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    ब्रज को लुभातीं 'कृष्ण मृग' की कुलांचें, हाथरस व अलीगढ़ में बढ़ रहा है कुनवा

    By Edited By:
    Updated: Fri, 05 Oct 2018 08:21 AM (IST)

    कृष्ण मृग के लिए भले ही राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र व गुजरात राज्य प्रसिद्ध हैं, लेकिन ब्रज में भी इसकी कुलांचें कम नहीं हैैं।

    ब्रज को लुभातीं 'कृष्ण मृग' की कुलांचें, हाथरस व अलीगढ़ में बढ़ रहा है कुनवा

    अलीगढ़ (विनोद भारती)।  ' कृष्ण मृग ' के लिए भले ही राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र व गुजरात राज्य प्रसिद्ध हैं, लेकिन  ब्रज में भी इसकी कुलांचें कम नहीं हैैं।  भगवान श्रीकृष्ण के चलते इनका ब्रज से भी लगाव रहा है। यही वजह है कि जहां अन्य राज्यों में इन्हें लेकर चिंताजनक हालात हैं, वहीं ब्रज के अलीगढ़ सहित अन्य इलाकों में इनकी संख्या बढ़ रही है। इसके पीछे धार्मिक आस्थाएं भी हैं। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण को जितना लगाव गाय से था, उतना ही काले-हिरण से भी। ऐसी भी मान्यता है कि श्रीकृष्ण के रथ को काले हिरण ही चलाते थे। प्रेम के चलते ही उनके शरीर में कभी गाय तो कभी मृग नजर आते थे। शिकारी को तो श्रीकृष्ण के पांव के तलवे में मृग दिखा था।

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    दुर्लभ प्रजाति का संरक्षण 
    सुगठित देह के लिए दुनियाभर में विख्यात काले हिरण यानी कृष्णमृग को अलीगढ़ का भूभाग खूब भाया।  दुर्लभ प्रजाति के इस जीव को यहां कुलांचे मारते देख सरकार ने डेढ़ दशक पहले गभाना के पला सल्लू में काला हिरण संरक्षण केंद्र की स्थापना की, मगर मानवीय प्यार पाकर इस आकर्षक जीव ने संरक्षित केंद्र से बाहर न जाने की बंदिशें भी तोड़ दी हैं। यह संभव हुआ स्थानीय ग्र्रामीणों की वजह से। वन विभाग की उदासीनता के बाद काले हिरण के शिकारियों को ग्र्रामीणों ने ही हमेशा के लिए यहां से खदेड़ दिया। आज भी पूरी शिद्दत से इनके संरक्षण को जुटे रहते हैं।

    पल्ला सल्लू में हिरण संरक्षण केंद्र
    अलीगढ़ जिला मुख्यालय से 18 किमी दूर गभाना क्षेत्र के पल्ला सल्लू  गांव के 63 हेक्टेअर क्षेत्र में काला हिरण संरक्षण केंद्र है। इसकी स्थापना 2003-04 में हुई। तब यहां 1100 काले हिरण गिने गए। 2011 में इनकी संख्या घटकर मात्र 146 रह गई। हायतौबा मचने पर इनके संरक्षण की फिर से कवायद हुई। शिकारियों पर अंकुश लगा। खुद ग्रामीणों ने आगे आकर इसके लिए पहल की। 2013 में यह संख्या 235 व 2015 में 300 तक पहुंच गई। वर्तमान में यहां 350 काले हिरण होने का दावा अधिकारी कर रहे हैं।

    अतरौली में भी 500 कृष्ण मृग
    अतरौली क्षेत्र में काले हिरणों (नर-मादा) का कुनबा बढ़ रहा है। सर्वाधिक काले हिरण गांव नाय व बाय में दिखाई दे रहे हैं। यह संख्या 500 से अधिक बताई जा रही है। अकराबाद, गभाना, गंगीरी, चंडौस व टप्पल में भी काले हिरण दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में इनकी संख्या 2000 से अधिक होने का अनुमान लगाया जा रहा है।

    दो संरक्षण केंद्र, बजट गायब
    विलुप्त प्रजाति के काले हिरणों के संरक्षण के लिए प्रदेश में दो केंद्र बनाए गए हैं। इनमें एक अलीगढ़ के पला सल्लू में ही है, दूसरा इलाहाबाद की मेजा तहसील में। पला सल्लू संरक्षण केंद्र की अनदेखी होती रही है। यहां स्थापना के तीन साल ही बजट आया, उसके बाद कुछ नहीं मिला। सरकार की अनदेखी के चलते ही हिरण अतरौली, गभाना, अकराबाद व अन्य क्षेत्रों में कूच कर गए, जहां उनका कुनबा बढ़ रहा है। काले हिरणों के झुंड देखकर पशु व पर्यावरण प्रेमी खुश हैं, मगर सरकार से इनके संरक्षण के लिए मदद का इंतजार कर रहे हैं।

