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    VIDEO: बैन हटने के बाद केरल के सबसे ऊंचे हाथी ने त्रिशूर पूरम पर्व में लिया भाग

    By TaniskEdited By:
    Updated: Sun, 12 May 2019 03:29 PM (IST)

    केरल के सबसे ऊंचे हाथी पर से बैन हटने के बाद रविवार को प्रसिद्ध त्रिशूर पूरम पर्व में भाग लिया। हालांकि त्रिशूर यहां केवल एक घंटे ही रूके और उन्हें वापस बुला लिया गया।

    VIDEO: बैन हटने के बाद केरल के सबसे ऊंचे हाथी ने त्रिशूर पूरम पर्व में लिया भाग

    त्रिशूर, आइएएनएस। केरल के सबसे ऊंचे हाथी पर से बैन हटने के बाद रविवार को प्रसिद्ध त्रिशूर पूरम पर्व में पहले दिन लगभग 10,000 लोगों ने भाग लिया। बता दें कि गजराज के फिटनेस परीक्षण में सफल रहने के बाद  शनिवार को इस पर्व में भाग लेने की सशर्त अनुमति दी गई। 

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    इसके बाद 'तेचीक्कोत्तुकावु रामचंद्रन' को सुबह लगभग 10.30 बजे एक वाहन में वडक्कुमनाथन मंदिर लाया गया। उन्होंने उत्सव के शुरू होने का संकेत देते हुए मंदिर के दक्षिणी द्वार प्रवेश किया। हालांकि, त्रिशूर यहां केवल एक घंटे ही रूके और उन्हें वापस बुला लिया गया। त्रिशूर के जिला कलक्टर टी वी अनुपमा ने उन्हें इस उत्सव में भाग लेने के लिए केवल एक घंटे का समय दिया था। बता दें कि इस पर्व का मुख्य कार्यक्रम साढे दस फुट ऊंचे हाथी के प्राचीन मंदिर के दक्षिणी मुख्य द्वार को खोलने से शुरू होता है। उस समय हाथी पर भगवान की मूर्ति रखी होती है और यह महोत्सव की शुरुआत की प्रतीक है।

    तीन पशु चिकित्सकों के एक दल ने मेडिकल जांच के बाद उन्हें इस पर्व में भाग लेने की अनुमति दी गई। टीम ने त्रिशूर कलेक्टर टी वी अनुपमा को रिपोर्ट सौंपकर कहा था कि हाथी पूरम त्योहार की महत्वपूर्ण रस्म में भाग लेने के लिए फिट है। कुछ समय पहले एक समारोह के दौरान गरजार के हमले में सात लोगों की मौत के बाद जिला प्रशासन ने महोत्सवों में गजराज की भागेदारी पर रोक लगा दी थी। कांग्रेस के पूर्व विधायक और पार्टी के उम्मीदवार टीएन प्रथपन ने कहा की रामचंद्रन को इस प्रथा को निभाने की अनुमति दी जानी चाहिए थी। 

    बता दें कि इस पर्व में भगवान शिव की पूजा होती है। इस त्‍योहार को देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं। 36 घंटे की लंबी पूजा के दौरान शानदार आतिशबाजी होती है। इतना ही नहीं यहां पर रंगों, संगीत और भक्ति का एक अनोखा संगम देखने को मिलता है। इस दौरान करीब 50 सजे-धजे हाथी ड्रम की आवाज पर थिरकते हुए सड़कों पर निकलते हैं। इसकी शुरुआत 18 वीं शताब्दी में तत्कालीन कोच्चि राज्य के महाराजा साक्षात थमपुरन ने की थी।

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