वायु एवं सूर्य की महिमा का स्मरण कराता है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता है कि इसमें जाति, धर्म और पंथ का कोई भेदभाव नहीं होता। व्रत की कठिन साधना, अनुष्ठानों की सादगी और सामूहिक भागीदारी इस पर्व को अनोखा बनाती है। यही वजह है कि मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम, यूएई और नीदरलैंड समेत अन्य देशों के प्रवासी भारतीय भी इसे पूरे उत्साह के साथ मनाते हैं।
छठ महापर्व के यूनेस्को में शामिल होने से न केवल भारत की सांस्कृतिक परंपराओं को वैश्विक मान्यता मिलेगी, बल्कि प्रवासी भारतीयों में भी गर्व और जुड़ाव की भावना मजबूत होगी। साथ ही सांस्कृतिक परंपराओं का संरक्षण और दस्तावेजीकरण सुनिश्चित होगा ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इस अनूठे पर्व से जुड़ी रह सकें।
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