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    चंद्रयान-3 के लिए अंतिम 30 किमी होंगे काफी महत्वपूर्ण, खगोलशास्त्री बोले- 100 प्रतिशत गारंटी है मिशन सफल होगा

    By Jagran NewsEdited By: Achyut Kumar
    Updated: Mon, 21 Aug 2023 09:46 AM (IST)

    दुनिया की निगाहें इसरो के चंद्रयान-3 मिशन (Chandrayaan-3 Mission) पर टिकी हुई है। यान 23 अगस्त को शाम छह बजकर चार मिनट पर लैंड करेगा। इसरो ने चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग से लेकर उसके चंद्रमा की कक्षा में पहुंचने तक कई टेस्ट किए हैं। कई महत्वपूर्ण चरणों को पार किया हैं। इसलिए चंद्रयान बिना किसी परेशानी के लैंड कर जाएगा लेकिन आखिरी 30 किमी काफी महत्वपूर्ण होंगे।

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    Chandrayaan 3 Live Location: चंद्रयान-3 के लिए अंतिम 30 किमी होंगे काफी महत्वपूर्ण

    नई दिल्ली, जागरण डिजिटल डेस्क। Chandrayaan-3 Mission: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का चंद्रयान-3 इतिहास रचने को तैयार है। देश और दुनिया की निगाहें भारत के इस मिशन पर टिकी हुई हैं। यान कै लैंडर मॉड्यूल अंतिम डिबूस्टिंग के साथ चांद की सबसे करीबी कक्षा में पहुंच गया है। अब इंतजार सिर्फ 23 अगस्त का है। इस बीच कई सवाल ऐसे हैं, जिनका जवाब जानना जरूरी है।

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    चंद्रयान-3 क्यों महत्वपूर्ण है?

    वरिष्ठ खगोलशास्त्री और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स, बेंगलुरु की निदेशक प्रोफेसर अन्नपूर्णी सुब्रमण्यम (Professor Annapurni Subramaniam) ने एक निजी टीवी चैनल के साथ इंटरव्यू में बताया कि मून मिशन भारत की अंतरिक्ष यात्रा में एक महत्वपूर्ण क्षण है। उन्होंने कहा,

    चंद्रमा की सतह पर पानी के अणुओं के साक्ष्य के कारण वहां नए सिरे से दिलचस्पी बढ़ी है, लेकिन हाल की रिसर्चों से यह भी पता चला है कि वहां ऐसे खनिज भी मौजूद हैं, जिनका उपयोग किया जा सकता है। यह जानना हमारे लिए जरूरी है। अभी तक हम सौरमंडल को समझने के लिए विभिन्न अभियानों के आंकड़ों पर ही निर्भर रहे हैं। हम अपनी प्रयोगशालाओं में इस डेटा को सक्रिय रूप से एकत्र और विश्लेषण नहीं कर पा रहे थे, लेकिन चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग हमें वहां जाकर यह समझने का मौका दे सकती है कि इसका कितना हिस्सा वास्तव में मौजूद है।

    चंद्रमा पर उतरना कठिन क्यों है?

    वरिष्ठ खगोलशास्त्री ने बताया कि अंतरिक्ष में प्रवेश करने पर वातावरण और गुरुत्वाकर्षण बदल जाते हैं। एक बार जब लैंडर चंद्रमा की कक्षा में पहुंचता है तो हम यह नहीं मान सकते कि वह टेबल टॉप पर उतरेगा। यह बेतरतीब और गैर-समान सतह पर उतर सकता है। उन्होंने कहा,

    चंद्रमा पर पहुंचने के बाद पूरी प्रक्रिया स्वचालित हो जाएगी। लैंडर मॉड्यूल को निर्णय लेना होगा, संभावना का आकलन करना होगा और देखना होगा कि उतरना ठीक है या नहीं। इसे ऐसे जटिल कार्यों को स्वचालित तरीके से करना होता है। इसलिए, सॉफ्टवेयर को सटीक जानकारी देनी होगी, ताकि वह एक सूचित निर्णय ले सके और सुरक्षित रूप से उतर सके। 

