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    पोस्टमार्टम में शराब की गंध मिलने मात्र से मुआवजे से नहीं किया जा सकता इनकार, कलकत्ता हाईकोर्ट का फैसला

    Updated: Tue, 16 Dec 2025 11:21 PM (IST)

    कलकत्ता हाई कोर्ट ने कहा कि सडक़ दुर्घटना में मृत व्यक्ति की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पेट से शराब की गंध पाए जाने मात्र से उसके उत्तराधिकारियों को मुआवज ...और पढ़ें

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    शराब की गंध मिलने से मुआवजे से इनकार नहीं: कलकत्ता हाई कोर्ट

    राज्य ब्यूरो, कोलकाता। कलकत्ता हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा किया है कि सडक़ दुर्घटना में मृत व्यक्ति की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पेट से शराब की गंध पाए जाने मात्र के आधार पर उसके कानूनी उत्तराधिकारियों को मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत मुआवजे से वंचित नहीं किया जा सकता।

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    अदालत ने कहा कि नशे में वाहन चलाने का आरोप तभी स्वीकार्य होगा, जब उसे कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार विधिवत प्रमाणित किया गया हो। न्यायमूर्ति बिश्वरूप चौधरी ने न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड द्वारा दायर अपील को खारिज करते हुए पूर्व मेदिनीपुर के तमलुक स्थित तीसरी अतिरिक्त जिला जज अदालत के मुआवजा आदेश को बरकरार रखा।

    शराब की गंध मिलने से मुआवजे से इनकार नहीं

    ट्रायल कोर्ट ने 22 मई 2024 को अपने फैसले में मृतक गणेश दास के स्वजनों को 11.41 लाख रुपये का मुआवजा छह प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित देने का निर्देश दिया था।
    मामला 27 दिसंबर 2020 की एक सडक़ दुर्घटना से जुड़ा है, जिसमें मोटरसाइकिल सवार गणेश दास की एक ट्रक से टक्कर हो गई थी।

    आरोप था कि ट्रक चालक ने लापरवाही और तेज गति से वाहन चलाया, जिससे दुर्घटना हुई और गणेश दास की मौके पर ही मौत हो गई। मृतक की मां और अन्य आश्रितों ने मोटर वाहन अधिनियम की धारा 166 के तहत मुआवजे की मांग की थी।

    बीमा कंपनी ने मुआवजे के आदेश को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतक के पेट से शराब की गंध पाए जाने का उल्लेख है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वह नशे की हालत में वाहन चला रहा था। इसके अलावा, कंपनी ने यह भी दलील दी कि मृतक की मोटरसाइकिल बीमित नहीं थी और मुआवजे की राशि अत्यधिक है।

    मृत व्यक्ति स्वयं अपने बचाव में कुछ कहने की स्थिति में नहीं होता

    इन दलीलों पर विचार करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि मोटर वाहन अधिनियम की धारा 185 के तहत नशे में वाहन चलाने को साबित करने के लिए यह दिखाना आवश्यक है कि रक्त में अल्कोहल की मात्रा कानूनन निर्धारित सीमा से अधिक थी।

    क्योंकि मृत व्यक्ति स्वयं अपने बचाव में कुछ कहने की स्थिति में नहीं होता। अदालत ने यह भी कहा कि इस मामले में न तो रक्त अल्कोहल परीक्षण कराया गया और न ही ब्रेथ एनालाइजर से जांच की गई। ऐसे में केवल शराब की गंध के आधार पर यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि मृतक नशे की हालत में वाहन चला रहा था।

    मोटरसाइकिल के बीमित न होने की दलील को भी अदालत ने खारिज कर दिया। हाई कोर्ट ने कहा कि मुआवजे का दावा दुर्घटना के लिए जिम्मेदार ट्रक के बीमाकर्ता के खिलाफ किया गया है, न कि मृतक की मोटरसाइकिल के बीमाकर्ता के खिलाफ। इसलिए इस आधार पर बीमा कंपनी को कोई राहत नहीं दी जा सकती।

    बिना वैध बीमा के वाहन सडक़ों पर न चलें 

    हालांकि, अदालत ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि बीमा कंपनियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जिन वाहनों का बीमा समाप्त हो चुका है, उनके बारे में परिवहन अधिकारियों को समय पर सूचित किया जाए, ताकि बिना वैध बीमा के वाहन सडक़ों पर न चलें।

    अदालत ने निर्देश दिया कि सभी औपचारिकताएं पूरी होने के बाद दावेदार मुआवजे की राशि और उस पर अर्जित ब्याज निकाल सकते हैं।