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    Bihar Voter List: 'मी लॉर्ड बिहार में चार करोड़ वोटर्स को...' मतदाता सूची संशोधन के खिलाफ मनोज झा पहुंचे सुप्रीम कोर्ट

    बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान को लेकर विपक्षी दल सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं। उन्होंने चुनाव आयोग के आदेश को रद्द करने की मांग की है। कोर्ट 10 जुलाई को इस मामले पर सुनवाई करेगा। याचिकाओं में प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठाए गए हैं। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि दस्तावेज जमा करने की समय सीमा कम है और सत्यापन के लिए जरूरी दस्तावेजों को लेकर भी विवाद है।

    By Mala Dixit Edited By: Piyush Kumar Updated: Mon, 07 Jul 2025 10:38 PM (IST)
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    बिहार में मतदाता सूची सघन पुनरीक्षण अभियान को लेकर राजनैतिक घमासान मचा है।(फाइल फोटो)

    माला दीक्षित, नई दिल्ली। बिहार में इस समय चुनाव आयोग द्वारा चलाए जा रहे मतदाता सूची सघन पुनरीक्षण अभियान को लेकर राजनैतिक घमासान मचा है।

    ज्यादातर विपक्षी पार्टियां चुनाव आयोग के पुनरीक्षण आदेश को रद करने की याचिका के साथ सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुकी हैं। सोमवार को मामले पर जल्द सुनवाई की मांग पर कोर्ट ने याचिकाओं पर 10 जुलाई को सुनवाई की सहमति दे दी है। आयोग को यह साबित करना होगा कि पूरी प्रक्रिया पारदर्शी है।

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    सोमवार को मनोज झा की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और जोयमाल्या बाग्ची की पीठ के समक्ष मामले का जिक्र करते हुए जल्दी सुनवाई का अनुरोध किया।

    कपिल सिब्बल ने कोर्ट में क्या कहा? 

    सिब्बल ने पीठ से कहा कि याचिका पर चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया जाए क्योंकि तय समय सीमा में प्रक्रिया पूरी होना असंभव है। एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि बिहार राज्य में करीब आठ करोड़ मतदाता है जिनमें से करीब चार करोड़ मतदाताओं को इस प्रक्रिया में अपने दस्तावेज पेश करने होंगे।

    संघवी ने कहा कि समय सीमा बहुत कड़ी है उसमें 25 जुलाई तक दस्तावेज देने हैं और अगर कोई तब तक दस्तावेज नहीं दे पाता तो वह बाहर हो जाएगा। सत्यापन के लिए जरूरी दस्तावेज को भी लेकर भी विवाद है।

    गौरतलब है कि मतदाता सूची पुनरीक्षण मामले एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 1995 में लाल बाबू हुसैन के केस में दिए फैसले में मतदाता सूची पुनरीक्षण कार्यक्रम में प्रक्रिया के निष्पक्ष होने और नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत का पालन किये जाने पर जोर दिया था। हालांकि वह मामला थोड़ा अलग था क्योंकि वहां पुलिस की ओर से सत्यापन हो रहा था और उसका स्पष्ट साक्ष्य भी पेश नहीं किया गया था। लेकिन फिर भी 1995 का वह फैसला चर्चा में आ सकता है।

    ये है 11 दस्तावेजों की सूची

    • किसी भी केंद्र या राज्य सरकार या पीएसयू के नियमित कर्मचारी, पेंशनभोगी को जारी किया गया कोई पहचान पत्र या पेंशन भुगतान आदेश
    • एक जुलाई 1987 से पहले भारत में सरकार या स्थानीय प्राधिकरण या बैंक, डाकघर
    • एलआइसी, पीएसयू द्वारा जारी किया गया कोई पहचान पत्र, प्रमाणपत्र या दस्तावेज
    • सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी जन्म प्रमाणपत्र
    • पासपोर्ट
    • मान्यता प्राप्त बोर्ड, विश्वविद्यालय द्वारा जारी मैट्रीकुलेशन या शैक्षणिक प्रमाण पत्र
    • सक्षम राज्य प्राधिकारी द्वारा जारी स्थाई निवास प्रमाण पत्र
    • वन अधिकार प्रमाणपत्र
    • ओबीसी, एससी, एसटी या सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी कोई जाति प्रमाणपत्र
    • नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरसी) (जहां भी मौजूद हो)
    • राज्य या स्थानीय प्राधिकारों द्वारा तैयार किया गया परिवार रजिस्टर 
    • सरकार द्वारा कोई भूमि या मकान आवंटन प्रमाण पत्र समाप्त

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