Budget 2025: खेती बनेगी अर्थव्यवस्था का पहला इंजन, किसान क्रेडिट कार्ड को लेकर बड़ी घोषणा; कृषि सेक्टर को क्या-क्या मिला?
बजट में सबसे ज्यादा जोर कृषि सेक्टर पर दिया गया है। इस बजट में कई बड़े एलान किए गए हैं। किसान क्रेडिट कार्ड की ऋण सीमा को 3 लाख रुपये से बढ़ाकर 5 लाख रुपये किया गया है। इसके साथ ही बिहार में मखाना बोर्ड बनाने का एलान किया गया है। इसके साथ में कपास उत्पादकता के लिए पांच वर्षीय अभियान की घोषणा की गई है।

अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। बजट में सबसे ज्यादा जोर कृषि सेक्टर पर दिया गया है। विकसित भारत के सपने को साकार करने के लिए इसे अर्थव्यवस्था का प्रथम इंजन बताया गया है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने भारत की विकास यात्रा के लिए पूरे कृषि बजट में कई दूरगामी नीतिगत मामलों की तस्वीर पेश की है।
हालांकि, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के लिए बजट देने में हाथ बांध लिए हैं। पिछली बार से भी ढाई प्रतिशत कम है। कई योजनाओं की राशि में भी कटौती कर दी गई है। हालांकि कृषि क्षेत्र के विकास और उत्पादकता में वृद्धि के लिए कई उपायों की घोषणा की है।
KCC की सीमा बढ़ी
किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) के जरिए मिलने वाले ऋण की अधिकतम सीमा को तीन लाख से बढ़ाकर पांच लाख किए जाने को कृषि क्षेत्र का क्रांतिकारी कदम माना जा सकता है। इससे लगभग 7.7 करोड़ किसानों, मछुआरों एवं पशुपालकों को लघु अवधि के ऋणों की सुविधा मिलेगी।
वित्त मंत्री ने क्या कहा?
वित्तमंत्री ने सीमांत किसानों के लिए इसका महत्व भी बताया, लेकिन सच यह भी है कि कितने किसानों को यह सुविधा आसानी से मिल पाती है। ऋण लेने की प्रक्रिया इतनी कठिन और बैंकों का व्यवहार इतना उलझाऊ है कि किसान इस पचड़े में पड़ने से परहेज करते हैं। देश में करीब 88 प्रतिशत किसानों के पास दो हेक्टेयर से कम जमीन है, जिन्हें केसीसी लोन की जरूरत पड़ती है। कृषि मंत्रालय को कुल 1,37,756.55 करोड़ रुपये मिले हैं।
भारत को फूड मार्केट बनाने की तैयारी में सरकार
डिपार्टमेंट ऑन एग्रीकल्चर एंड रिसर्च के लिए 10466.39 करोड़ का प्रविधान है। पिछले वर्ष इसके लिए 10156.35 करोड़ रुपये दिया गया था, जिससे सिर्फ 310.04 करोड़ रुपये अधिक है। सरकार का प्रयास भारत को फूड मार्केट बनाने का है। इसके लिए किसानों को कई तरह की आर्थिक सहायता देने की बात कही गई है। सरकार के सामने बढ़ती आबादी के लिए फिलहाल खाद्य असुरक्षा जैसा कोई खतरा नहीं है। किंतु दलहन के मामले में हाथ तंग है।
दलहन में आत्मनिर्भरता मिशन की होगी शुरुआत
- तमाम प्रयासों के बावजूद विदेश पर निर्भरता में कमी नहीं आई है। ऐसे में अरहर, उड़द और मसूर की खेती पर ध्यान देने की योजना है। इसके लिए एक हजार करोड़ रुपये से छह वर्षीय 'दलहन में आत्मनिर्भरता मिशन' की शुरुआत होगी। किसानों से अगले चार वर्षों तक सारी दालें खरीदी जाएंगी।
- वित्तमंत्री ने दलहन में आत्मनिर्भरता के लिए किए गए पुराने प्रयासों को याद करते हुए कहा कि सरकार ने दलहन उगाने वाले किसानों को लाभकारी मूल्य की व्यवस्था की थी, जिससे काफी हद तक उत्पादन बढ़ा था। चना दाल में भारत आज भी आत्मनिर्भर है, लेकिन अरहर, उड़द और मसूर की भारी कमी है।
- आर्थिक सर्वेक्षण के निष्कर्षों से सबक लेकर सरकार का जोर उत्पादकता बढ़ाने पर है। इसके लिए उच्च पैदावार बीज मिशन की स्थापना होगी, जिसका उद्देश्य अनुसंधान कार्यों को प्रोत्साहित करना, उच्च पैदावार, कीट प्रतिरोधी एवं जलवायु अनुकूलन बीजों का विकास एवं प्रचार करना होगा। इसके तहत जुलाई 2024 से जारी किए गए बीजों की सौ से अधिक किस्मों को वाणिज्यिक स्तर पर उपलब्ध कराया जाएगा।
- सरकार के सामने फिलहाल खाद्य सुरक्षा का खतरा नहीं है, लेकिन बढ़ती आबादी की जरूरतों के हिसाब से पोषण सुरक्षा के लिए दस लाख जर्मप्लाज्म लाइनों के साथ दूसरे जीन बैंक की स्थापना की जाएगी। यह सार्वजनिक एवं निजी दोनों क्षेत्रों को आनुवांशिक अनुसंधान के लिए सहायता करेगा।
कपड़ा उद्योग को मजबूत करने की कोशिश
सरकार की योजना कपड़ा उद्योग को भी मजबूती देने की है, ताकि भारत अपने पुराने गौरव को प्राप्त कर सके। इसके लिए पांच सौ करोड़ रुपये पंच वर्षीय कपास उत्पादकता अभियान चलाया जाएगा, जिससे उन्नत किस्म एवं लंबे रेशे वाले कपास की उपलब्धता बढ़ेगी। किसानों को प्रौद्योगिकी सहायता दी जाएगी, जो वस्त्र क्षेत्र के विकास में सहायक होगा। किसानों की आय बढ़ेगी और भारत के परंपरागत वस्त्र क्षेत्र में नई जान आएगी।
बिहार में होगी मखाना बोर्ड की स्थापना
बिहार में मखाना बोर्ड बनाने की घोषणा करते हुए वित्तमंत्री ने कहा कि इससे मखाना का उत्पादन, प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन एवं विपणन व्यवस्था में सुधार आएगा। कारोबार में लगे किसानों की जेब भरेगा और प्रशिक्षण सहायता देकर सुनिश्चित करेगा कि उन्हें सभी संबंधित सरकारी योजनाओं का भी लाभ मिले हैं।
देश में उर्वरक संकट को देखते हुए असम के नामरूप में 12.7 लाख टन की वार्षिक उत्पादन क्षमता वाले उर्वरक प्लांट लगाने की घोषणा की गई है। इसके अतिरिक्त पूर्वी क्षेत्र में निष्कि्रय पड़े तीन यूरिया संयंत्रों को फिर से शुरू किया जाएगा।
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