'अंग प्रत्यारोपण के लिए राष्ट्रीय नीति बनाए केंद्र', सुप्रीम कोर्ट ने नियम बनाने के दिए निर्देश
चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विनोद चंद्रन की पीठ ने इंडियन सोसायटी आफ आर्गन ट्रांसप्लांटेशन की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर ये निर्देश जारी किए।सीजेआइ ने अपने आदेश में केंद्र से आग्रह किया कि वहआंध्र प्रदेश को 1994 के मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम में 2011 के संशोधनों को अपनाने के लिए राजी करे।

शीर्ष अदालत ने राज्यों के परामर्श से नियम बनाने के संबंध में दिए कई निर्देश (फाइल फोटो)
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र को अंगदान और आवंटन के लिए एक पारदर्शी व सक्षम प्रणाली बनाने के लिए राज्यों के परामर्श से एक राष्ट्रीय नीति और समान नियम बनाने के संबंध में कई निर्देश दिए।
चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विनोद चंद्रन की पीठ ने इंडियन सोसायटी आफ आर्गन ट्रांसप्लांटेशन की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर ये निर्देश जारी किए।सीजेआइ ने अपने आदेश में केंद्र से आग्रह किया कि वह आंध्र प्रदेश को 1994 के मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम में 2011 के संशोधनों को अपनाने के लिए राजी करे।
पीठ ने यह भी आदेश दिया कि कर्नाटक, तमिलनाडु और मणिपुर जैसे राज्यों ने अभी तक मानव अंग एवं टिशू प्रत्यारोपण नियम, 2014 को नहीं अपनाया है। वे इसे शीघ्रता से अपनाएं।
पीठ ने केंद्र से अंग प्रत्यारोपण के लिए आदर्श आवंटन मानदंड वाली एक राष्ट्रीय नीति विकसित करने को कहा है। कहा कि इस नीति में लिंग और जातिगत पूर्वाग्रह के मुद्दों पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
राज्यवार विसंगतियों को खत्म करने के लिए देश भर के लिए अंगदाताओं के लिए एक समान मानदंड स्थापित किए जाने चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात का संज्ञान लिया कि मणिपुर, नगालैंड, अंडमान निकोबार और लक्षद्वीप जैसे राज्यों में राज्य अंग एवं टिशू प्रत्यारोपण संगठन (एसओटीओ) का अभाव है।
पीठ ने केंद्र से राज्यों के साथ परामर्श के बाद राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण कार्यक्रम के तहत इन निकायों का गठन करने को कहा।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील के परमेश्वर ने कहा कि मौजूदा समय में अंग दाताओं और प्राप्तकर्ताओं के लिए एक समेकित राष्ट्रीय डाटाबेस की कमी ¨चताजनक है। यह राज्यों की प्रक्रिया को धीमा कर रहा है। करीब 90 प्रतिशत अंग प्रत्यारोपण निजी अस्पतालों में होते हैं।

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