    इसलिए है खास
    काले हिरण को अंग्रेजी में एंटीलोप सेरवीकप्रा (ब्लैक बक) व भारत में कृष्णमृग नाम से भी जाना जाता है। नर हिरण की पहचान है काले रंग के 30 से 70 सेंटीमीटर तक घुमावदार लंबे सींग, वहीं मादा हिरण के सींग नहीं के बराबर होते हैं। ऊंचाई 29 से 33 इंच होती है। नर का वजन 20 से 57 किलो व मादा 20 से 35 किलो तक होती है। भारत में काले हिरण आमतौर पर राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र व गुजरात में पाए जाते हैं। ये शाकाहारी होते हैं। इनकी उम्र लगभग 10 से 15 साल होती है। अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ने कृष्णमृग को शेड्यूल वन का प्राणी मानते हुए विलुप्त होने वाले जानवरों की श्रेणी में रखा है।

    मौसम के अनुसार बदलता रंग
    नर काले हिरण रंग भी बदलते हैं। मानसून के अंत तक इनका रंग काला दिखता है। सर्दियों में हल्का पडऩे लगता है। अप्रैल की शुरुआत तक एक बार फिर भूरा हो जाता है।

    गणना के बाद पता लगेगा कितने हैं काले हिरण
    क्षेत्रीय वन अधिकारी अशोक कुमार निमेष का कहना है कि अतरौली रेंज में काले हिरणों पर काफी समय काम किया। यहां के गांव नाय और बाय में पला सल्लू संरक्षण केंद्र से भी ज्यादा काले हिरण हैैं। डीएफओ श्रीधर त्रिपाठी का कहना है कि पला सल्लू संरक्षण केंद्र के ही हिरण माइग्र्रेट कर संरक्षित क्षेत्र से बाहर चले जाते हैं। अतरौली में ऐसे हिरणों की संख्या कितनी है, गणना के बाद ही पता चल पाएगा।

    निरंतर बढ़ रही है संख्या
    पला नगलिया के गिर्राज सिंह का कहना है कि यह सुखद है कि काले हिरणों की संख्या निरंतर बढ़ रही है, मगर सरकार इनके संरक्षण को लेकर गंभीर नहीं है। भूखे-प्यासे हिरण आबादी तक पहुंच रहे हैं। गांव बीरिया के मनोज कुमार का कहना है कि काले हिरण कभी भी खेतों में कुलांचे मारते नजर आ जाते हैं। ग्र्रामीण इन्हें देख रोमांचित होते हैं। कोई जंगली जानवर या शिकारी इन पर हमला न करें, इसे लेकर हम सतर्क रहते हैं।

    सिकंदराराऊ में बरसात में दिखती हैं विविध प्रजातियां
    हाथरस जिले में सिकंदराराऊ तहसील मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर है टटी डंडिया का जंगल। यहां भी काले हिरणों का कुनबा आबाद हो रहा है। बारहसिंगा व सफेद हिरण भी सैकड़ों की संख्या में हैं। अच्छी बारिश के चलते हिरणों की विविध प्रजातियां अठखेलियां करती दिख जाती हैं। काले व श्वेत हिरणों की सुरक्षा के लिए स्थानीय ग्र्रामीण खुद पहल कर रहे हैं। वन्य जीव संरक्षण समिति के माध्यम से लोग शिकारियों व जंगली कुत्तों से हिरणों को बचाने में जुटे हैं। समिति के लोग चाहते हैं कि टटी डंडिया वन क्षेत्र को विकसित किया जाए और हिरणों के संरक्षण के लिए योजना बनाई जाए। ग्र्रामीणों के अनुसार वन चौकी ही स्थापित हो जाए तो इन जीवों पर नजर रखी जा सकेगी। वर्तमान में जंगली जानवरों के हमले से घायल हिरणों का इलाज ग्रामीण व वन्य कर्मियों को खुद कराना पड़ता है। टटी डंडिया जंगल में पानी की व्यवस्था न होने से हिरण आबादी तक पहुंच जाते हैं, जहां कुत्तों के हमले की आशंका रहती है।

