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केंद्र व दिल्‍ली सरकार में सेवाओं पर नियंत्रण का मामला: सुप्रीम कोर्ट में दलील पूरी, फैसला सुरक्षित

सुप्रीम कोर्ट ने सेवाओं पर नियंत्रण और भ्रष्टाचार विरोधी ब्यूरो की शक्ति से संबंधित अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Thu, 01 Nov 2018 11:49 PM (IST)Updated: Thu, 01 Nov 2018 11:49 PM (IST)
केंद्र व दिल्‍ली सरकार में सेवाओं पर नियंत्रण का मामला: सुप्रीम कोर्ट में दलील पूरी, फैसला सुरक्षित
केंद्र व दिल्‍ली सरकार में सेवाओं पर नियंत्रण का मामला: सुप्रीम कोर्ट में दलील पूरी, फैसला सुरक्षित

 नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने सेवाओं पर नियंत्रण, जांच आयोग गठित करने और भ्रष्टाचार विरोधी ब्यूरो की शक्ति से संबंधित अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। इसे लेकर केंद्र और दिल्ली के बीच टकराव चल रहा है।

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 जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की पीठ ने दिल्ली सरकार के वकीलों की जवाबी दलील सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। पीठ ने कहा कि सुनवाई पूरी हुई। फैसला सुरक्षित है।

पिछली सुनवाई में केंद्र ने शीर्ष कोर्ट से कहा था कि उपराज्यपाल के पास दिल्ली में सेवाओं के नियमन की शक्ति है। दिल्ली के प्रशासक को शक्ति प्रदान की गई है और उनके माध्यम से सेवाओं का प्रशासन किया जा सकता है। केंद्र ने यह भी कहा कि राष्ट्रपति के स्पष्ट निर्देश के बिना उपराज्यपाल मुख्यमंत्री या मंत्रिपरिषद से संपर्क नहीं कर सकते। उपराज्यपाल ही दिल्ली के प्रशासक हैं।

चार अक्टूबर को दिल्ली सरकार ने शीर्ष अदालत से कहा था कि राष्ट्रीय राजधानी के प्रशासन से संबंधित अपनी याचिका पर वह यथाशीघ्र सुनवाई चाहती है। वह नहीं चाहती है कि प्रशासन में गतिरोध जारी रहे। दिल्ली सरकार ने शीर्ष कोर्ट से कहा था कि वह यह जानना चाहती है कि चार जुलाई को संविधान पीठ के फैसले के आलोक में प्रशासन के संबंध में उसका रुख क्या है।

आम आदमी पार्टी के 2014 में सत्ता में आने के बाद से ही केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच शक्ति संघर्ष चल रहा है। चार जुलाई को पांच न्यायाधीशों की पीठ ने राष्ट्रीय राजधानी के शासन के लिए विस्तृत मानदंड तय किए थे।

ध्वनिमत से सुनाए गए फैसले में पीठ ने कहा था कि दिल्ली को राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता। लेकिन पीठ ने उपराज्यपाल की शक्तियों को भी सीमित कर दिया था। पीठ ने कहा था कि उनके पास स्वतंत्र रूप से फैसला लेने की शक्ति नहीं है और उन्हें निर्वाचित सरकार की सहायता एवं परामर्श से काम करना है।


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