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    आपके बच्‍चे के लिए जानलेवा है डिप्थीरिया, जानें इसके कारण, लक्षण और बचाव

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Thu, 04 Oct 2018 04:41 PM (IST)

    डिफ्थीरिया एक संक्रामक बीमारी है । इसके होने के बाद सांस लेने में काफी परेशानी होती है। यदि कोई व्‍यक्ति इस बीमारी से पीडि़त के संपर्क में आता है तो उसे भी डिफ्थीरिया हो सकता है।

    आपके बच्‍चे के लिए जानलेवा है डिप्थीरिया, जानें इसके कारण, लक्षण और बचाव

    नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। डिप्‍थीरिया एक ऐसी संक्रामक बीमारी है जो हमारे और आपके बच्‍चों के लिए बेहद खतरनाक है। आम भाषा में इसे गलघोंटू के नाम से भी जाना जाता है। इंफेक्‍शन से फैलने वाली यह बीमारी वैसे तो किसी भी आयुवर्ग को हो सकती है, लेकिन सर्वाधिक इसकी चपेट में बच्‍चे ही आते हैं। 

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    इसके होने के बाद सांस लेने में काफी परेशानी होती है। यदि कोई व्‍यक्ति इसके संपर्क में आता है तो उसे भी डिप्‍थीरिया हो सकता है। यदि इसके लक्षणों को पहचानने के बाद इसका उपचार न कराया जाए तो यह पूरे शरीर में फैलकर जानलेवा हो जाती है। आइए आपको बताते हैं इस बीमारी के कारण, लक्षण और बचाव। 

    डिप्‍थीरिया क्‍या है
    डिप्‍थीरिया कॉरीनेबैक्टेरियम डिप्‍थीरिया बैक्टीरिया के इंफेक्शन से होता है। इसके बैक्‍टीरिया टांसिल और श्वास नली को संक्रमित करते हैं। संक्रमण फैलने से एक ऐसी झिल्ली बन जाती है, जो सांस लेने में बाधक बनती है। 

    संक्रमण फैलने पर हो सकती है मौत
    इस बीमारी के होने पर गला सूखने लगता है, आवाज फटने लगती है, गले में जाल पड़ने के बाद सांस लेने में दिक्कत होती है। इलाज न कराने पर शरीर के अन्य अंगों में संक्रमण फैल जाता है। यदि इसके जीवाणु हृदय तक पहुंच जाएं तो जान भी जा सकती है। डिफ्थीरिया से संक्रमित बच्चे के संपर्क में आने पर अन्य बच्चों को भी इस बीमारी के होने का खतरा रहता है।

     संक्रमण फैलने के कारण

    इस बीमारी का संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में खांसने और छींकने से फैलता है।
    इसके संक्रमण जीवाणु पीड़ित व्यक्ति के मुंह, नाक और गले में रहते हैं।
    यदि इसके इलाज में देरी हो जाये तो जीवाणु पूरे शरीर में फैल जाते हैं।
    बारिश के मौसम में इसके जीवाणु सबसे अधिक फैलते हैं।

    क्‍या है डिप्‍थीरिया का उपचार
    इस बीमारी के मरीज को एंटी-टॉक्सिन्‍स दिया जाता है। यह टीका व्‍यक्ति को बांह में लगाया जाता है। एंटी-टॉक्सिन देने के बाद चिकित्‍सक एंटी-एलर्जी टेस्‍ट कर सकते हैं, इस टेस्‍ट में यह जांच की जाती है कि कहीं मरीज की त्‍वचा एंटी-टॉक्सिन के प्रति संवेदनशील तो नहीं। शुरूआत में डिफ्थीरिया के लिए दिये जाने वाले एंटी-टॉक्सिन की मात्रा कम होती है, लेकिन धीरे-धीरे इसकी मात्रा को बढ़ा सकते हैं। 

     

    डॉक्‍टर से परामर्श के बाद ही दे दवाएं
    डिप्थीरिया का संदेह होने पर डॉक्‍टर से परामर्श करने के बाद ही बच्‍चों को दवा दें। क्‍योंकि बिना समझे दवाएं देने से संक्रमण फैलने से तो नहीं रुकेगा अलबत्‍ता और समस्‍याएं पैदा हो सकती हैं।

    एंटी-टॉक्सिन
    अगर डॉक्टर को डिप्थीरिया का संदेह होता है, तो संक्रमित व्यक्ति या बच्चे को एंटी-टॉक्सिन दवा दी जाती है। नस या मांसपेशी में एंटी-टॉक्सिन का टीका लगाने से शरीर में मौजूद डिप्थीरिया के विषाक्त पदार्थों का प्रभाव बेअसर हो जाता है। एंटी-टॉक्सिन देने से पहले, डॉक्टर इस बात की जांच करते हैं कि क्या रोगी को एंटी-टॉक्सिन से कोई एलर्जी है या नहीं। इससे एलर्जी वाले व्यक्तियों को पहले एंटी-टॉक्सिन के प्रति असंवेदनशील बनाया जाता है। इसके लिए डॉक्टर रोगी को पहले एंटी-टॉक्सिन की कम खुराक देते हैं और फिर धीरे-धीरे खुराक बढ़ा देते हैं।

    एंटीबायोटिक दवाएं
    एंटीबायोटिक दवाओं से भी डिप्थीरिया का इलाज किया जाता है। एंटीबायोटिक दवाओं से शरीर में मौजूद बैक्टीरिया को मारा जाता है और संक्रमण ठीक किए जाते हैं। जिन लोगों या बच्चों को बार-बार डिप्थीरिया होता है, उन्हें अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है। छोटे बच्चों या बूढ़े लोगों को खासकर डिप्थीरिया से ग्रस्त व्यक्ति से अलग रखना चाहिए। अगर गले में मौजूद ग्रे परत से सांस लेने में तकलीफ हो रही है, तो डॉक्टर इसे हटा भी सकते हैं।

    टीकाकरण कराकर बच्‍च्‍ो को इससे बचाएं 
    डिफ्थीरिया से बच्‍चे को बचाने के लिए वैक्सीनेशन कराया जाता है। नियमित टीकाकरण में डीपीटी (डिप्थीरिया, परटूसस काली खांसी और टिटनेस) का टीका लगाया जाता है। एक साल के बच्चे को डीपीटी के तीन टीके लगते हैं। इसके बाद डेढ़ साल पर चौथा टीका और 4 साल की उम्र पर पांचवां टीका लगता है। टीकाकरण के बाद डिप्थीरिया होने की संभावना नहीं रहती है।