कर्नाटक में ढीले तारों को कसने के लिए BJP में मंथन, प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष पद के लिए समीकरण पर विचार
कर्नाटक में भाजपा को नेता प्रतिपक्ष का चुनाव भी करना है। सामान्यतया पूर्व मुख्यमंत्री को नेता प्रतिपक्ष का पद दिया जाता है। लेकिन सूत्रों की मानी जाए तो लिंगायत समुदाय से आने वाले पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई से पार्टी निराश है।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में पराजय के बाद भाजपा लोकसभा चुनाव के लिहाज से तत्काल ढीले तारों को कसना चाहती है। पार्टी नेताओं का स्पष्ट मानना है कि लोकसभा में बढ़त बरकरार रखनी है तो प्रदेश अध्यक्ष पद पर न सिर्फ बदलाव जरूरी है बल्कि चौंकाने वाले परिवर्तन करने होंगे जो बदलाव ला सके।
माना जा रहा है कि अगले पंद्रह दिनों में प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष को लेकर फैसला होगा। पिछले एक पखवाड़े में अलग अलग समीक्षा बिंदुओं में एक बात स्पष्ट रही है कि भाजपा की बुरी हार का सबसे बड़ा कारण परंपरागत लिंगायत वोट का खिसकना है।
बीएस येद्दयुरप्पा का उत्तराधिकार ढूंढ रही कांग्रेस
स्थिति पर काबू पाना है तो खोए हुए वोट को फिर से हासिल करना ही होगा। लेकिन बड़ी समस्या यह है कि बीएस येद्दयुरप्पा के रियाटरमेंट के बाद ऐसा कौन लिंगायत नेता ढूंढा जाए तो विश्वास बहाल कर सके। खासतौर पर तब जबकि कांग्रेस ने मंत्रिमंडल गठन में सारे समीकरण दुरुस्त कर लिए हैं। बजटीय जरूरतों के लिहाज से अगले पंद्रह दिनों में विधानसभा का छोटा सत्र बुलाया जा सकता है।
लिहाजा नेता प्रतिपक्ष का चुनाव भी करना है। सामान्यतया पूर्व मुख्यमंत्री को नेता प्रतिपक्ष का पद दिया जाता है। लेकिन सूत्रों की मानी जाए तो लिंगायत समुदाय से आने वाले पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई से पार्टी निराश है। वह अपने आसपास के तीन जिलों में कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाए। तीन जिलों में पार्टी सिर्फ तीन सीट जीत पाई। लिहाजा उन्हें नेता प्रतिपक्ष का पद दिए जाने पर आशंका है।
अश्वत नारायण और आर अशोक हैं नेता प्रतिपक्ष के उम्मीदवार
एक मत यह है कि विधानसभा में वोकालिग्गा को पद दिया जाए और प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी लिंगायत के हाथ दी जाए क्योंकि जमीन पर काम अध्यक्ष को ही करना है। अगर बोम्मई की किस्मत ने काम नहीं किया तो फिर अश्वत नारायण और आर अशोक नेता प्रतिपक्ष के लिए बड़े दावेदार हो सकते हैं जो वोकालिग्गा समुदाय से आते हैं।
प्रदेश अघ्यक्ष के लिए ज्यादा माथापच्ची हो रही है। परेशानी यह है कि लिंगायत में बड़े नाम अब कम हैं। बासनगौड़ा येतनाल बड़े नाम हैं लेकिन वह अपनी सनक के कारण अक्सर विवादों में होते हैं और पार्टी को असहज करते रहे हैं।
विजयेंद्र कर सकते हैं येद्दयुरप्पा की विरासत का दावा
अरविंद बेल्लाड की स्वीकार्यता और क्षमता को लेकर पार्टी के अंदर ही विवाद है। येद्दयुरप्पा के पुत्र विजयेंद्र में क्षमता है। चुनाव के दौरान उनकी लोकप्रियता भी दिखी थी और येद्दयुरप्पा की विरासत का दावा भी कर सकते हैं लेकिन वह युवा हैं लिहाजा पार्टी के अंदर उनकी स्वीकार्यता का सवाल रहेगा।
सूत्रों का कहना है कि कई मुद्दों पर चर्चा शुरू हो चुकी है और बदलाव जल्द करने होंगे क्योंकि लोकसभा चुनाव मे अब महज नौ दस महीनों का समय है। पिछली बार पार्टी यहां की 28 सीटों मे से 25 पर जीती थी। हालांकि लोकसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर होगा और इसलिए प्रदर्शन अलग होगा लेकिन संगठन को दुरुस्त रखने के लिए भी चुस्त चेहरे की जरूरत होगी।
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