'अगर बीमित ने खुद आग नहीं लगाई तो बीमा दावे के लिए आग का कारण महत्वहीन', सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी
अग्नि बीमा (फायर इंश्योरेंस) को जोखिम प्रबंधन, संपत्ति के संरक्षण और आर्थिक लचीलेपन का रणनीतिक माध्यम बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि आग लगने का कारण तब तक महत्वहीन है जब तक कि वह बीमित ने खुद न लगाई गई हो। आग की अन्य घटनाएं बीमा पालिसियों के अंतर्गत आती हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अग्नि बीमा पॉलिसी आग लगने से नहीं रोकती (फोटो- एएनआई)
पीटीआई, नई दिल्ली। अग्नि बीमा (फायर इंश्योरेंस) को जोखिम प्रबंधन, संपत्ति के संरक्षण और आर्थिक लचीलेपन का रणनीतिक माध्यम बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि आग लगने का कारण तब तक महत्वहीन है जब तक कि वह बीमित ने खुद न लगाई गई हो।
आग की अन्य घटनाएं बीमा पालिसियों के अंतर्गत आती हैं। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के विरुद्ध ओरियन कानमर्क्स प्राइवेट लिमिटेड का दावा बरकरार रखा।
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने कहा, ''इस अदालत का मानना है कि एक बार यह स्थापित हो जाने पर कि नुकसान आग के कारण हुआ है और धोखाधड़ी का कोई आरोप या निष्कर्ष नहीं है या बीमित व्यक्ति ने आग नहीं लगाई है तो आग लगने का कारण महत्वहीन है। फिर यह मानना होगा कि आग दुर्घटनावश थी और अग्नि बीमा पालिसी के दायरे में आती है।''
पीठ ने फैसला सुनाया कि सितंबर, 2010 में कंपनी के परिसर को नुकसान पहुंचाने वाली आग दुर्घटनावश थी और अग्नि बीमा पालिसियों के अंतर्गत कवर थी। कहा कि अग्नि बीमा पालिसी आग लगने से नहीं रोकती, बल्कि आग लगने पर उसके वित्तीय असर को कम करती है।
यह स्थापित कानून है कि अग्नि बीमा का अनुबंध बीमित व्यक्ति को आग से होने वाले नुकसान की भरपाई करने का एक अनुबंध है। अदालत ने नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड की अपील खारिज कर दी और ओरियन कानमर्क्स की क्रास-अपील को स्वीकार कर लिया।
साथ ही निर्देश दिया कि कंपनी को ब्याज सहित मुआवजा दिया जाए।यह विवाद 25 सितंबर, 2010 को ओरियन के परिसर में आग लगने के बाद नेशनल इंश्योरेंस कंपनी द्वारा ओरियन के आग से नुकसान के दावे को अस्वीकार करने से उत्पन्न हुआ था।
2020 में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने ओरियन की शिकायत को आंशिक रूप से स्वीकार कर बीमा कंपनी को अस्वीकृति की तिथि से नौ प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ 61.39 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया था। दोनों पक्षों ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
नेशनल इंश्योरेंस कंपनी ने तर्क दिया कि आग पालिसी के दायरे में नहीं आती और नुकसान पालिसी की शर्तों के तहत दावे का समर्थन नहीं करता। उसने सर्वेक्षक की अंतिम रिपोर्ट पर भरोसा करने की मांग की, जिसमें आग के कारण पर सवाल उठाया गया था और आग के कई स्थानों का जिक्र किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल इंश्योरेंस कंपनी के तर्क खारिज कर दिए और अस्वीकृति को मनमाना एवं विकृत करार दिया। कहा कि न तो सर्वेक्षक की अंतिम रिपोर्ट में और न ही बीमा कंपनी ने बीमाधारक द्वारा धोखाधड़ी, लापरवाही या जानबूझकर कदाचार का आरोप लगाया। एक बार यह स्थापित हो जाने पर कि नुकसान आग के कारण हुआ है और धोखाधड़ी का कोई आरोप नहीं है.. आग लगने का कारण महत्वहीन है।

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