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    राजनीतिक इस्लाम और साम्यवाद खतरनाक विचारधारा, सालों से कर रहे मानवता को तबाह और बर्बाद

    By TilakrajEdited By:
    Updated: Sun, 29 May 2022 09:07 AM (IST)

    इस्लाम और कम्युनिज्म पुस्तक राजनीतिक इस्लाम और साम्यवाद दोनों विचारधाराओं के खतरों के प्रति चेतावनी देती है और उनसे लड़ने के रास्ते भी बताती है। वर्तमान अंतरराष्ट्रीय स्थिति को समझने में भी यह सहायक है। पुस्तक में यह भी बताया गया है कि इस्लाम मत में सुधार संभव है लेकिन...!

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    सौभाग्य से सुधारवादी मुसलमानों की संख्या बढ़ रही

    ब्रजबिहारी। भारत सहित पूरी दुनिया में शांति और विकास के लिए खतरा बन चुके राजनीतिक इस्लाम और साम्यवाद (कम्युनिज्म) की चुनौतियों को समझना अत्यंत आवश्यक है। राजनीतिक इस्लाम तो पिछली कई सदियों से मानवता को तबाह और बर्बाद करने में जुटा हुआ है, जबकि साम्यवाद ने पिछले 100 वर्षों के दौरान अपना एकाधिकार स्थापित करने के लिए खून की नदियां बहाई हैं। साम्यवाद भले ही पूंजीवाद से हार गया हो, लेकिन एक मानसिकता के रूप में वह दुनिया के कई देशों में मौजूद है और इस वजह से उसके खतरे को कम करने नहीं आंका जा सकता है। शंकर शरण द्वारा संकलित पुस्तकइस्लाम और कम्युनिज्म : तीन चेतावनियां इन दोनों विचारधाराओं के खतरे के प्रति चेतावनी देती है और उनसे लड़ने के रास्ते भी बताती है।

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    यह पुस्तक राजनीतिक इस्लाम और साम्यवाद के स्वरूपों पर भिन्न देशों के तीन बड़े विद्वानों बिल वार्नर, रिचर्ड बेंकिन और अलेक्जेंडर सोल्झेनित्सिन के प्रामाणिक आकलनों की एक प्रस्तुति है। वर्तमान अंतरराष्ट्रीय स्थिति को समझने में भी यह सहायक है। सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि भारत इन दोनों मतवादों का अधिक या कम शिकार रहा है और आज भी निशाने पर है, लेकिन दोनों के प्रति भारतीय राजनीतिक बौद्धिक वर्ग में भारी भ्रम है। दरअसल, इस्लामी हिंसा पर दृष्टि संकुचित किए रखने के कारण इसके असली खतरे के प्रति लापरवाही बढ़ती जा रही है। वास्तव में केवल हिंसात्मक उग्रवाद का मुकाबला करने के बजाय प्रशासन को राजनीतिक इस्लाम द्वारा प्रस्तुत खतरे को परिभाषित करना चाहिए। उसके मतवाद के संपूर्ण तंत्र को समझना जरूरी है, जो नागरिक स्वतंत्रताओं के खिलाफ है।

    पुस्तक के अनुसार, बुद्धिजीवियों का एक वर्ग राजनीतिक इस्लाम को समझने में सबसे बड़ी भूल यह करता है कि वह मुसलमानों के एक हिस्से को उदार मानकर चलता है, जबकि यह सच्चाई से कोसों दूर है। हर मुसलमान रोज फातिहा पढ़ते हुए गैर मजहबी लोगों को कोसता है। कुरान में गैर मुस्लिमों को गंदा, घृणित, बंदर आदि तक कहा गया है, लेकिन गैर मुसलमान उसी तरह से मुसलमानों को कुछ नहीं कह सकते हैं और न ही इस्लाम की आलोचना कर सकते हैं। केवल इसलिए कि छुरे और बम की धमकी दी जाती है। सारी जिहादी हिंसा इसी के नाम पर होती है।

    कर्नाटक के स्कूलों में हिजाब के नाम पर जिस तरह की राजनीति की जा रही है, उससे भी समझ जाना चाहिए कि आखिर इस्लाम का लक्ष्य क्या है। यह मत न तो कानून को मानता है और न ही संविधान को। उसके लिए कुरान और शरीयत से बढ़कर कुछ नहीं है। कुरान में लिखा है कि काफिर को आतंकित किया जा सकता है। उसे अपनामित भी किया जा सकता है। इसलिए जब कोई मुसलमान किसी गैर मजहबी व्यक्ति की हत्या करता है तो उसे इसका कोई पछतावा नहीं होता है, क्योंकि वह इसे सहज इस्लामी कर्तव्य समझता है।

    पुस्तक में यह भी बताया गया है कि इस्लाम मत में सुधार संभव है, लेकिन सिर्फ तभी, जब इसे राजनीतिक इस्लाम के मतवाद से अलग किया जाए। बहरहाल, सबसे बड़ी परेशानी है कि यह काम मुसलमान ही कर सकते हैं। सौभाग्य से सुधारवादी मुसलमानों की संख्या बढ़ रही है। इसके बावजूद आसन्न खतरे से आंखें मूंदना संभव नहीं है। राजनीतिक इस्लाम का लक्ष्य स्वतंत्र समाजों की राजनीतिक संस्थाओं को छिन्न-भिन्न करके हर कहीं शरीयत कानून का शासन स्थापित करना है।

    राजनीतिक इस्लाम की तरह ही कम्युनिज्म यानी साम्यवाद भी एक खतरनाक विचारधारा है, जो दूसरों को खत्म कर देने को गलत नहीं मानती है। पुस्तक में रूसी साम्यवाद के प्रखर आलोचक अलेक्जेंडर सोल्झेनित्सिन के वर्ष 1975-76 के दौरान अमेरिका और इंग्लैंड में दिए गए व्याख्यानों और इंटरव्यू के अंशों को पढऩे से पता चलता है कि उन्होंने बहुत पहले ही साम्यवाद की विद्रूपता का अनुमान लगा लिया था। उन्होंने जो चेतावनियां दी थी, आज वह अक्षरश: सत्य साबित हो रही हैं।

    पुस्तक का नाम: इस्लाम और कम्युनिज्म : तीन चेतावनियां

    लेखक: शंकर शरण

    प्रकाशक: अक्षय प्रकाशन

    मूल्य: 250 रुपये