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वैक्सीन पर भारत के अभियान को ईयू का भी मिला साथ, अमेरिका यात्रा के दौरान जयशंकर आगे की योजना पर करेंगे बात

Covid-19 Vaccination यह भी माना जा रहा है कि सोमवार से पांच दिवसीय यात्रा पर अमेरिका जा रहे भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर के दौरे के दौरान भी भारत-अमेरिका के बीच इस बारे में विस्तार से चर्चा होगी।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Published: Sat, 22 May 2021 07:54 PM (IST)Updated: Sat, 22 May 2021 08:02 PM (IST)
सोमवार से पांच दिवसीय यात्रा पर अमेरिका जा रहे विदेश मंत्री एस जयशंकर

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कोरोना के खात्मे के लिए अहम वैक्सीन को पेटेंट के जाल से मुक्त करने के भारत के अभियान को तब बड़ी सफलता मिली जब यूरोपीय संघ (EU) ने भी इससे संबंधित प्रस्ताव को समर्थन देने का फैसला किया। शुक्रवार को ईयू की संसद ने भारत और दक्षिण अफ्रीका की तरफ से कोरोना वैक्सीन को बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) नियमों से एक निश्चित अंतराल के लिए अलग करने के प्रस्ताव का समर्थन करने की घोषणा की। अमेरिका के बाद ईयू दूसरी बड़ी वैश्विक शक्ति है जो इसके पक्ष में उतरी है। जानकारों का कहना है कि ईयू के एलान के बाद आगामी माह में विश्व व्यापार संगठन (WTO के तहत होने वाली बैठक में फैसला होना अब काफी हद तक निश्चित हो गया है।

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कई मुद्दों पर होना है फैसला 

यह भी माना जा रहा है कि सोमवार से पांच दिवसीय यात्रा पर अमेरिका जा रहे विदेश मंत्री जयशंकर के दौरे के दौरान भी भारत-अमेरिका के बीच इस बारे में विस्तार से चर्चा होगी। सूत्रों के मुताबिक, अभी अमेरिका व ईयू से सिर्फ समर्थन का एलान हुआ है, लेकिन इस बारे में पूरे प्रस्ताव को तैयार करने, जिन कंपनियों ने वैक्सीन बनाने में अरबों डालर खर्च किए हैं उनके हितों की सुरक्षा करने, वैक्सीन निर्माण का अधिकार किस तरह की कंपनियों को दिया जाएगा, इस तरह के कई मुद्दों पर फैसला होना है। इसमें भारत व अमेरिका मुख्य भूमिका निभाएंगे। ईयू की संसद से पारित प्रस्ताव में स्पष्ट कहा गया है कि वे सिर्फ अंशकालिक तौर पर ही आइपीआर की प्रतिबद्धता समाप्त करने का समर्थन करेंगे। सभी देशों के समक्ष एक बड़ा सवाल यह होगा कि कितने समय के लिए कोरोना वैक्सीन को आइपीआर से अलग कर दूसरी कंपनियों को इसके निर्माण की इजाजत दी जाए।

वैश्विक टीकाकरण को लेकर बनाई जाए पारदर्शी नीति

ईयू संसद का समर्थन बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि अमेरिका की घोषणा के बाद कई यूरोपीय देशों में इसके खिलाफ आवाज उठी थी। पारित प्रस्ताव में संसद ने ईयू से कहा है कि वह वैश्विक टीकाकरण को लेकर एक साफ व पारदर्शी नीति बनाए जिसमें विकासशील देशों में तेजी से टीकाकरण की प्रक्रिया को अंजाम दिया जा सके। खास तौर से इन देशों के उस समूह को वैक्सीन दी जा सके जिनके कोरोना से संक्रमित होने का खतरा ज्यादा है। इस संदर्भ में संसद ने ईयू से कहा कि वे भारत व दक्षिण अफ्रीका के प्रस्ताव का समर्थन करें। अगर यह हो जाता है तो कोरोना वैक्सीन व दूसरी दवाएं बनाने वाली कंपनियों को अपने फार्मूले विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के टेक्नीकल एक्सेस पूल (सी-टैप) के जरिये साझा करने होंगे ताकि दूसरी कंपनियां इसे बना सकें।


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