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World Book Day: उप्र के हरदोई जेल में मिलीं किताबें इतिहास और कानून की, सभी 1872 से 1968 के मध्य हुईं प्रकाशित

World Book Day 2020 जेल प्रशासन के मुताबिक ये बैरक पूर्व में पुस्तकालय के रूप में इस्तेमाल होती थीं। अरसा पहले इसे निष्प्रयोच्य बैरकों में शामिल कर दिया गया था।

By Edited By: Published: Wed, 22 Apr 2020 09:40 PM (IST)Updated: Thu, 23 Apr 2020 09:21 AM (IST)
World Book Day: उप्र के हरदोई जेल में मिलीं किताबें इतिहास और कानून की, सभी 1872 से 1968 के मध्य हुईं प्रकाशित
World Book Day: उप्र के हरदोई जेल में मिलीं किताबें इतिहास और कानून की, सभी 1872 से 1968 के मध्य हुईं प्रकाशित

पंकज मिश्रा, हरदोई। World Book Day 2020 1860 में स्थापित उप्र के हरदोई जिला जेल से हाल ही में ऐतिहासिक महत्व वाली अनमोल पुस्तकों का खजाना मिला है। ये पुस्तकें 1872 से 1968 के मध्य की हैं। इनमें अधिकतर किताबें धर्म-अध्यात्म, इतिहास और कानून की हैं। ‘ तीन माह पूर्व जेल प्रशासन परिसर की सफाई करा रहा था। इसी दौरान आठ माह पहले यहां तैनात हुईं डिप्टी जेलर विजय लक्ष्मी की निगाह एक बैरक में रखीपुरानी लोहे की आलमारी पर पड़ी। इस पर काफी पुराना ताला लगा था। जब इसको खुलवाया गया तो चार दर्जन अनमोल पुस्तकें निकलीं। इन सभी पुस्तकों पर जेल प्रशासन की मुहर लगी है। ऐसे में माना जा रहा है कि ये पुस्तकें जेल स्टाफ और बंदियों के अध्ययन के लिए यहां मंगाई गई होंगी। जेल प्रशासन के मुताबिक, ये बैरक पूर्व में पुस्तकालय के रूप में इस्तेमाल होती थीं। अरसा पहले इसे निष्प्रयोच्य बैरकों में शामिल कर दिया गया था।

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करीब 10 माह कैद रहे गणेश शंकर विद्यार्थी : स्वतंत्रता आंदोलन के अहम सिपाही और उस समय के मशहूर पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी की हरदोई में रिश्तेदारी थी। वह यहां आकर आजादी के लड़ाई की तैयारियां करते थे। गांधी भवन आदि स्थानों पर बैठकें किया करते थे। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पुलिस ने 25 मई 1930 को गिरफ्तार कर जेल भेजा था। हरदोई जिला कारागार में वह बंद रहे थे। वह यहां नौ मार्च 1931 तक रहे। वह जिस बैरक में रहे थे, उसमें उनका नाम लिखा है। जिस पर रोज फूल- माला चढ़ाई जाती है। उनके संपर्क में रहने वाले कई अन्य स्वतंत्रता सेनानी भी यहां अलग-अलग समय तक कैद रहे। करीब 72 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को हरदोई जेल में कैद किया गया था। हरदोई में किसान विद्रोह के अगुआ मदारी पासी भी यहां कैद रहे।

ब्रिटिश कानून के साथ बापू और पटेल पर भी पुस्तक : किताबें ब्रिटिश काल के नियम-कानून से रूबरू कराने के साथ ही बापू और सरदार पटेल के जीवनवृत्त का भी दर्शन कराती हैं। इनमें चारों वेद के साथ अंग्रेजी में अनुवादित श्रीरामचरितमानस भी मौजूद है। खास बात यह है कि ये सभी किताबें पढ़ने योग्य हैं। आइए, जानते हैं इनके बारे में...।

  • 1872 में प्रकाशित ‘रिपोर्ट ऑफ स्टेशनरी कमीशन फॉर बाम्बे’
  • 1902 में अंग्रेजी में प्रकाशित ‘मैनेजमेंट एंड डिस्प्लीन ऑफ प्रिजनर्स’
  • 1911 में ‘ऑर्डर ऑफ से गवर्नमेंट यूनाइटेड फोरम’
  • 1922 में कलकत्ता विवि के एफएस ग्रोवसे द्वारा अंग्रेजी में अनुवादित रामचरितमानस
  • 1935 में इंडियन प्रेस से प्रकाशित रंजीत सीताराम पंडित द्वारा राजतरंगिणी का अंग्रेजी अनुवाद
  • 1958 में नवजीन मुद्रणालय अहमदाबाद से प्रकाशित ‘सरदार पटेल की सीख’ में पटेल जी के 127 पत्र संजोए हैं
  • 1970 को प्रकाशित श्रीराम नाथ सुमन की पुस्तक ‘उत्तर प्रदेश में गांधी जी’। इसमें बापू के 1006 पत्रों का संग्रह भी है

जिस अलमारी में पुस्तकें मिली हैं, वह काफी पुरानी है। सभी पुस्तकों पर तत्कालीन जेल प्रशासन की मुहर लगी है। इससे लगता है कि उन दिनों ये पुस्तकें जेल में पढ़ी जाती थीं। पुस्तकों में संयुक्त प्रांत के समय के नियम और कानून से लेकर कई खास पुस्तकें हैं। चारों वेद और अन्य पौराणिक पुस्तकों के साथ ही गांधी जी, सरदार पटेल, राजतरंगिणी का अंग्रेजी में अनुवाद आदि दुर्लभ हैं। इन सभी पुस्तकों को संजोया जाएगा।

-बृजेंद्र सिंह, जेल अधीक्षक, हरदोई


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