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    अदालतों में अफसरों की पेशी को लेकर केंद्र के SC को सुझाव, कहा; अधिकारियों को केवल असाधारण मामलों में ही बुलाएं

    Supreme Court News केंद्र सरकार ने सरकारी अधिकारियों की अदालतों में पेशी के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) दाखिल कर विचार के लिए कुछ सुझाव दिए हैं। इनमें वीडियो कान्फ्रेंसिंग से पेशी सरकारी अधिकारियों की पोशाक और शैक्षिक पृष्ठभूमि पर टिप्पणी से बचना और न्यायिक आदेशों के अनुपालन के लिए उचित समय सीमा देना शामिल हैं।

    By Jagran NewsEdited By: Jagran News NetworkUpdated: Thu, 17 Aug 2023 05:30 AM (IST)
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    अदालतों में अफसरों की पेशी को लेकर केंद्र के SC को सुझाव, कहा

    नई दिल्ली, पीटीआई। केंद्र सरकार ने सरकारी अधिकारियों की अदालतों में पेशी के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) दाखिल कर विचार के लिए कुछ सुझाव दिए हैं। इनमें वीडियो कान्फ्रेंसिंग से पेशी, सरकारी अधिकारियों की पोशाक और शैक्षिक पृष्ठभूमि पर टिप्पणी से बचना और न्यायिक आदेशों के अनुपालन के लिए उचित समय सीमा देना शामिल हैं।

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    सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अवमानना कार्यवाही सहित अदालती कार्यवाहियों में सरकारी अधिकारियों की उपस्थिति के संबंध में शीर्ष अदालत में एसओपी प्रस्तुत की। शीर्ष अदालत के विचार के लिए प्रस्तुत एसओपी का उद्देश्य सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्टों और अन्य सभी अदालतों के समक्ष सरकार से संबंधित मामलों की सभी कार्यवाहियों पर लागू करना है।

    वीडियो कान्फ्रेंस (VC) के जरिये पेश होने की अनुमति देनी चाहिए।

    एसओपी के अनुसार, सरकारी मामलों से संबंधित कार्यवाही में सरकारी अधिकारियों को केवल असाधारण मामलों में ही बुलाया जाना चाहिए, न कि नियमित रूप से। जहां संबंधित सरकारी अधिकारी के पास अदालत में उपस्थित होने के अलावा और कोई विकल्प न हो, ऐसी स्थिति में उसे अग्रिम रूप से पर्याप्त समय देते हुए नोटिस दिया जाना चाहिए। ऐसी स्थित में भी अदालत को पहले विकल्प के रूप में वीडियो कान्फ्रेंस (वीसी) के जरिये पेश होने की अनुमति देनी चाहिए।

    उनके सभ्य पोशाक में उपस्थित होने पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए,

    इसके लिए वीसी का लिंक निर्धारित सुनवाई से कम से कम एक दिन पहले संबंधित अधिकारी को दिए गए मोबाइल नंबर या ई-मेल आइडी पर एसएमएस या ई-मेल या वाट्सएप द्वारा भेजा जा सकता है।एसओपी में कहा गया है कि अदालत के समक्ष पेश होने वाले सरकारी अधिकारी की पोशाक या शैक्षणिक और सामाजिक पृष्ठभूमि पर टिप्पणी करने से बचना चाहिए।

    सरकारी अधिकारी अदालत के अधिकारी नहीं हैं और उनके सभ्य पोशाक में उपस्थित होने पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए, जब तक कि वह गैर-पेशेवर या उनके पद के अनुसार अशोभनीय न हो।एसओपी के मुताबिक, जटिल नीतिगत मामलों से जुड़े न्यायिक आदेशों के अनुपालन में विभिन्न स्तरों पर निर्णय लेने की आवश्यकता होती है।

    हलफनामे या प्रस्तुत लिखित बयान के जरिये पुष्ट सरकार के रुख के विपरीत हो।

    अदालतें अपने आदेशों के अनुपालन के लिए कुछ विशिष्ट समयसीमा तय करने से पहले इन पहलुओं पर विचार कर सकती हैं। अगर कोई आदेश पारित किया जा चुका है और उसमें दी गई समय सीमा को सरकार की ओर से संशोधित करने का अनुरोध किया गया है, तो अदालत ऐसे न्यायिक आदेशों के अनुपालन के लिए संशोधित उचित समयसीमा की अनुमति दे सकती है और संशोधन के ऐसे अनुरोध पर सुनवाई की अनुमति दे सकती है।

    अदालत की अवमानना पर एसओपी में कहा गया है कि सरकारी वकील द्वारा अदालत में दिए गए ऐसे बयानों के मामले में कोई अवमानना कार्यवाही शुरू नहीं की जानी चाहिए, जो हलफनामे या प्रस्तुत लिखित बयान के जरिये पुष्ट सरकार के रुख के विपरीत हो।

    यह पहले से स्थापित है कि वैधानिक प्रविधानों के विपरीत शपथ अवमानना कार्यवाही का आधार नहीं हो सकती। इसी तरह, अगर शिकायती कार्य या चूक जानबूझकर नहीं की गई है तो आपराधिक अवमानना के मामले में अवमाननाकर्ता को दंडित करने में संकोच करना चाहिए। अवमानना कार्यवाही शुरू करने से पहले सरकार की ओर से समीक्षा याचिका की प्रार्थना पर उच्च अदालतों द्वारा विचार किया जाना चाहिए जिसमें यह प्रार्थना की गई हो कि अदालत द्वारा मूल कानूनी बिंदुओं पर विचार नहीं किया गया है।

    एसओपी में सुझाव दिया गया है कि न्यायाधीशों को अपने स्वयं के आदेशों से संबंधित अवमानना कार्यवाही लंबित नहीं रखनी चाहिए। यह प्राकृतिक न्याय का स्थापित सिद्धांत है कि कोई भी व्यक्ति उस मामले का न्याय नहीं कर सकता जिसमें उसका हित शामिल है। नीतिगत मामलों के संबंध में कहा गया है कि अगर अदालत के विचाराधीन मामले में ऐसे मुद्दे शामिल हैं जो कार्यपालिका के विशेष अधिकार क्षेत्र के हैं तो अदालत ऐसे मामले पर निर्णय लेने के बजाय कार्यपालिका को भेज सकती है।

    चयन व नियुक्ति को प्रशासन पर छोड़ सकती है।

    अगर किसी मामले में आगे की जांच के लिए समिति के गठन की आवश्यकता हो तो अदालत उसके सदस्यों को नामित करने के बजाय समिति के केवल व्यापक सदस्यों एवं अध्यक्ष की संरचना एवं क्षेत्र का निर्धारण कर सकती है और सदस्यों एवं अध्यक्ष की पहचान, चयन व नियुक्ति को प्रशासन पर छोड़ सकती है।