Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    राजीव गांधी हत्याकांड के दोषी पेरारिवलन की दया याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हम अपनी आंखें बंद नहीं कर सकते

    By Arun Kumar SinghEdited By:
    Updated: Wed, 04 May 2022 11:08 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट बुधवार को केंद्र की इस दलील से सहमत नहीं है कि अदालत को राजीव गांधी हत्याकांड के दोषी एजी पेरारिवलन की दया याचिका पर राष्ट्रपति के फैसले का इंतजार करना चाहिए। राजीव गांधी हत्‍याकांड में पेरारिवलन आजीवन कारावास की सजा काट रहा है।

    Hero Image
    राजीव गांधी हत्‍याकांड में पेरारिवलन आजीवन कारावास की सजा काट रहा है। इस पर सुनवाई हो रही है

    नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले में उम्रकैद के तहत 30 से अधिक साल जेल में काट चुके एजी पेरारिवलन को रिहा करने के राज्य मंत्रिमंडल के फैसले को मानने के लिए तमिलनाडु के राज्यपाल बाध्य हैं। शीर्ष अदालत ने दया याचिका राष्ट्रपति के पास भेजने के राज्यपाल के कदम को खारिज करते हुए कहा कि संविधान के खिलाफ कुछ हो रहा हो तो आंख मूंदकर नहीं रहा जा सकता। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार की इस राय से सहमति नहीं जताई कि अदालत को इस विषय पर राष्ट्रपति का फैसला आने तक इंतजार करना चाहिए।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने केंद्र से कहा कि राज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत तमिलनाडु के मंत्रिमंडल द्वारा दी गई सलाह मानने के लिए बाध्य हैं। पीठ ने केंद्र को अगले सप्ताह तक जवाब देने का निर्देश दिया। पीठ ने केंद्र की ओर से अतिरिक्त सालिसिटर जनरल (एएसजी) केएम नटराज से कहा, 'इस बारे में फैसला अदालत को लेना है, राज्यपाल के फैसले की जरूरत भी नहीं है। वह मंत्रिमंडल के फैसले के प्रति बाध्य हैं। हमें इस बारे में देखना होगा।'

    नटराज ने कहा कि राज्यपाल ने फाइल राष्ट्रपति को भेज दी है। उन्होंने कहा, 'अगर राष्ट्रपति इसे (दया याचिका को) वापस राज्यपाल को भेज देते हैं तो इस मुद्दे पर बात करने की जरूरत ही नहीं है। राष्ट्रपति खुद फैसला करेंगे कि राज्यपाल उन्हें फाइल भेज सकते हैं या नहीं। फाइल भेजा जाना सही है या नहीं, यह निर्णय पहले राष्ट्रपति द्वारा लिया जाना चाहिए।'

    शीर्ष अदालत ने कहा, 'हम उसे जेल से रिहा करने का आदेश देंगे क्योंकि आप मामले के गुणदोषों पर चर्चा करने को तैयार नहीं हैं। हम ऐसी किसी बात पर आंख नहीं मूंद सकते जो संविधान के खिलाफ हो। कानून से ऊपर कोई नहीं है।' पीठ ने कहा, 'हमें लगता है कि कानून की व्याख्या करने का काम हमारा है, राष्ट्रपति का नहीं।'

    शीर्ष अदालत ने एएसजी की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि दया याचिका की फाइल हाल में उनके पास आई है। पीठ ने कहा कि केंद्र के पास दया याचिका की फाइल राज्यपाल को लौटाने के लिए पर्याप्त समय था। पीठ ने कहा, 'वह (पेरारिवलन) रिहा होना चाहता है क्योंकि 30 साल से अधिक समय वह जेल में बिता चुका है। हमने पहले भी उम्रकैद के सजायाफ्ता कैदियों के पक्ष में फैसले सुनाए हैं जो 20 साल से अधिक सजा काट चुके हैं। अपराध कुछ भी हो, इस मामले में कोई भेदभाव नहीं हो सकता।'

    शीर्ष अदालत ने कहा, 'उसने जेल में रहते हुए कई शैक्षणिक योग्यताएं हासिल की हैं। जेल में उसका आचरण अच्छा है। जेल में कई साल से रहते हुए उसे कई बीमारियां भी हो गई हैं। हम आपसे उसकी रिहाई के लिए नहीं कह रहे। अगर आप इन पहलुओं पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं तो हम उसकी रिहाई का आदेश देने पर विचार करेंगे।'

    तमिलनाडु की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि दया याचिका पर राष्ट्रपति के फैसले का इंतजार करने की केंद्र की दलील पूरी तरह बेतुकी है और इससे संघवाद की अवधारणा को झटका लगेगा। पेरारिवलन की ओर से वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि हर बार राज्यपाल ने इस विषय पर फैसला नहीं करने का कोई न कोई बहाना बना दिया। एएसजी ने इस दलील पर आपत्ति जताते हुए कहा कि राज्यपाल मामले में पक्ष नहीं हैं। शीर्ष अदालत ने पेरारिवलन को नौ मार्च को जमानत दी थी।