क्या कोई तीन दिन में 10 किलो वजन कम कर सकता है?, कलकत्ता हाई कोर्ट ने इस मामले में दागा सवाल
कलकत्ता हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान सवाल उठाया कि क्या कोई व्यक्ति तीन दिन में 10 किलो वजन कम कर सकता है? दरअसल बिट्टू गंगोपाध्याय नामक एक युवक ने केंद्रीय बल की भर्ती परीक्षा में भाग लिया था। उसका दावा है कि उसने शारीरिक दक्षता समेत सभी परीक्षाएं पास कर ली थीं। लेकिन निर्धारित से ज्यादा वजन बताकर उसे नौकरी नहीं दी गई।

राज्य ब्यूरो, जागरण, कोलकाता। कलकत्ता हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान सवाल उठाया कि क्या कोई व्यक्ति तीन दिन में 10 किलो वजन कम कर सकता है?
दरअसल बिट्टू गंगोपाध्याय नामक एक युवक ने केंद्रीय बल की भर्ती परीक्षा में भाग लिया था। उसका दावा है कि उसने शारीरिक दक्षता समेत सभी परीक्षाएं पास कर ली थीं। लेकिन निर्धारित से ज्यादा वजन बताकर उसे नौकरी नहीं दी गई। बिट्टू इससे सहमत नहीं हुआ और उसने अदालत का दरवाजा खटखटाया।
मंगलवार को बिट्टू के वकील लक्ष्मीकांत भट्टाचार्य ने दलील दी कि 15 जुलाई 2024 को सीआरपीएफ मेडिकल बोर्ड ने शारीरिक जांच की थी और उसके मुवक्किल का वजन 82 किलो पाया गया था। तीन दिन बाद 20 जुलाई को बिट्टू ने एक सरकारी अस्पताल में अपना वजन नापा। वहां वजन 72 किलो निकला।
सवाल किया कि कोई व्यक्ति 72 घंटे में 10 किलो वजन कैसे कम कर सकता है? दोनों अस्पतालों की इतनी अलग-अलग रिपोर्ट को लेकर असमंजस की स्थिति थी। पहले हाई कोर्ट की एकल पीठ ने केंद्रीय बल के अस्पताल की रिपोर्ट पर मुहर लगा दी थी। लेकिन युवक फैसले को चुनौती देने हाई कोर्ट की खंडपीठ में चला गया।
इस दिन न्यायमूर्ति सुजय पाल और न्यायमूर्ति स्मिता दास की खंडपीठ ने कहा कि दो मेडिकल रिपोर्टों में विसंगतियों के कारण किसी भी उम्मीदवार को वंचित नहीं किया जा सकता। अदालत का काम न्याय दिलाना है। किसी भी व्यक्ति का वजन सिर्फ तीन दिनों में इतना ज्यादा नहीं बदलता। अदालत को लगता है कि किसी एक रिपोर्ट में गड़बड़ी है इसलिए, दोबारा वजन मापना जरूरी है।
खंडपीठ ने कल्याणी एम्स को तीन सप्ताह के भीतर युवक का वजन मापने सहित एक चिकित्सकीय परीक्षण रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया। यदि पात्रता सिद्ध होती है, तो अतिरिक्त रिक्तियां सृजित की जाएंगी और आवश्यकता पड़ने पर उसे नौकरी दी जाएगी।
एसआइआर में वोटर कार्ड को भी पहचान माना जाए : ममता
राज्य ब्यूरो, जागरण, कोलकाता : मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआइआर) के मुद्दे पर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि केवल आधार कार्ड को पहचान पत्र मानना सही नहीं है। मतदाता पहचान पत्र (ईपिक कार्ड) भी एक वैध पहचान पत्र है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
मांग की कि ईपिक कार्ड को भी एसआइआर में शामिल किया जाना चाहिए और इसे पहचान पत्र माना जाए। यह भी कहा कि एसआइआर को जल्दबाजी में लागू करना लोगों के अधिकारों पर संकट ला सकता है। स्पष्ट किया कि उनकी सरकार एसआइआर लागू करने की मौजूदा प्रक्रिया के खिलाफ है।
कहा कि तीन पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त भी यह कह चुके हैं कि एसआइआर को पूरा करने में कम से कम दो से तीन साल का समय लगता है। इसे जल्दबाजी में लागू करना संभव नहीं है। ममता ने चेतावनी दी कि यदि प्रक्रिया को बिना पूरी तैयारी और व्यापक विचार-विमर्श के लागू किया गया तो लाखों लोगों की पहचान और मतदाता अधिकारों पर संकट खड़ा हो सकता है।
हाई कोर्ट ने गर्भवती को घुसपैठिया बताकर बांग्लादेश भेजने पर उठाया प्रश्न
कलकत्ता हाई कोर्ट ने आठ महीने की गर्भवती व उसके परिवार को घुसपैठिया बताकर बांग्लादेश भेजने की पद्धति पर प्रश्न उठाया है। मालूम हो कि सोनाली बीबी, उनके पति दानिश शेख व बेटे को दिल्ली से गिरफ्तार करके बांग्लादेश भेज दिया गया था। सोनाली पिछले दो दशक से भी अधिक समय से दिल्ली के रोहिणी इलाके में रह रही थी। उसके पिता भोदू शेख ने कलकत्ता हाई कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की है।
सुप्रीम कोर्ट ने भी हाई कोर्ट को मामले पर सुनवाई करने को कहा है। न्यायमूर्ति तपोब्रत चक्रवर्ती व न्यायमूर्ति ऋतब्रत कुमार की खंडपीठ ने मामले पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार के अधिवक्ता से प्रश्न किया कि सोनाली व उनके परिवार को गत 26 जून को बांग्लादेश भेजे जाने से मात्र दो दिन पहले गिरफ्तार किया गया था?
मात्र दो दिनों में यह कैसे निर्धारित कर लिया गया कि वे बांग्लादेशी हैं। कानून के मुताबिक कम से कम 30 दिन उन्हें हिरासत में रखकर मामले की जांच किए जाने की जरुरत थी। मामले में इस पद्धति का अनुसरण क्यों नही किया गया? उन्हें बांग्लादेश भेजने की इतनी हड़बड़ क्या थी? खंडपीठ ने आगामी गुरुवार को इसका जवाब देने को कहा है, जिस दिन मामले पर अगली सुनवाई होगी। सोनाली के पिता का कहना है कि वे लोग मूल रूप से बंगाल के बीरभूम जिले के रहने वाले हैं।
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