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    'संविधान की प्रस्तावना से हटें सेक्युलर-सोशलिस्ट शब्द', बीजेपी सांसद ने राज्यसभा में पेश किया प्राइवेट बिल

    Updated: Sat, 06 Dec 2025 11:30 PM (IST)

    भाजपा सांसद सी. एम. रमेश ने राज्यसभा में एक निजी विधेयक पेश किया है, जिसमें संविधान की प्रस्तावना से 'सेक्युलर' और 'सोशलिस्ट' शब्दों को हटाने का प्रस् ...और पढ़ें

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    भाजपा के राज्यसभा सदस्य भीम सिंह। (संसद टीवी)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भाजपा के राज्यसभा सदस्य भीम सिंह ने कहा है कि संविधान की प्रस्तावना में 'सेक्युलर' और 'सोशलिस्ट' शब्दों की आवश्यकता नहीं है और इन्हें आपातकाल के दौरान अलोकतांत्रिक तरीके से जोड़ा गया था। उन्होंने इन शब्दों को हटाने के लिए शुक्रवार को उच्च सदन में एक निजी विधेयक पेश किया।

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    भाजपा सांसद ने कहा कि सेक्युलर और सोशलिस्ट शब्द भ्रम उत्पन्न करते हैं और ये मूल संविधान का हिस्सा नहीं थे। उन्होंने पीटीआई को बताया- मैंने संविधान की प्रस्तावना से 'समाजवाद' और 'पंथनिरपेक्ष' शब्दों को हटाने के लिए एक निजी विधेयक पेश किया है। 1949 में अपनाए गए और 26 जनवरी, 1950 से लागू संविधान में ये दोनों शब्द नहीं थे।

    इंदिरा गांधी ने 1976 में आपातकाल के दौरान 42वें संविधान संशोधन के तहत इन दोनों शब्दों को जोड़ा। उस समय संसद में कोई चर्चा नहीं हुई थी। उस समय सभी विपक्षी नेता-अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और जार्ज फर्नांडीज जेल में थे। लोकतंत्र की हत्या की जा रही थी और उस स्थिति में इंदिरा गांधी ने इन दोनों शब्दों को जोड़ा। ये दोनों शब्द बाद में जोड़े गए हैं और संविधान को अपने मूल स्वरूप में ही रहना चाहिए।

    संविधान सभा में हुई थी बहस

    भीम सिंह ने कहा कि संविधान सभा में भी पंथनिरपेक्षता पर बहस हुई थी। प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव आंबेडकर ने इसका उत्तर दिया था। उन्होंने कहा था कि भारत के संविधान की संरचना ऐसी है कि यह देश को पंथनिरपेक्ष बनाएगी। इसके लिए किसी खास शब्द का समावेश करना आवश्यक नहीं है। समाजवाद शब्द पर भी बहस हुई थी।

    आंबेडकर ने उत्तर दिया था कि संविधान समिति भावी पीढ़ियों को एक ही राजनीतिक और आर्थिक नीति का पालन करने के लिए मजबूर नहीं कर सकती। अगर कल कोई आर्थिक नीति बदलना चाहता है तो क्या होगा? जहां तक समाजवाद की बात है, यह लोगों की भलाई से संबंधित है।

    तुष्टीकरण की राजनीति का नतीजा बताया

    भाजपा सांसद ने आरोप लगाया कि ये दोनों शब्द तुष्टीकरण की राजनीति के लिए संविधान की प्रस्तावना में शामिल किए गए थे। 'समाजवाद' शब्द तत्कालीन सोवियत संघ को खुश करने के लिए जोड़ा गया था और 'पंथनिरपेक्ष' शब्द मुसलमानों को खुश करने के लिए जोड़ा गया था। यह अनावश्यक है। यह केवल भ्रम पैदा करता है।

    उन्होंने सवाल किया कि क्या भारत 1976 से पहले पंथनिरपेक्ष नहीं था? क्या नेहरूजी, लाल बहादुर शास्त्री या इंदिरा गांधी सांप्रदायिक सरकार चला रहे थे? आखिरकार इन शब्दों की आवश्यकता क्यों पड़ी?

    (समाचार एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)