    प्रोफेसर अन्नपूर्णी सुब्रमण्यम ने कहा कि चंद्रयान-3 लैंडर का सॉफ्टवेयर कहीं अधिक मजबूत है। साथ ही, अधिक सेंसर भी हैं, जो डेटा प्रदान कर सकते हैं। इसलिए यह बेहतर निर्णय ले सकता है। हमारे पास पिछले मिशन की तुलना में बेहतर मानचित्र हैं। इसलिए, एक बार जब लैंडर अपनी अंतिम कक्षा में पहुंच जाता है, तो उसे जमीन से सही दूरी का पता लगाना होता है, गति का सटीक निर्धारण करना होता है और लैंडिंग करनी होती है।

    चंद्रयान-3 के लिए आखिरी 30 किमी होगा काफी महत्वपूर्ण

    प्रोफेसर सुब्रमण्यम ने बताया कि इसरो ने चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग से लेकर उसके चंद्रमा की कक्षा में पहुंचने तक कई टेस्ट किए हैं। हमने कई महत्वपूर्ण चरण पार कर लिए हैं। हम बिना किसी परेशानी के लैंड कर जाएंगे, लेकिन आखिरी 30 किमी काफी महत्वपूर्ण होगा। इसकी वजह यह है कि अंतरिक्ष के पैरामीटर विशाल हैं और इसमें जटिलताएं शामिल हैं। इसकी हमेशा एक छोटी से गैर-शून्य संभावना रहेगी कि यह गलता हो सकता है और हम इसे खत्म नहीं कर सकते। चंद्रयान-3 के सफल होने की संभावना सबसे ज्यादा है।

    सूर्य के पास क्यों जाना चाहता भारत?

    सूर्य की बाहरी परत अत्यधिक गर्म होती है, लेकिन यह सूर्य के केंद्र जितना गर्म क्यों है, यह अभी भी एक रहस्य है। इन सब सवालों के जवाब आदित्य एल1 मिशन से मिलने की उम्मीद है। आदित्य एल1 पृथ्वी से लगभग 1.5 मिलियन किमी दूर एल1 लैग्रेंज प्वाइंट तक जाएगा और सूर्य और पृथ्वी को जोड़ने वाली रेखा के लंबवत प्रभामंडल कक्षा में स्थापित किया जाएगा।

    यह पहली बार होगा जब हम सूरज के इतने करीब जाएंगे। आदित्य एल1 मिशन से यह जानकारी मिलेगी कि सूर्य में क्या है और वह अपनी ऊर्जा कैसे उत्सर्जित करता है। 

    चंद्रयान-3 को लेकर सबसे बड़ी चुनौती क्या है?

    अंतरिक्ष रणनीतिकार पीके घोष ने रविवार को कहा कि चंद्रयान-3 को चंद्रमा की सतह पर उतारने में 'सबसे बड़ी' चुनौतियों में से एक अंतरिक्ष यान को क्षैतिज से ऊर्ध्वाधर स्थिति में ले जाना है। यह मुश्किल है। इन सभी पहलुओं पर ध्यान देना होगा। डीबूस्टिंग की प्रक्रिया के बारे में बताते हुए पीके घोष ने कहा कि डीबूस्टिंग या रेट्रो फायरिंग अंतरिक्ष यान को अपनी गति कम करने में सक्षम बनाने की एक प्रक्रिया है।

    चंद्रमा पर कब लैंड करेगा चंद्रयान-3?

    भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने रविवार को घोषणा की कि चंद्रयान 3 रविवार के शुरुआती घंटों में दूसरे और अंतिम डीबूस्टिंग ऑपरेशन से गुजरा और बुधवार को शाम छह बजकर चार मिनट पर चंद्रमा पर उतरने वाला है।