    पर्यटन की संभावनाएं 
    प्रकृति के अद्भुत वरदान को देखना अलग ही अनुभूति देता है। इस वन्य क्षेत्र को सरकारी प्रोत्साहन मिले तो इसे रमणीक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की अपार संभावनाएं हैं। अभी तो आसपास के लोग ही हिरणों की कुलांच देखने आते हैं, यदि पर्यटकों की सुख-सुविधा व सुरक्षा का ख्याल रखने का इंतजाम हो जाए तो टटी डंडिया ही नहीं, इस क्षेत्र का भी कायाकल्प हो जाएगा। वन क्षेत्र अधिकारी पीके शर्मा बताते हैैं कि वाइल्ड लाइफ  चौकी स्वीकृत कराने के लिए शासन को कई चि_ियां लिखी हैं। सीमित संसाधन हैं। वाइल्ड लाइफ  से कोई आर्थिक मदद नहीं मिलती है। घायल जीवों के इलाज के लिए भी खर्चा नहीं मिलता। कीटनाशकों के प्रयोग के संबंध में ग्रामीणों को जागरूक करने के लिए प्रचार प्रसार की जरूरत है।

    हर समय रहते हैं सतर्क
    गांव बीरिया के रहने वाले मनोज कुमार बताते हैं कि काले हिरन कभी भी खेतों में कुलांचे मारते नजर आ जाते हैं। कोई जंगली जानवर या शिकारी हमला न कर दे, इसलिए सतर्क रहते हैं।

    गणना के बाद पता चलेगा
    डीएफओ श्रीधर त्रिपाठी का कहना है कि पला सल्लू हिरण संरक्षण केंद्र के ही हिरण माइग्रेट कर संरक्षण से बाहर चले जाते हैं। अतरौली में हिरनों की संख्या कितनी है गणना के बाद पता चलेगा।

    सिकंदराराऊ में बरसात में दिखती हैं विविध प्रजातियां
    हाथरस जिले में सिकंदराराऊ तहसील मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर है टटी डंडिया का जंगल। यहां भी काले हिरणों का कुनबा आबाद हो रहा है। बारहसिंगा व सफेद हिरण भी सैकड़ों की संख्या में हैं। अच्छी बारिश के चलते हिरणों की विविध प्रजातियां अठखेलियां करती दिख जाती हैं। काले व श्वेत हिरणों की सुरक्षा के लिए स्थानीय ग्र्रामीण खुद पहल कर रहे हैं। वन्य जीव संरक्षण समिति के माध्यम से लोग शिकारियों व जंगली कुत्तों से हिरणों को बचाने में जुटे हैं। समिति के लोग चाहते हैं कि टटी डंडिया वन क्षेत्र को विकसित किया जाए और हिरणों के संरक्षण के लिए योजना बनाई जाए। ग्र्रामीणों के अनुसार वन चौकी ही स्थापित हो जाए तो इन जीवों पर नजर रखी जा सकेगी। वर्तमान में जंगली जानवरों के हमले से घायल हिरणों का इलाज ग्रामीण व वन्य कर्मियों को खुद कराना पड़ता है। टटी डंडिया जंगल में पानी की व्यवस्था न होने से हिरण आबादी तक पहुंच जाते हैं, जहां कुत्तों के हमले की आशंका रहती है।

    पर्यटन की संभावनाएं 
    प्रकृति के अद्भुत वरदान को देखना अलग ही अनुभूति देता है। इस वन्य क्षेत्र को सरकारी प्रोत्साहन मिले तो इसे रमणीक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की अपार संभावनाएं हैं। अभी तो आसपास के लोग ही हिरणों की कुलांच देखने आते हैं, यदि पर्यटकों की सुख-सुविधा व सुरक्षा का ख्याल रखने का इंतजाम हो जाए तो टटी डंडिया ही नहीं, इस क्षेत्र का भी कायाकल्प हो जाएगा। वन क्षेत्र अधिकारी पीके शर्मा बताते हैैं कि वाइल्ड लाइफ  चौकी स्वीकृत कराने के लिए शासन को कई चि_ियां लिखी हैं। सीमित संसाधन हैं। वाइल्ड लाइफ  से कोई आर्थिक मदद नहीं मिलती है। घायल जीवों के इलाज के लिए भी खर्चा नहीं मिलता। कीटनाशकों के प्रयोग के संबंध में ग्रामीणों को जागरूक करने के लिए प्रचार प्रसार की जरूरत है।