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    पाकिस्तान व चीन के नापाक मंसूबों का कड़ा जवाब है चाबहार बंदरगाह, कई मायनों में है खास

    By Kamal VermaEdited By:
    Updated: Tue, 15 Dec 2020 08:04 AM (IST)

    ईरान स्थित चाबहार पोर्ट का रणरणनीतिक आर्थिक महत्‍व काफी अधिक है। ये पाकिस्‍तान को जवाब देने के लिए भी काफी अहम है। इतिहास में भी इसका जिक्र है। इसको अलबरूनी ने भारत का प्रवेश द्वार बताया गया है।

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    मध्यकालीन यात्री अल बरुनी ने चाबहार को भारत का प्रवेश द्वार कहा था।

    नई दिल्‍ली (जेएनएन)। भारत, ईरान और उजबेकिस्‍तान की साझेदारी चाबहार बंदरगाह के व्यावसायिक व रणनीतिक उपयोग को नई दिशा देगी। ईरान के दक्षिणी तट पर स्थित यह बंदरगाह न सिर्फ पाकिस्तान व चीन के नापाक मंसूबों का जवाब है, बल्कि भारत व मित्र देशों के कारोबार को यूरोप तक फैलाने में अहम भूमिका भी निभाएगा। चीन ने पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत स्थित ग्वादर बंदरगाह के विकास में बड़ा निवेश किया है। यह चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का अहम हिस्सा भी है। पहले अफगानिस्तान व मध्य एशिया में जाने के लिए भारतीय जहाजों को पाकिस्तानी जल क्षेत्र से गुजरना पड़ता था, लेकिन ग्वादर के करीब स्थित चाबहार बंदरगाह ने इस अनिवार्यता को खत्म कर दिया है।

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    भौगोलिक महत्व

    मध्यकालीन यात्री अल बरुनी ने चाबहार को भारत का प्रवेश द्वार कहा था। चाबहार का अर्थ है-चार झरने। यह गहरे पानी का बंदरगाह है जो मुख्य भूभाग से जुड़ा है। यहां मौसम सामान्य रहता है और समुद्री रास्तों से पहुंचाना आसान है। ईरान के दक्षिणी तट पर सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में स्थित यह बंदरगाह एक ऐसे मार्ग की अहम कड़ी है जो भारत से यूरोप तक माल ढुलाई को सहज बनाएगा।

    रणनीतिक महत्व

    पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के विकास के जरिये चीन अरब सागर में उपस्थिति बढ़ाना चाहता है। इसके जवाब में भारत ने चाबहार बंदरगाह के विकास में निवेश का फैसला किया। यह बात चीन को खटक गई। चीन ने ईरान को अगले 25 वर्षों में 400 अरब डॉलर के भारी-भरकम निवेश का झांसा देते हुए चाबहार-जाहेदान रेल परियोजना में साझेदार बन गया। इससे पहले कि चीन उस क्षेत्र में अपनी पैठ बनाए, भारत हर हाल मेंअपनी पकड़ और मजबूत करना चाहता है।

    कारोबारी महत्व

    चाबहार के जरिये भारत की न सिर्फ अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच आसान होगी, बल्कि 7,200 किमी लंबे अंतरराष्ट्रीय उत्तरदक्षिण परिवहन गलियारे (आइएनएसटीसी) के माध्यम से यूरेशिया व रूस तक कारोबार सहज हो जाएगा। यह एशिया, अफ्रीका व यूरोप को जोड़ेगा।