Waqf Bill: सत्तापक्ष के भरे हाथ, विपक्ष का रह गया खाली
एक तरफ जहां मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड वक्फ के खिलाफ आंदोलन की की तैयारी कर रहा है वहीं भाजपा पिछड़े मुस्लिमों मुस्लिम महिलाओं के सशक्तिकरण का दस्तावेज तैयार कर उनके बीच जाने की योजना बना रही है। तीन तलाक रद करने के वक्त जो भी विवाद खड़ा हुआ हो लेकिन बाद के चुनावों में छोटी संख्या में ही सही मुस्लिम महिलाओं में भाजपा की ओर रुझान शुरू हुआ है।
आशुतोष झा, नई दिल्ली। वक्फ विधेयक पर हुई चर्चा ने एक बार फिर से साबित कर दिया कि विरोध सिर्फ राजनीतिक हो तो तथ्य वैसे ही गायब होते हैं जैसे गधे के सिर से सींग। विधेयक को पारित कराने के लिए संसद के दोनों सदनों में 20 घंटे से ज्यादा चर्चा हुई। विपक्ष की ओर से कई विद्वान सदस्यों ने भी अपनी बात रखी लेकिन हर कोई मूल मुद्दे से भटकता रहा।
विपक्षी सदस्यों में से किसी ने भी वक्फ बोर्ड के अंदर चल रही घपलेबाजी और लाखों करोड़ की संपत्तियों के सही प्रबंधन पर बोलना जरूरी नहीं समझा। जबकि यह विधेयक लाया ही इसी उद्देश्य के लिए गया था। पर उससे भी ज्यादा रोचक यह रहा कि विपक्ष में राजनीति के लिए भी लड़ने का जज्बा धीरे धीरे गायब होता दिख रहा है।
मजबूती से विधेयक का समर्थन
संसद के दोनों सदनों में विपक्ष की तैयारी आधे मन से दिखी। ऐसे में इस विरोध का जमीन पर उन्हें कितना अतिरिक्त लाभ मिल पाएगा यह देखना होगा। वैसे भाजपा 'सबका विश्वास' के मोर्चे पर एक कदम आगे बढ़ती दिखी। सहयोगी दलों की ओर से जिस मजबूती से विधेयक का समर्थन किया गया वह इसी का संकेत है।
विधेयक पेश किया गया
यह अच्छी बात है कि विपक्ष को इसका अहसास था कि बहुमत सरकार के पक्ष में है और विधेयक पारित होना ही है लिहाजा शोर शराबे की कोशिश नहीं की। लेकिन चेहरे पर थकान और हार दिखना खतरनाक होता है। गुरुवार को जब राज्यसभा में लोकसभा से आया पारित विधेयक पेश किया गया तो कई विपक्षी कुर्सियां खाली थीं।
दबाव बनाने में सफल
यह इसलिए अहम है क्योंकि मात्र सात आठ महीने पहले ही विपक्ष का व्यवहार और उत्साह कुछ ऐसा था जैसे लोकसभा चुनाव वही जीतकर आए हो और साथ मिलकर सरकार पर दबाव बनाने में सफल हो सकते हैं। लेकिन अब उन्हें अहसास हो गया कि वह न सिर्फ विपक्ष में हैं बल्कि टूटे हुए विपक्षी विपक्षी दल हैं। याद रहे कि पांच छह महीने पहले जब वक्फ पेश हुआ था तो शिवसेना उद्धव ने विरोध में वाकआउट किया था।
रसूखदार मुस्लिमों का बचाव
महाराष्ट्र में मुस्लिमों ने इसपर आपत्ति जताई थी दिल्ली चुनाव के वक्त से इसकी शुरूआत हुई थी और आगे यह कायम रहने वाला है। इसीलिए हर प्रयास यही रहा कि विधेयक पर चर्चा को मुस्लिम धर्म से जोड़ कर रखा जाए। वक्फ बोर्ड की कार्यप्रणाली और उसमें सुधार की जरूरत पर किसी विपक्षी सदस्य ने मुंह नहीं खोला। यानी न तो बोर्ड में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से काबिज मुट्ठी भर रसूखदार मुस्लिमों का बचाव किया और न ही यह समझाने में कामयाब हुए कि इस विधेयक से आम मुस्लिमों के जीवन में परेशानी बढ़ेगी।
मुस्लिमों की नागरिकता पर खतरा
दूसरी तरफ राजग के सहयोगी दलों में एकजुटता और वक्फ की कमाई बढ़ने से होने वाले लाभ का संदेश देकर यह बताने में सफल रहे कि वक्फ बोर्ड के प्रबंधन में कुशलता लाकर मुस्लिमों की बड़ी आबादी को लाभ ही मिलने वाला है। दरअसल पिछली सरकार में सीएए (नागरिकता कानून) को लेकर विपक्ष ने जो माहौल बनाया था उसका लाभ इस बार सरकार को मिला भी और आगे मिलने वाला भी है। दिल्ली के शाहीनबाग में दो वर्ष तक राजनीतिक प्रश्रय में आंदोलन चला था और डराया गया था कि मुस्लिमों की नागरिकता पर खतरा है।
वक्फ संपत्तियों से सीधे तौर पर लाभान्वित
दो साल होने को हैं लेकिन ऐसा एक भी मामला सामने नहीं आया। वक्फ में तो सरकार ने उन पिछडे मुस्लिमों को जोड़ने की कवायद की है जिन्हें वक्फ तक फटकने नहीं दिया जाता था। इनकी संख्या बहुत बड़ी है। वह अब वक्फ संपत्तियों से सीधे तौर पर लाभान्वित ही नहीं होंगे बल्कि खुद को सशक्त भी समझेंगे। ध्यान रहे कि पिछले कुछ वर्षों से सरकारी योजनाओं का लाभ भी इन्हें मिल रहा है।
दरअसल यही वह मुद्दे हैं जिसके कारण भाजपा टीडीपी, जदयू जैसे दूसरे सहयोगी दलों को साथ खड़ा करने में सफल रही है। अगर यह रुझान पिछड़े पसमांदा मुस्लिमों और महिलाओं में गहरे पैठ गया तो फिर अल्पसंख्यक राजनीति करने वालों के हाथ खाली हो जाएंगे। जबकि विपक्षी नेता भी मानने लगे हैं कि धीरे धीरे ही सही नरेन्द्र मोदी मुस्लिमों का विश्वास हासिल करने लग गए हैं।
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