कैग की रिपोर्ट: शहरों के पास न पैसा, न योजना; 18 राज्यों में 74वें संविधान संशोधन के क्रियावन्यन का किया आंकलन
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में भी देश के शहरों में कामचलाऊ रवैये और उनकी कमजोर दशा-दिशा की सच्चाई सामने आई है। केवल दस राज्यों ने ही वित्त आयोगों का गठन किया है जो 74वें संविधान संशोधन की एक अनिवार्य व्यवस्था है। इनमें से केवल असम में सक्रिय निर्वाचित परिषद है शेष 17 में या तो बनी नहीं या बनी है तो निष्क्रिय स्थिति में है।

मनीष तिवारी, नई दिल्ली। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में भी देश के शहरों में कामचलाऊ रवैये और उनकी कमजोर दशा-दिशा की सच्चाई सामने आई है। कैग ने 74वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के प्रविधानों को राज्यों में लागू किए जाने की स्थिति के आकलन को लेकर गत दिवस अपनी रिपोर्ट जारी की।
अपनी तरह की इस पहली रिपोर्ट के अनुसार 17 राज्यों में 2625 शहरी स्थानीय निकायों से 1600 में सक्रिय निर्वाचित परिषद ही नहीं बनी है। कैग ने 18 राज्यों-आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा और उत्तराखंड के प्रदर्शन का आकलन किया है और उनसे संबंधित तथ्य सामने रखे हैं।
केवल असम में सक्रिय निर्वाचित परिषद
इनमें से केवल असम में सक्रिय निर्वाचित परिषद है, शेष 17 में या तो बनी नहीं या बनी है तो निष्क्रिय स्थिति में है। बेंगलुरु स्थित नीति विश्लेषक समूह जनाग्रह के सहयोग के साथ किए गए इस आकलन के अनुसार केवल चार राज्यों-हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, केरल और तमिलनाडु ने अपने निर्वाचन आयोगों को यह अधिकार दिया है कि वे वार्डों का परिसीमन कर सकें।
केवल पांच राज्यों-उत्तराखंड, हरियाणा, झारखंड, छत्तीसगढ़ और तमिलनाडु ने अपने शहरी निवासियों को सीधे मेयर चुनने का अधिकार दिया है। इसका मतलब है कि 18 राज्यों की 24.1 करोड़ आबादी में केवल 6.1 करोड़ ही लोग अपने शहरों के मेयर को खुद चुन सकते हैं।
74वें संविधान संशोधन की एक अनिवार्य व्यवस्था
राज्य पांच साल में अपने यहां वित्त आयोगों का भी गठन नियमित रूप से नहीं कर रहे हैं। उनकी ओर से वित्त आयोगों के गठन में औसतन 412 दिनों की देरी होती है। केवल दस राज्यों ने ही वित्त आयोगों का गठन किया है, जो 74वें संविधान संशोधन की एक अनिवार्य व्यवस्था है।
जनाग्रह के सीईओ श्रीकांत विश्वनाथन ने कहा कि बहुप्रचारित 74वें संविधान संशोधन विधेयक यानी जिसके जरिये नगरीय निकायों को तमाम शक्तियां दी गई थीं, को लागू करने के मामले में राज्यों की ढिलाई को सामने लाकर कैग ने बहुत बड़ा काम किया है। इससे यह जानने में मदद मिलती है कि देश में शहरी स्थानीय सरकारें कमजोर क्यों बनी हुई हैं। यह वास्तविकता का सबसे बड़ा सुबूत है, जो आंकड़ों के द्वारा पुष्ट किए गए हैं।
केवल तीन राज्यों ने जिला विकास योजनाएं बनाई
कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि केवल तीन राज्यों ने जिला विकास योजनाएं बनाई हैं। ये राज्य हैं-केरल, महाराष्ट्र और उत्तराखंड और केवल दस राज्य जिला नियोजन समितियां बना सके हैं। शहरी स्थानीय निकायों में औसतन केवल 61 प्रतिशत पैसा खर्च किया गया है। इसका मतलब है कि हमारे शहर न तो अपने स्त्रोतों से धन जुटा सके और न ही आवंटन के जरिये मिले पैसे का पूरा इस्तेमाल कर सके। अपने संसाधनों से खर्च के मामले में 42 प्रतिशत का अंतर है। यह बड़ा अंतर है और बताता है कि निकाय अपने खर्चों के मामले में खुद को तैयार नहीं कर पा रहे हैं।
सभी निकायों में 37 प्रतिशत स्टाफ की कमी
कैग ने एक और बड़ी कमी का उल्लेख किया है। सभी निकायों में 37 प्रतिशत स्टाफ की कमी है, जिसके चलते वे बढ़ी हुई चुनौतियों का मुकाबला करना तो दूर रहा, पहले जितना काम भी नहीं कर पा रहे हैं।
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