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    मानव संसाधन के निर्यात में विश्वगुरु बनने की तैयारी में भारत, विदेश में भारतीय युवाओं को नौकरियां दिलाएगी सरकार

    Updated: Sat, 25 Oct 2025 05:45 AM (IST)

    भारत अब केवल वस्तुओं का नहीं, बल्कि मानव संसाधन का भी सबसे बड़ा निर्यातक बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। देश की युवा आबादी, जो स्थानीय नौकरी बाजार में पूरी तरह समाहित नहीं हो पा रही, विकसितदेशों की श्रमिक कमी को पूरा करने के लिए तैयार की जा रही है। यूरोप, खाड़ी और एशिया के कई देशों में आबादी घट रही है और श्रमिकों की भारी कमी है।

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    विदेश में भारतीय युवाओं को नौकरियां दिलाएगी सरकार (फाइल फोटो)

    न्यूयॉर्क टाइम्स, नई दिल्ली। भारत अब केवल वस्तुओं का नहीं, बल्कि मानव संसाधन का भी सबसे बड़ा निर्यातक बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। देश की युवा आबादी, जो स्थानीय नौकरी बाजार में पूरी तरह समाहित नहीं हो पा रही, विकसित देशों की श्रमिक कमी को पूरा करने के लिए तैयार की जा रही है।

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    यूरोप, खाड़ी और एशिया के कई देशों में आबादी घट रही

    यूरोप, खाड़ी और एशिया के कई देशों में आबादी घट रही है और श्रमिकों की भारी कमी है, वहीं भारत के पास लाखों प्रशिक्षित युवा हैं जो वैश्विक कार्यबल को नई ऊर्जा दे सकते हैं। इसी अंतर को अवसर में बदलने के लिए भारत सरकार अब बड़े पैमाने पर अपने कुशल और अ‌र्द्ध-कुशल श्रमिकों को विदेशों में रोजगार दिलाने की दिशा में कदम उठा रही है।

     

    विदेश मंत्रालय ने नौ अक्टूबर को ओवरसीज मोबिलिटी बिल का मसौदा पेश किया, जो 1983 के पुराने इमिग्रेशन एक्ट की जगह लेगा। यह बिल वैश्विक नौकरी बाजार से भारतीय नागरिकों को जोड़ने के साथ उनके सुरक्षित प्रस्थान, वापसी और पुनर्वास को सुनिश्चित करेगा। पिछले छह वर्षों में भारत ने 20 से अधिक देशों के साथ श्रम समझौते किए हैं, जिनमें जापान, जर्मनी, फिनलैंड, ताइवान और खाड़ी देश शामिल हैं, जहां अब भारतीय युवाओं को सीधे रोजगार मिलेगा।

     

    विशेषज्ञों का मानना है कि भारत तेजी से एक नए युग में प्रवेश कर रहा है, जहां वह केवल वैश्विक बाजार का उपभोक्ता नहीं बल्कि विश्व अर्थव्यवस्था का श्रमिक प्रदाता बनकर उभर रहा है। यदि श्रम निर्यात माडल सफल होता है, तो यह भारत की आर्थिक स्थिति को नई ऊंचाई देगा और करोड़ों युवाओं का भविष्य बदल सकता है।

     

    देशों के सामने क्या हैं चुनौतियां

    सबसे बड़ी चुनौती यह है कि मेजबान देश यह भरोसा कैसे करें कि भारतीय श्रमिक स्थायी रूप से नहीं बसेंगे। कई देशों में यह राजनीतिक जोखिम माना जाता है कि विदेशी नागरिक स्थानीय नौकरियों पर स्थायी रूप से कब्जा कर सकते हैं।

     

    अस्थायी प्रवासन के बाद ''वापसी और पुनर्वास'' मडल अभी पूरी तरह परखा नहीं गया है। आम तौर पर विदेश में बेहतर जीवन और आमदनी के कारण प्रवासी वहीं बसने की कोशिश करते हैं।

     

    वैश्विक श्रम संकट की स्थिति

    बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप के अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2030 तक दुनिया में पांच करोड़ श्रमिकों की कमी होगी। यह संख्या ब्रिटेन की कुल कामकाजी आबादी से भी अधिक है। यही वजह है कि 'ग्लोबल ऐक्सेस टू टैलेंट फ्राम इंडिया फाउंडेशन' का मानना है कि भारत को केवल अपने लिए नहीं, बल्कि दुनिया के लिए कार्यबल तैयार करना चाहिए। फाउंडेशन के सीईओ अर्नब भट्टाचार्य का अनुमान है कि भारत अपने वर्तमान सात लाख वार्षिक श्रमिक निर्यात को साल 2030 तक बढ़ाकर 15 लाख कर सकता है।

     

    राजनीतिक चुनौतियां और वैश्विक माहौल

    हालांकि अमेरिका, जर्मनी और जापान जैसे देशों में प्रवासन को लेकर राजनीतिक विरोध बढ़ रहा है। अमेरिका में एच-1बी वीजा पर एक लाख डालर शुल्क लगाया जा रहा है और निर्वासन नीति कड़ी की गई है। यूरोप में भी सख्ती बढ़ रही है। इन सबके बावजूद भारत के साथ समझौते हो रहे हैं, क्योंकि इन देशों के पास श्रम की कमी को दूर करने का और कोई विकल्प नहीं है।